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- मा नो मर्ता अभि द्रुहन्तनूनामिन्द्र गिर्वणः। ईशानो यवया वधम् ॥ - Atharvaveda/20/69/0/8
- मा नो मर्ता अभिद्रुहन्तनूनामिन्द्र गिर्वणः। ईशानो यवया वधम्॥ - Rigveda/1/5/10
- मा नो मर्ताय रिपवे रक्षस्विने माघशंसाय रीरधः । अस्रेधद्भिस्तरणिभिर्यविष्ठ्य शिवेभि: पाहि पायुभि: ॥ - Rigveda/8/60/8
- मा नो मर्धीरा भरा दद्धि तन्नः प्र दाशुषे दातवे भूरि यत्ते। नव्ये देष्णे शस्ते अस्मिन्त उक्थे प्र ब्रवाम वयमिन्द्र स्तुवन्तः ॥१०॥ - Rigveda/4/20/10
- मा नो महान्तमुत मा नो अर्भकं मा न उक्षन्तमुत मा न उक्षितम्। मा नो बधीः पितरं मोत मातरं मा न: प्रियास्तन्वो रुद्र रीरिषः ॥ - Rigveda/1/114/7
- मा नो महान्तमुत मा नो अर्भकं मा नो वहन्तमुत मा नो वक्ष्यतः। मा नो हिंसीः पितरं मातरं च स्वां तन्वं रुद्र मा रीरिषो नः ॥ - Atharvaveda/11/2/0/29
- मा नो महान्तमुत मा नोऽअर्भकम्मा नऽउक्षन्तमुत मा नऽउक्षितम् । मा नो वधीः पितरम्मोत मातरम्मा नः प्रियास्तन्वो रुद्र रीरिषः ॥ - Yajurveda/16/15
- मा नो मित्रो वरुणो अर्यमायुरिन्द्र ऋभुक्षा मरुत: परि ख्यन्। यद्वाजिनो देवजातस्य सप्ते: प्रवक्ष्यामो विदथे वीर्याणि ॥ - Rigveda/1/162/1
- मा नो मित्रो वरुणोऽअर्यमायुरिन्द्रऽऋभुक्षा मरुतः परिख्यन् । यद्वाजिनो देवजातस्य सप्तेः प्रवक्ष्यामो विदथे वीर्याणि ॥ - Yajurveda/25/24
- मा नो मृचा रिपूणां वृजिनानामविष्यवः । देवा अभि प्र मृक्षत ॥ - Rigveda/8/67/9
- मा नो मेधां मा नो दीक्षां मा नो हिंसिष्टं यत्तपः। शिवा नः शं सन्त्वायुषे शिवा भवन्तु मातरः ॥ - Atharvaveda/19/40/0/3
- मा नो रक्ष आ वेशीदाघृणीवसो मा यातुर्यातुमावताम् । परोगव्यूत्यनिरामप क्षुधमग्ने सेध रक्षस्विन: ॥ - Rigveda/8/60/20
- मा नो रक्षो अभि नड्यातुमावतामपोच्छतु मिथुना या किमीदिना । पृथिवी न: पार्थिवात्पात्वंहसोऽन्तरिक्षं दिव्यात्पात्वस्मान् ॥ - Rigveda/7/104/23
- मा नो रक्षो अभि नड्यातुमावदपोच्छन्तु मिथुना ये किमीदिनः। पृथिवी नः पार्थिवात्पात्वंहसोऽन्तरिक्षं दिव्यात्पात्वस्मान् ॥ - Atharvaveda/8/4/0/23
- मा नो रुद्र तक्मना मा विषेण मा नः सं स्रा दिव्येनाग्निना। अन्यत्रास्मद्विद्युतं पातयैताम् ॥ - Atharvaveda/11/2/0/26
- मा नो वधाय हत्नवे जिहीळानस्य रीरधः। मा हृणानस्य मन्यवे॥ - Rigveda/1/25/2
- मा नो वधी रुद्र मा परा दा मा ते भूम प्रसितौ हीळितस्य। आ नो भज बर्हिषि जीवशंसे यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः ॥४॥ - Rigveda/7/46/4
- मा नो वधीरिन्द्र मा परा दा मा न: प्रिया भोजनानि प्र मोषीः। आण्डा मा नो मघवञ्छक्र निर्भेन्मा न: पात्रा भेत्सहजानुषाणि ॥ - Rigveda/1/104/8
- मा नो वधैर्वरुण ये त इष्टावेनः कृण्वन्तमसुर भ्रीणन्ति। मा ज्योतिषः प्रवसथानि गन्म वि षू मृधः शिश्रथो जीवसे नः॥ - Rigveda/2/28/7
- मा नो विदन्विव्याधिनो मो अभिव्याधिनो विदन्। आराच्छरव्या अस्मद्विषूचीरिन्द्र पातय ॥ - Atharvaveda/1/19/0/1
- मा नो वृकाय वृक्ये समस्मा अघायते रीरधता यजत्राः। यूयं हि ष्ठा रथ्यो नस्तनूनां यूयं दक्षस्य वचसो बभूव ॥६॥ - Rigveda/6/51/6
- मा नो हासिषुरृषयो दैव्या ये तनूपा ये नस्तन्वस्तनूजाः। अमर्त्या मर्त्यां अभि नः सचध्वमायुर्धत्त प्रतरं जीवसे नः ॥ - Atharvaveda/6/41/0/3
- मा नो हिंसीज्जनिता यः पृथिव्या यो वा दिवं सत्यधर्मा जजान । यश्चापश्चन्द्रा बृहतीर्जजान कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ - Rigveda/10/121/9
- मा नो हिंसीरधि नो ब्रूहि परि णो वृङ्ग्धि मा क्रुधः। मा त्वया समरामहि ॥ - Atharvaveda/11/2/0/20
- मा नो हृणीतामतिथिर्वसुरग्निः पुरुप्रशस्त एषः । यः सुहोता स्वध्वरः ॥ - Rigveda/8/103/12
- मा नो हृणीथा अतिथिं वसुरग्निः पुरुप्रशस्त एषः । यः सुहोता स्वध्वरः ॥११०॥ - Samveda/110
- मा नो हेतिर्विवस्वत आदित्याः कृत्रिमा शरु: । पुरा नु जरसो वधीत् ॥ - Rigveda/8/67/20
- मा नोऽभि स्रा मत्यं देवहेतिं मा नः क्रुधः पशुपते नमस्ते। अन्यत्रास्मद्दिव्यां शाखां वि धूनु ॥ - Atharvaveda/11/2/0/19
- मा नोऽहिर्बुध्न्यो रिषे धान्मा यज्ञो अस्य स्रिधदृतायोः ॥१७॥ - Rigveda/7/34/17
- मा पापत्वाय नो नरेन्द्राग्नी माभिशस्तये । मा नो रीरधतं निदे ॥ - Rigveda/7/94/3
- मा पापत्वाय नो नरेन्द्राग्नी माभिशस्तये । मा नो रीरधतं निदे ॥९१८॥ - Samveda/918
- मा पृणन्तो दुरितमेन आरन्मा जारिषुः सूरय: सुव्रतास:। अन्यस्तेषां परिधिरस्तु कश्चिदपृणन्तमभि सं यन्तु शोका: ॥ - Rigveda/1/125/7
- मा प्र गाम पथो वयं मा यज्ञादिन्द्र सोमिन: । मान्त स्थुर्नो अरातयः ॥ - Rigveda/10/57/1
- मा प्र गाम पथो वयं मा यज्ञादिन्द्र सोमिनः। मान्त स्थुर्नो अरातयः ॥ - Atharvaveda/13/1/0/59
- मा बिभेर्न मरिष्यसि जरदष्टिं कृणोमि त्वा। निरवोचमहं यक्ष्ममङ्गेभ्यो अङ्गज्वरं तव ॥ - Atharvaveda/5/30/0/8
- मा भूम निष्ट्या इवेन्द्र त्वदरणा इव । वनानि न प्रजहितान्यद्रिवो दुरोषासो अमन्महि ॥ - Rigveda/8/1/13
- मा भूम निष्ट्या इवेन्द्र त्वदरणा इव। वनानि न प्रजहितान्यद्रिवो दुरोषासो अमन्महि ॥ - Atharvaveda/20/116/0/1
- मा भेम मा श्रमिष्मोग्रस्य सख्ये तव । महत्ते वृष्णो अभिचक्ष्यं कृतं पश्येम तुर्वशं यदुम् ॥ - Rigveda/8/4/7
- मा भेम मा श्रमिष्मोग्रस्य सख्ये तव । महत्ते वृष्णो अभिचक्ष्यं कृतं पश्येम तुर्वशं यदुम् ॥१६०५॥ - Samveda/1605
- मा भेर्मा सँविक्था ऊर्जन्धत्स्व धिषणे वीड्वी सती वीडयेथामूर्जन्दधाथाम् । पाप्मा हतो न सोमः ॥ - Yajurveda/6/35
- मा भेर्मा सँविक्थाऽतमेरुर्यज्ञो तमेरुर्यजमानस्य प्रजा भूयात्त्रिताय त्वा द्विताय त्वैकताय त्वा ॥ - Yajurveda/1/23
- मा भ्राता भ्रातरं द्विक्षन्मा स्वसारमुत स्वसा। सम्यञ्चः सव्रता भूत्वा वाचं वदत भद्रया ॥ - Atharvaveda/3/30/0/3
- मा मां प्राणोहासीन्मो अपानोऽवहाय परा गात् ॥ - Atharvaveda/16/4/0/3
- मा मा वोचन्नराधसं जनासः पुनस्ते पृश्निं जरितर्ददामि। स्तोत्रं मे विश्वमा याहि शचीभिरन्तर्विश्वासु मानुषीषु दिक्षु ॥ - Atharvaveda/5/11/0/8
- मा मा हिँसीज्जनिता यः पृथिव्या यो वा दिवँ सत्यधर्मा व्यानट् । यश्चापश्चन्द्राः प्रथमो जजान कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ - Yajurveda/12/102
- मा मामिमं तव सन्तमत्र इरस्या द्रुग्धो भियसा नि गारीत्। त्वं मित्रो असि सत्यराधास्तौ मेहावतं वरुणश्च राजा ॥७॥ - Rigveda/5/40/7
- मा व एनो अन्यकृतं भुजेम मा तत्कर्म वसवो यच्चयध्वे। विश्वस्य हि क्षयथ विश्वदेवाः स्वयं रिपुस्तन्वं रीरिषीष्ट ॥७॥ - Rigveda/6/51/7
- मा वः प्राणं मा वोऽपानं मा हरो मायिनो दभन्। भ्राजन्तो विश्ववेदसो देवा दैव्येन धावत ॥ - Atharvaveda/19/27/0/6
- मा वनिं मा वाचं नो वीर्त्सीरुभाविन्द्राग्नी आ भरतां नो वसूनि। सर्वे नो अद्य दित्सन्तोऽरातिं प्रति हर्यत ॥ - Atharvaveda/5/7/0/6
- मा वां वृको मा वृकीरा दधर्षीन्मा परि वर्क्तमुत माति धक्तम्। अयं वां भागो निहित इयं गीर्दस्राविमे वां निधयो मधूनाम् ॥ - Rigveda/1/183/4