ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 101/ मन्त्र 10
ऋषिः - मनुः सांवरणः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - पादनिचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
सोमा॑: पवन्त॒ इन्द॑वो॒ऽस्मभ्यं॑ गातु॒वित्त॑माः । मि॒त्राः सु॑वा॒ना अ॑रे॒पस॑: स्वा॒ध्य॑: स्व॒र्विद॑: ॥
स्वर सहित पद पाठसोमाः॑ । प॒व॒न्ते॒ । इन्द॑वः । अ॒स्मभ्य॑म् । गा॒तु॒वित्ऽत॑माः । मि॒त्राः । सु॒वा॒नाः । अ॒रे॒पसः॑ । सु॒ऽआ॒ध्यः॑ । स्वः॒ऽविदः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सोमा: पवन्त इन्दवोऽस्मभ्यं गातुवित्तमाः । मित्राः सुवाना अरेपस: स्वाध्य: स्वर्विद: ॥
स्वर रहित पद पाठसोमाः । पवन्ते । इन्दवः । अस्मभ्यम् । गातुवित्ऽतमाः । मित्राः । सुवानाः । अरेपसः । सुऽआध्यः । स्वःऽविदः ॥ ९.१०१.१०
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 101; मन्त्र » 10
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 2; मन्त्र » 5
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अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 2; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्दवः) प्रकाशकाः (सोमाः) परमात्मनो ज्ञानादिगुणाः (गातुवित्तमाः) शब्दादिगुणेषु श्रेष्ठाः (मित्राः) सर्वहिताः (सुवानाः) स्वसत्तया सर्वत्र विद्यमानाः (अरेपसः) अविद्यादिदोषरहिताः (स्वाध्यः) धारणार्हाः (स्वर्विदः) सर्वज्ञानहेतुत्वात्सर्वज्ञाः (अस्मभ्यं) अस्मदर्थं (पवन्ते) पवित्रतां प्रददतु ॥१०॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सोमाः) परमात्मा के ज्ञानादि गुण (इन्दवः) प्रकाशक (गातुवित्तमाः) जो शब्दादि गुणों में श्रेष्ठ हैं (मित्राः) सबके मित्रभूत हैं, (सुवानाः) जो स्वसत्ता से सर्वत्र विद्यमान हैं, (अरेपसः) जो अविद्यादि दोषों से रहित हैं, जो (स्वाध्यः) धारण करने योग्य हैं, (स्वर्विदः) जो सर्वज्ञान के हेतु होने के कारण सर्वज्ञ कहे जा सकते हैं, वे (अस्मभ्यम्) हमको (पवन्ते) पवित्रता प्रदान करें ॥१०॥
भावार्थ
परमात्मा के गुणों के वर्णन करने से ज्ञान और पवित्रता बढ़ती है ॥१०॥
विषय
परम पावन विद्वानों का वर्णन
भावार्थ
(सोमाः) ज्ञानैश्वर्य के धनी, विद्या ज्ञान में निष्णात, (इन्दवः) तेजस्वी, (गातुवित्-तमाः) वेदवाणी और सन्मार्ग को जानने और जनाने हारों में सर्वश्रेष्ठ, (मित्राः) जगत् के समस्त जीवों को मृत्यु के दुःख से बचाने वाले, (सुवानाः) अभिषिक्त, एवं ऐश्वर्य- विभूति से युक्त होते हुए भी (अरेपसः) पाप-वासना, दुष्कर्मों से रहित (स्वाध्यः) शुभ कर्मों और विचारों का चिन्तन और धारण करने वाले (स्वर्विदः) सुख, तेज, उत्तम उपदेश प्राप्त कराने वाले उपदेष्टा, सूर्यवत् तेजस्वी होकर (पवन्ते) सूर्य के किरणों के तुल्य सर्वत्र गमन करते, सबको पवित्र करते हैं। द्वितीय वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः–१-३ अन्धीगुः श्यावाश्विः। ४—६ ययातिर्नाहुषः। ७-९ नहुषो मानवः। १०-१२ मनुः सांवरणः। १३–१६ प्रजापतिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ६, ७, ९, ११—१४ निचृदनुष्टुप्। ४, ५, ८, १५, १६ अनुष्टुप्। १० पादनिचृदनुष्टुप्। २ निचृद् गायत्री। ३ विराड् गायत्री॥ षोडशर्चं सूक्तम्॥
विषय
स्वाध्यः स्वर्विदः
पदार्थ
(इन्दवः) = हमें शक्तिशाली बनानेवाले (सोमाः) = सोमकण (पवन्तः) = प्राप्त होते हैं। ये सोमकण (अस्भ्यम्) = हमारे लिये (गातुवित्तमा:) = अधिक से अधिक मार्ग के प्रापक हैं। सोमरक्षक पुरुष मर्यादित जीवन वाला होता हुआ मार्गभ्रष्ट नहीं होता। ये सोमकण (मित्र:) = हमें प्रमीति से [मृत्यु से] बचानेवाले हैं, (सुवानः) = उत्पन्न किये जाते हुए व शरीर में प्रेरित किये जाते हुए ये (अरेपसः) - हमारे जीवन को निर्दोष बनाते हैं। (स्वाध्यः) = ये उत्तम ध्यानवाले हैं, हमारी वृत्ति को ध्यानयुक्त करते हैं । इस प्रकार (स्वर्विदः) = अन्त: प्रकाश को प्राप्त कराते हैं [स्वः = प्रकाश, विद् लाभे] ।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण हमारे जीवन को 'मर्यादित, नीरोग व निर्दोष' बनाता है। ये हमें ध्यानवृत्ति वाला बनाकर अन्तः प्रकाश प्राप्त कराते हैं।
इंग्लिश (1)
Meaning
Streams of Soma flow for us, brilliant, eloquent and expansive, friendly, inspiring, free from sin, intellectually creative and spiritually illuminative.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वराच्या गुणांचे वर्णन करण्याने ज्ञान व पवित्रता वाढते. ॥१०॥
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