ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 101/ मन्त्र 6
ऋषिः - ययातिर्नाहुषः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
स॒हस्र॑धारः पवते समु॒द्रो वा॑चमीङ्ख॒यः । सोम॒: पती॑ रयी॒णां सखेन्द्र॑स्य दि॒वेदि॑वे ॥
स्वर सहित पद पाठस॒हस्र॑ऽधारः । प॒व॒ते॒ । स॒मु॒द्रः । वा॒च॒म्ऽई॒ङ्ख॒यः । सोमः॑ । पतिः॑ । र॒यी॒णाम् । सखा॑ । इन्द्र॑स्य । दि॒वेऽदि॑वे ॥
स्वर रहित मन्त्र
सहस्रधारः पवते समुद्रो वाचमीङ्खयः । सोम: पती रयीणां सखेन्द्रस्य दिवेदिवे ॥
स्वर रहित पद पाठसहस्रऽधारः । पवते । समुद्रः । वाचम्ऽईङ्खयः । सोमः । पतिः । रयीणाम् । सखा । इन्द्रस्य । दिवेऽदिवे ॥ ९.१०१.६
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 101; मन्त्र » 6
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 2; मन्त्र » 1
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अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 2; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सहस्रधारः) विविधानन्दस्य वर्षणकर्त्ता (समुद्रः) सर्वभूतोत्पत्तिस्थानं (वाचमीङ्खयः) वाक्प्रेरकः (सोमः) परमात्मा (रयीणाम्) ऐश्वर्याणां (पतिः) स्वामी (दिवे दिवे) यः प्रतिदिनं (इन्द्रस्य, सखा) कर्मयोगिमित्रं सः (पवते) सन्मार्गच्युतान् पवित्रयति ॥६॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सोमः) सर्वोत्पादक परमात्मा (सहस्रधारः) अनन्त प्रकार के आनन्दों की वृष्टि करनेवाला और (समुद्रः) सम्पूर्ण भूतों का उत्पत्तिस्थान (वाचमीङ्खयः) वाणियों का प्रेरक (रयीणाम्) सब प्रकार के ऐश्वर्यों का (पतिः) स्वामी (दिवे दिवे) जो प्रतिदिन (इन्द्रस्य) कर्मयोगी का (सखा) मित्र है, वह परमात्मा (पवते) सन्मार्ग से गिरे हुए लोगों को पवित्र करता है ॥६॥
भावार्थ
परमात्मा को सहस्रधार इसलिये कथन किया गया है कि वह अनन्तशक्तियुक्त है। धारा शब्द के अर्थ यहाँ शक्ति है। “सम्यग् द्रवन्ति भूतानि यस्मिन् स समुद्रः” इस व्युत्पत्ति से यहाँ समुद्र नाम परमात्मा का है, इसी अभिप्राय से उपनिषद् में कहा है कि, “यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते येन जातानि जीवन्ति” यहाँ (पवते) के अर्थ सायणाचार्य्य ने क्षरति किये हैं, जो व्याकरण से सर्वथा विरुद्ध है ॥६॥
विषय
आत्मा और परमात्मा में मित्रतां का सम्बन्ध।
भावार्थ
(इन्द्रस्य सखा) उस परमेश्वर का मित्र (सोमः) सोम-आत्मा, वा विद्वान् भक्त (दिवे दिवे) दिनों दिन (रयीणां पतिः) ऐश्वर्यों का स्वामी (सहस्र-धारः) सहस्रों वाणियों वा शक्तियों से युक्त (वाचम्-ईंखयः) स्तुतियों का करने वाला होकर भी (समुद्रः) समुद्र के तुल्य स्वयं रसों से पूर्ण होता है। (२) अथवा सोम सर्वोत्पादक प्रभु-समुद्रवत् रस का सागर, भीतरी वाणी का प्रेरक, सब ऐश्वर्यों का स्वामी, (इन्द्रस्य सखा) इस जीवात्मा का मित्र है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः–१-३ अन्धीगुः श्यावाश्विः। ४—६ ययातिर्नाहुषः। ७-९ नहुषो मानवः। १०-१२ मनुः सांवरणः। १३–१६ प्रजापतिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ६, ७, ९, ११—१४ निचृदनुष्टुप्। ४, ५, ८, १५, १६ अनुष्टुप्। १० पादनिचृदनुष्टुप्। २ निचृद् गायत्री। ३ विराड् गायत्री॥ षोडशर्चं सूक्तम्॥
विषय
वाचमीङ्खयः
पदार्थ
(सहस्त्रधारः) = हजारों प्रकार से धारण करनेवाला (सोमः) = सोम (पवते) = हमें प्राप्त होता है। यह सोम (समुद्रः) = [स+मुद्] आनन्द से युक्त है । (वाचं ईङ्खयः) = ज्ञान की वाणियों को हमारे में प्रेरित करनेवाला है यह सोम सुरक्षित होने पर आनन्द व ज्ञान के वर्धन का कारण बनता है । (सोम:) = यह सोम (रयीणां पतिः) = सब कोशों के ऐश्वर्यों का रक्षक है। यह (दिवे दिवे) = प्रतिदिन (इन्द्रस्य सखा) = जितेन्द्रिय पुरुष का मित्र है जितेन्द्रिय पुरुष में ही सोम का निवास होता है। और सुरक्षित होकर यह सब कोशों को उस-उस ऐश्वर्य से युक्त करता है । 'तेज- वीर्य बल व ओज-मन्यु व सहस्' सब इस सोम से ही प्राप्त होते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- सोम 'सहस्रधार, समुद्र, वाचमखय, रयिपति व इन्द्र सखा' है।
इंग्लिश (1)
Meaning
A thousand streams of Soma joy and enlightenment flow, inspiring and purifying. It is a bottomless ocean that rolls impelling the language and thought of new knowledge. It is the preserver, promoter and sustainer of all wealths and honours and a friend of the soul, inspiring and exalting us day by day.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वराला ‘सहस्रधार’ यासाठी म्हटले आहे की तो अनंत शक्तीयुक्त आहे. धारा शब्दाचा अर्थ येथे शक्ती आहे. सम्यग् द्रवन्ति भूतानि यस्मिन्स: ‘‘समुद्र’’ या उत्पत्तीने येथे समुद्र हे नाव परमेश्वराचे आहे. याच अभिप्रायाने उपनिषदात म्हटले आहे की (यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते येन जातानि जीवन्ते ) येथे (पवते) चा अर्थ सायणाचार्याने ‘क्षरति’ केलेला आहे. जो व्याकरणाच्या सर्वस्वी विरुद्ध आहे. ॥६॥
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