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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 101 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 101/ मन्त्र 12
    ऋषिः - मनुः सांवरणः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    ए॒ते पू॒ता वि॑प॒श्चित॒: सोमा॑सो॒ दध्या॑शिरः । सूर्या॑सो॒ न द॑र्श॒तासो॑ जिग॒त्नवो॑ ध्रु॒वा घृ॒ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒ते । पू॒ताः । वि॒पः॒ऽचितः॑ । सोमा॑सः । दधि॑ऽआशिरः । सूर्या॑सः । न । द॒र्श॒तासः॑ । जि॒ग॒त्नवः॑ । ध्रु॒वाः । घृ॒ते ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एते पूता विपश्चित: सोमासो दध्याशिरः । सूर्यासो न दर्शतासो जिगत्नवो ध्रुवा घृते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एते । पूताः । विपःऽचितः । सोमासः । दधिऽआशिरः । सूर्यासः । न । दर्शतासः । जिगत्नवः । ध्रुवाः । घृते ॥ ९.१०१.१२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 101; मन्त्र » 12
    अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 3; मन्त्र » 2
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (विपश्चितः) विज्ञानवर्धकाः (एते) एते परमात्मनो गुणाः (पूताः) ये च शुद्धाः (सोमासः) शान्त्यादिभावप्रदाश्च (दध्याशिरः) धृत्यादिसद्गुणानां धारयितारः (सूर्यासः, न) सूर्य इव (दर्शतासः) सर्वमार्गप्रकशकाः (जिगत्नवः) गतिशीलाः (घृते) नम्रान्तःकरणेषु (ध्रुवाः) स्थिरा भवन्ति ॥१२॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (विपश्चितः) विज्ञान के बढ़ानेवाले (एते) पूर्वोक्त, परमात्मा के विज्ञानादि गुण (पूताः) जो पवित्र हैं, (सोमासः) जो शान्त्यादि भावों के देनेवाले हैं, (दध्याशिरः) धृत्यादि सद्गुणों के धारण करनेवाले हैं, (सूर्यासः) सूर्य के (न) समान (दर्शतासः) सब मार्गों के प्रकाशक हैं, (जिगत्नवः) गीतशील (घृते) नम्रान्तःकरणों में (ध्रुवाः) स्थिर होते हैं ॥१२॥

    भावार्थ

    जो लोग साधनसम्पन्न होकर अपने शील को बनाते हैं, उनके अन्तःकरणरूप दर्पण में परमात्मा के सद्गुण अवश्यमेव प्रतिबिम्बित होते हैं ॥१२॥

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    विषय

    उनके उत्तम गुण।

    भावार्थ

    (एते) ये (पूताः) पवित्र हृदय और पवित्र आचार वाले (विपश्चितः) ज्ञानों का सञ्चय करने वाले, (सोमासः) ज्ञानी पुरुष, (दधि-आशिरः) ध्यान-धारणा में आश्रय लेने वाले, (सूर्यासः न) सूर्यों वा सूर्य किरणों के तुल्य (दर्शनासः) दर्शनीय और ओरों को सत्य तत्व का दर्शन कराने वाले, (जिगत्नवः) सदा आगे बढ़ने वाले होकर भी (धृते) धारण किये वा पकड़े हुए उद्देश्य वा व्रत में (ध्रुवाः) स्थिर, न डिगने वाले होते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः–१-३ अन्धीगुः श्यावाश्विः। ४—६ ययातिर्नाहुषः। ७-९ नहुषो मानवः। १०-१२ मनुः सांवरणः। १३–१६ प्रजापतिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ६, ७, ९, ११—१४ निचृदनुष्टुप्। ४, ५, ८, १५, १६ अनुष्टुप्। १० पादनिचृदनुष्टुप्। २ निचृद् गायत्री। ३ विराड् गायत्री॥ षोडशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    सूर्यासो न दर्शतासः

    पदार्थ

    (एते) = ये (पूताः) = पवित्र हुए हुए (सोमासः) = सोम वासनाओं के आक्रमण से न मलिन हुए हुए सोमकण (विपश्चितः) = हमें ज्ञानी बनाते हैं । बुद्धि को तीव्र करके ये हमारे ज्ञान को बढ़ाते हैं । (दध्याशिरः) = [दधि च आशी: च] ये धारण करनेवाले हैं [धत्ते] और शरीर में समन्तात् रोगकृमियों को शीर्ण करनेवाले हैं [आशृणान्ति] ये सोमकण (सूर्यासः न) = सूर्यों के समान (दर्शतासः) = दर्शनीय हैं। हमें खूब तेजस्वी व सूर्यसम दीप्त बनाते हैं। सूर्य की तरह ही (जिगत्नवः) = निरन्तर गमनशील हैं। (घृते) = ज्ञानदीप्ति के निमित्त (ध्रुवाः) = ध्रुव साधन हैं। निश्चय से ज्ञानदीप्ति को करनेवाले हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम ज्ञान को बढ़ाते हैं, धारण करते हैं व रोगकृमियों को नष्ट करते हैं। हमें सूर्यसम तेजस्वी बनाते हैं, क्रियाशीलता को उत्पन्न करते हैं, ज्ञानदीप्ति का निश्चित कारण हैं।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    These Soma streams, nourishing, energising, illuminating, are bright and beatific as the dawn and, vibrant but unfluctuating, they abide constant in the heart.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे लोक साधन संपन्न बनून आपले शील राखतात त्यांच्या अंत:करणरूपी दर्पणामध्ये परमात्म्याचे सद्गुण अवश्य प्रतिबिंबित होतात. ॥१२॥

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