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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 101 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 101/ मन्त्र 4
    ऋषिः - ययातिर्नाहुषः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    सु॒तासो॒ मधु॑मत्तमा॒: सोमा॒ इन्द्रा॑य म॒न्दिन॑: । प॒वित्र॑वन्तो अक्षरन्दे॒वान्ग॑च्छन्तु वो॒ मदा॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒तासः॑ । मधु॑मत्ऽतमाः । सोमाः॑ । इन्द्रा॑य । म॒न्दिनः॑ । प॒वित्र॑ऽवन्तः । अ॒क्ष॒र॒न् । दे॒वान् । ग॒च्छ॒न्तु॒ । वः॒ । मदाः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुतासो मधुमत्तमा: सोमा इन्द्राय मन्दिन: । पवित्रवन्तो अक्षरन्देवान्गच्छन्तु वो मदा: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सुतासः । मधुमत्ऽतमाः । सोमाः । इन्द्राय । मन्दिनः । पवित्रऽवन्तः । अक्षरन् । देवान् । गच्छन्तु । वः । मदाः ॥ ९.१०१.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 101; मन्त्र » 4
    अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 1; मन्त्र » 4
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सुतासः) आविर्भूताः (मन्दिनः) आह्लादकाः (मधुमत्तमाः) आनन्दमयाः (सोमाः) परमात्मसौम्यस्वभावाः (इन्द्राय) कर्मयोगिनं प्राप्नुवन्तु (वः, देवान्) युष्मान् दिव्यगुणान् विदुषः (पवित्रवन्तः) पवित्रतायुक्ताः (मदाः) आह्लादकगुणाः (अक्षरन्) आनन्दवृष्ट्या सह (गच्छन्तु) प्राप्नुवन्तु ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सुतासः) आविर्भाव को प्राप्त हुए (मधुमत्तमाः) अत्यन्त आनन्दमय (सोमाः) परमात्मा के सौम्य स्वभाव (मन्दिनः) जो अह्लादक हैं, वे (इन्द्राय) कर्मयोगी के लिये प्राप्त हों और (वः) तुम जो (देवान्) दिव्यगुणयुक्त विद्वान् हो, उनको (मदाः) वह आह्लादक गुण (पवित्रवन्तः) पवित्रतावाले (अक्षरन्) आनन्द की वृष्टि करते हुए (गच्छन्तु) प्राप्त हों ॥४॥

    भावार्थ

    परमात्मा के अपहतपाप्मादि धर्मों का धारण करना इस मन्त्र में वर्णन किया गया है अर्थात् परमात्मा के सौम्यस्वभावादिकों को जव जीव धारण कर लेता है, तो वह शुद्ध होकर ज्ञानयोगी व कर्मयोगी बन सकता है, अन्यथा नहीं ॥४॥

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    विषय

    शासकों के तुल्य विद्वानों का कर्तव्य।

    भावार्थ

    (मधुमत्तमाः) अति मधुर वचन बोलने वाले, (सुतासः सोमाः) अभिषिक्त शासकजन, (मन्दिनः) अति हर्षजनक, (पवित्रवन्तः) पवित्र पद, कर्त्तव्य वाले, (इन्द्राय अक्षरन्) उस ऐश्वर्यवान् प्रभु के लिये वेग से जावें। हे वीर शासको ! (वः अदाः) आप लोगों के समस्त सुख हर्षादि (देवान् गच्छतु) उत्तम पुरुषों को प्राप्त हों। अध्यात्म में—दीक्षित, अभिषिक्त, स्नात, सोम्य विद्वान्जन प्रभु परमेश्वर की प्राप्ति के लिये आगे वढें। उनके सब सुख, आनन्द कारी उपाय विद्वानों को प्राप्त हों।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः–१-३ अन्धीगुः श्यावाश्विः। ४—६ ययातिर्नाहुषः। ७-९ नहुषो मानवः। १०-१२ मनुः सांवरणः। १३–१६ प्रजापतिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ६, ७, ९, ११—१४ निचृदनुष्टुप्। ४, ५, ८, १५, १६ अनुष्टुप्। १० पादनिचृदनुष्टुप्। २ निचृद् गायत्री। ३ विराड् गायत्री॥ षोडशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    मधुमत्तमा:- मन्दिनः

    पदार्थ

    (सुतासः) = उत्पन्न हुए हुए (सोमा:) = सोम (मधुमत्तमा:) = अत्यन्त माधुर्य को लिये हुए हैं, सुरक्षित होने पर ये जीवन को मधुर बनाते हैं । (इन्द्राय) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिये ये (मन्दिनः) = हर्ष को देनेवाले हैं। (पवित्रवन्तः) = पवित्रता को करनेवाले ये सोम (अक्षरत्) = शरीर के अंग-प्रत्यंग में संचरित होते हैं । हे सोमकणो ! (वः मदा:) = तुम्हारे उल्लास (देवान् गच्छन्तु) = इन देववृत्ति वाले पुरुषों को प्राप्त हों । देववृत्ति वाले पुरुष ही सोम का रक्षण कर पाते हैं। वे ही सोम जनित उल्लास का अनुभव करते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोमकण 'माधुर्य, हर्ष, पवित्रता व उल्लास' को प्राप्त कराते हैं ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Filtered, felt and cleansed, honey sweet soma streams, pure and exhilarating, flow for Indra, the soul, and may the exhilarations reach you, noble favourites of divinity.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वराचे अपहतपाप्म इत्यादी धर्माचे धारण करणे हे या मंत्रात सांगितलेले आहे. अर्थात्, परमात्म्याचा सौग्य स्वभाव इत्यादींना जेव्हा जीव धारण करतो तेव्हा तो शुद्ध होऊन ज्ञानयोगी व कर्मयोगी बनू शकतो अन्यथा नाही. ॥४॥

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