ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 86/ मन्त्र 18
ऋषिः - सिकता निवावारी
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृज्जगती
स्वरः - निषादः
आ न॑: सोम सं॒यतं॑ पि॒प्युषी॒मिष॒मिन्दो॒ पव॑स्व॒ पव॑मानो अ॒स्रिध॑म् । या नो॒ दोह॑ते॒ त्रिरह॒न्नस॑श्चुषी क्षु॒मद्वाज॑व॒न्मधु॑मत्सु॒वीर्य॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठआ । नः॒ । सो॒म॒ । स॒म्ऽयत॑म् । पि॒प्युषी॑म् । इष॑म् । इन्दो॒ इति॑ । पव॑स्व । पव॑मानः । अ॒स्रिध॑म् । या । नः॒ । दोह॑ते । त्रिः । अह॑न् । अस॑श्चुषी । क्षु॒ऽमत् । वाज॑ऽवत् । मधु॑ऽमत् । सु॒ऽवीर्य॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ न: सोम संयतं पिप्युषीमिषमिन्दो पवस्व पवमानो अस्रिधम् । या नो दोहते त्रिरहन्नसश्चुषी क्षुमद्वाजवन्मधुमत्सुवीर्यम् ॥
स्वर रहित पद पाठआ । नः । सोम । सम्ऽयतम् । पिप्युषीम् । इषम् । इन्दो इति । पवस्व । पवमानः । अस्रिधम् । या । नः । दोहते । त्रिः । अहन् । असश्चुषी । क्षुऽमत् । वाजऽवत् । मधुऽमत् । सुऽवीर्यम् ॥ ९.८६.१८
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 86; मन्त्र » 18
अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 15; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 15; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सोम) हे परमात्मन् ! (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप ! (त्वं) (नः) अस्माकं (संयतं) सम्बन्धि अपि च (पिप्युषी) वृद्धियुक्तम् (इषं) ऐश्वर्य्यम् (अस्रिधं) अक्षयधनैः (आ, पवस्व) सर्वथा मां पवित्रयतु। (या) यतो हि (नः) अस्माकं (त्रिः, अहन्) भूतादित्रिकालेषु (असश्चुषी) अप्रतिबन्धं (क्षुमत्) महदैश्वर्य्यवत् (वाजवत्) बलयुक्तं (मधुमत्) मधुयुक्तं (सुवीर्य्यं) बलकारकमैश्वर्य्यं भवान् (दोहते) परिपूरयतु ॥१८॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(सोम) हे परमात्मन् ! (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप ! आप (नः) हमारे (संयतं) सम्बन्धी और (पिप्युषी) वृद्धियुक्त (इषं) ऐश्वर्य को (अस्रिधे) जो अक्षय हो, ऐसे धन से (आपवस्व) सब ओर से हमको पवित्र करें। (या) जो कि (नः) हमारे सम्बन्ध में (त्रिरहन्) भूत, भविष्य, वर्तमान तीनों कालों में (असश्चुषी) प्रतिबन्धरहित (क्षुमत्) बहुत ऐश्वर्य्यवाले (वाजवत्) बलवाले (मधुमत्) मधुरयुक्त (सुवीर्य) बल करनेवाले ऐश्वर्य को आप (दोहते) परिपूर्ण करें ॥१८॥
भावार्थ
स्वनियमानुकूल चलनेवाले पुरुषों के लिये परमात्मा अक्षय धन को प्रदान करते हैं ॥१८॥
विषय
उत्तम सम्पद्, बल, वीर्य आदि की प्रार्थना।
भावार्थ
हे (सोम) ऐश्वर्यवान् प्रभो ! हे (इन्दो) तेजोमय ! (नः) हमें (संयन्तं) सम्यक् मार्ग में जानेवाली, (पिष्युषीम्) बढ़ती हुई (अस्त्रिधम्) नाश न करनेवाली (ऊर्जं नः आपवस्व) हमें सत् इच्छा को उत्तम वर्षा और अन्न सम्पदा के समान प्राप्त करा। (या) जो (असश्चुषी) निःसंग और विघ्नरहित होकर (अहन्) दिनमें (त्रिः) तीनबार (क्षुमत्) उत्तम उपदेश युक्त, (वाजवत्) बलयुक्त, (मधुमत्) मधुर अन्नरस से युक्त (सु-वीर्यम्) उत्तम बल वीर्य, (दोहते) प्रदान करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः—१—१० आकृष्टामाषाः। ११–२० सिकता निवावरी। २१–३० पृश्नयोऽजाः। ३१-४० त्रय ऋषिगणाः। ४१—४५ अत्रिः। ४६–४८ गृत्समदः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ६, २१, २६, ३३, ४० जगती। २, ७, ८, ११, १२,१७, २०, २३, ३०, ३१, ३४, ३५, ३६, ३८, ३९, ४२, ४४, ४७ विराड् जगती। ३–५, ९, १०, १३, १६, १८, १९, २२, २५, २७, ३२, ३७, ४१, ४६ निचृज्जगती। १४, १५, २८, २९, ४३, ४८ पादनिचृज्जगती। २४ आर्ची जगती। ४५ आर्ची स्वराड् जगती॥
विषय
'क्षुमत् वाजवत् मधुमत्'
पदार्थ
हे (सोम) = वीर्यशक्ते! (इन्दो) = हमें शक्तिशाली बनानेवाले सोम तू (नः) = हमारे लिये (पवमानः) = पवित्रता को करता हुआ (इषम्) = प्रभु प्रेरणा को आपवस्व प्राप्त करा, जो प्रेरणा (संयतम्) = हमें उत्तम मार्ग से ले चलनेवाली है। (पिप्युषीम्) = हमारा आप्यापन करनेवाली है तथा (अस्त्रिधम्) = हमें हिंसित नहीं होने देती । सोमरक्षण से पवित्र हृदयवाले होकर हम प्रभु प्रेरणा को सुनें यह प्रेरणा हमें सन्मार्ग पर ले चलनेवाली, हमारा वर्धन करनेवाली व हमें हिंसित होने से बचानेवाली होगी। या जो प्रेरणा (असश्चषी) = हमें आसक्त न होने देती हुई (नः) = हमारे लिये (अहन्) = इस जीवनरूपी दिन में (त्रिः) = तीन बार-प्रातः सवन माध्यन्दिन सवन व तृतीय सवन में (सुवीर्यम्) = उत्तम शक्ति का (दोहते) = प्रपूरण करती है। उस उत्तम शक्ति का, जो (क्षुमत्) = ज्ञान के शब्दोंवाली है [क्षुशब्दे] (वाजवत्) = शरीर के बलवाली है तथा (मधुमत्) = मन के माधुर्यवाली है।
भावार्थ
भावार्थ- सोम हमें पवित्र बनाकर प्रभु प्रेरणा को सुनाता है, जो प्रेरणा हमें सन्मार्ग पर ले चलती है, हमारा वर्धन करती है और हिंसन नहीं होने देती। यह प्रेरणा ही हमारे जीवन के प्रारम्भ, मध्य व अन्त में, अर्थात् सदा उस उत्तम शक्ति को भरती है जो 'ज्ञान, बल व माधुर्य' वाली है ।
पदार्थ
(सोम) हे परमात्मन् ! (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप ! आप (नः) हमारे (संयतं) सम्बन्धी और (पिप्युषीम्) वृद्धियुक्त (इषं) ऐश्वर्य को (अस्रिधम्) जो अक्षय हो, ऐसे धन से (आपवस्व) सब ओर से हमको पवित्र करें। (या) जो कि (नः) हमारे सम्बन्ध में (त्रिरहन्) भूत, भविष्य, वर्तमान तीनों कालों में (असश्चुषी) प्रतिबन्धरहित (क्षुमत्) बहुत ऐश्वर्य्यवाले (वाजवत्) बलवाले (मधुमत्) मधुरयुक्त (सुवीर्य) बल करनेवाले ऐश्वर्य को आप (दोहते) परिपूर्ण करें ॥१८॥
भावार्थ
स्वनियमानुकूल चलनेवाले पुरुषों के लिये परमात्मा अक्षय धन को प्रदान करते हैं ॥१८॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, lord of light, Indu, spirit of beauty and bliss, pure and purifying divinity, bless us with controlled and well directed ever increasing food and energy, knowledge and culture of imperishable character and value which may for all time past, present and future without error, violence, violation or obstruction bring us and continue to bring for us honour, dignity and heroic courage and forbearance full of energy, excellence and sweetness.
मराठी (1)
भावार्थ
स्वनियमानुकूल चालणाऱ्या पुरुषांसाठी परमात्मा अक्षय धन प्रदान करतो. ॥१८॥
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