ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 86/ मन्त्र 2
प्र ते॒ मदा॑सो मदि॒रास॑ आ॒शवोऽसृ॑क्षत॒ रथ्या॑सो॒ यथा॒ पृथ॑क् । धे॒नुर्न व॒त्सं पय॑सा॒भि व॒ज्रिण॒मिन्द्र॒मिन्द॑वो॒ मधु॑मन्त ऊ॒र्मय॑: ॥
स्वर सहित पद पाठप्र । ते॒ । मदा॑सः । म॒दि॒रासः॑ । आ॒शवः । असृ॑क्षत । रथ्या॑सः । यथा॑ । पृथ॑क् । धे॒नुः । न । व॒त्सम् । पय॑सा । अ॒भि । व॒ज्रिण॑म् । इन्द्र॑म् । इन्द॑वः । मधु॑ऽमन्तः । ऊ॒र्मयः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र ते मदासो मदिरास आशवोऽसृक्षत रथ्यासो यथा पृथक् । धेनुर्न वत्सं पयसाभि वज्रिणमिन्द्रमिन्दवो मधुमन्त ऊर्मय: ॥
स्वर रहित पद पाठप्र । ते । मदासः । मदिरासः । आशवः । असृक्षत । रथ्यासः । यथा । पृथक् । धेनुः । न । वत्सम् । पयसा । अभि । वज्रिणम् । इन्द्रम् । इन्दवः । मधुऽमन्तः । ऊर्मयः ॥ ९.८६.२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 86; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 12; मन्त्र » 2
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अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 12; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(वज्रिणं, इन्द्रं) विद्युच्छक्तिधारकाय कर्म्मयोगिने (धेनुः) गौः (न) यथा (वत्सं) निजपुत्रकं (पयसा) दुग्धेन (अभि, गच्छति) प्राप्नोति, एवमेव (इन्दवः) परमात्मनः प्रकाशरूपस्वभावाः (मधुमन्तः) ये आनन्दमयाः (ऊर्मयः) अपि च समुद्रस्य तरङ्गा इव गतिशीलाः सन्ति। ते (मदासः) आह्लादकाय (मदिरासः) उत्तेजकाय (आशवः) व्याप्तिशीलस्वभावाय (ते) तुभ्यं (प्र, असृक्षत) विरचिताः (यथा) येन प्रकारेण (रथ्यासः) रथगत्यै अश्वादयः (पृथक्) भिन्ना भिन्ना विरचितास्तथैव (ते) तुभ्यं हे उपासक ! उक्तस्वाभावा रचिताः ॥२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(वज्रिणम्, इन्द्रम्) विद्युत् की शक्ति रखनेवाले कर्म्मयोगी के लिये (धेनुः) गौ (न) जैसे (वत्सं) अपने बच्चे को (पयसा) दुग्ध के द्वारा (अभिगच्छति) प्राप्त होती है, इसी प्रकार (इन्दवः) परमात्मा के प्रकाशरूप स्वभाव (मधुमन्तः) जो आनन्दमय हैं (ऊर्म्मयः) और समुद्र की लहरों के समान गतिशील हैं, वे (मदासः) आह्लादक (मदिरासः) उत्तेजक (आशवः) व्याप्तिशील स्वभाव (ते) तुम्हारे लिये (प्रासृक्षत) रचे गये हैं। (यथा) जैसे (रथ्यासः) रथ की गति के लिये अश्वादिक (पृथक्) भिन्न-भिन्न रचे गये हैं, इसी प्रकार (ते) तुम्हारे लिये हे उपासक ! उक्त स्वभाव रचे गये हैं ॥२॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे उपासक ! तुम्हारे शरीररूपी रथ के लिये ज्ञान के विचित्र भाव घोड़ों के समान जिस प्रकार घोड़े रथ को गतिशील बनाते हैं, इसी प्रकार विज्ञानी पुरुष की चित्तवृत्तियें उसके शरीर को गतिशील बनाती हैं ॥२॥
विषय
राजा के सैनिकोंवत् उपासकों के कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे प्रभो ! (ते) तेरे (आशवः) व्यापनशील, शीघ्र कार्य करने में समर्थ कुशल जन, (मदासः) प्रभु के आनन्द के तरंग (मदिरासः) अन्यों को भी आनन्द प्रसन्न करने वाले होकर (रथ्यासः यथा) रथ योग्य अश्वों वा रथ के संचालन में कुशल महारथों के तुल्य (पृथक् प्र असृक्षत) पृथक् २ स्वतन्त्र रूप से उत्पन्न होते और आगे बढ़ते हैं और (धेनुः वत्सं पयसा अभि) जिस प्रकार गौ अपने दूध से बछड़े को प्राप्त हो, उसे पुष्ट करती है, उसी प्रकार वे (मधुमन्तः) मधुर सुख और ज्ञान वाले (ऊर्मयः) उन्नत विचारवान्, उत्साही पुरुष और तरङ्गवत् उत्पन्न आनन्द रस (इन्दवः) तेजस्वी और आल्हादजनक (वज्रिणम् इन्द्रम् अभि) बलशाली ऐश्वर्ययुक्त आत्मा को अपने ज्ञान वीर्य से प्राप्त होते हैं। वे राजा का सैनिकों के तुल्य ही आश्रय करते हैं।
टिप्पणी
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः—१—१० आकृष्टामाषाः। ११–२० सिकता निवावरी। २१–३० पृश्नयोऽजाः। ३१-४० त्रय ऋषिगणाः। ४१—४५ अत्रिः। ४६–४८ गृत्समदः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ६, २१, २६, ३३, ४० जगती। २, ७, ८, ११, १२,१७, २०, २३, ३०, ३१, ३४, ३५, ३६, ३८, ३९, ४२, ४४, ४७ विराड् जगती। ३–५, ९, १०, १३, १६, १८, १९, २२, २५, २७, ३२, ३७, ४१, ४६ निचृज्जगती। १४, १५, २८, २९, ४३, ४८ पादनिचृज्जगती। २४ आर्ची जगती। ४५ आर्ची स्वराड् जगती॥
विषय
मधुमना ऊर्मयः मदिरासः
पदार्थ
[१] हे सोम ! (ते) = तेरे (मदासः) = उल्लास के जनक (मदिरासः) = मस्ती को लानेवाले (आशवः) = शरीर में व्याप्त होनेवाले रस (प्र असृक्षत) = प्रकर्षेण सृष्ट होते हैं। (यथा) = जैसे (रथ्यासः) = रथवहन कुशल घोड़े, उसी प्रकार शरीर रथ का वहन करनेवाले ये सोमकण (पृथक्) = अलग-अलग अंग- प्रत्यंग में सृष्ट होते हैं । [२] (न) = जैसे (धेनु:) = दुधार गौ (वत्सम्) = बछड़े को (पयसा) = दूध से प्राप्त होती है, उसी प्रकार (इन्दवः) = ये सोमकण (वज्रिणे) = क्रियाशील (इन्द्रम्) = जितेन्द्रिय पुरुष के (अभि) = ओर प्राप्त होते हैं। ये उसके लिये (मधुमन्तः) = अन्यन्त माधुर्य को लिये हुए होते हैं और (ऊर्मयः) = [ऊर्मि light] ये उसके जीवन में प्रकाश को प्राप्त करानेवाले होते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोमकण जीवन को मधुर उल्लासमय व प्रकाशमय बनाते हैं ।
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, spirit of peace, power and pleasure of divinity, the vibrations of your joy, ecstatic and instant, rise and flow, beautiful and pleasing, separate but in successive showers like drops in a ceaseless chain and, as the mother cow’s milk flows for the calf, the delicious and shining waves of honey sweets flow for the soul wielding the spiritual power of thunder.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो की हे उपासका! तुझ्या शरीररूपी रथासाठी ज्ञानाचे विचित्र भाव घोड्याप्रमाणे आहेत. ज्या प्रकारे घोडे रथाला गतिशील करतात त्याचप्रकारे विज्ञानी पुरुषाच्या चित्तवृत्ती त्याच्या शरीराला गतिशील करतात. ॥२॥
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