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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 5 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 28
    ऋषिः - कौशिकः देवता - विष्णुक्रमः छन्दः - त्र्यवसाना षट्पदा यथाक्षरं शक्वरी, अतिशक्वरी सूक्तम् - विजय प्राप्ति सूक्त
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    विष्णोः॒ क्रमो॑ऽसि सपत्न॒हा दिक्सं॑शितो॒ मन॑स्तेजाः। दिशो॒ऽनु॒ वि क्र॑मे॒ऽहं दि॒ग्भ्यस्तं निर्भ॑जामो॒ यो॒स्मान्द्वेष्टि॒ यं व॒यं द्वि॒ष्मः। स मा जी॑वी॒त्तं प्रा॒णो ज॑हातु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विष्णो॑: । क्रम॑: । अ॒सि॒ । स॒प॒त्न॒ऽहा । दिक्ऽसं॑शित: । मन॑:ऽतेजा: । दिश॑: । अनु॑ । वि । क्र॒मे॒ । अ॒हम् । दि॒क्ऽभ्य: । तम् । नि: । भ॒जा॒म॒: । य: । अ॒स्मान् । द्वेष्टि॑ । यम् । व॒यम् । द्वि॒ष्म: । स: । मा । जी॒वी॒त् । तम् । प्रा॒ण: । ज॒हा॒तु॒ ॥५.२८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विष्णोः क्रमोऽसि सपत्नहा दिक्संशितो मनस्तेजाः। दिशोऽनु वि क्रमेऽहं दिग्भ्यस्तं निर्भजामो योस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः। स मा जीवीत्तं प्राणो जहातु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विष्णो: । क्रम: । असि । सपत्नऽहा । दिक्ऽसंशित: । मन:ऽतेजा: । दिश: । अनु । वि । क्रमे । अहम् । दिक्ऽभ्य: । तम् । नि: । भजाम: । य: । अस्मान् । द्वेष्टि । यम् । वयम् । द्विष्म: । स: । मा । जीवीत् । तम् । प्राण: । जहातु ॥५.२८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 5; मन्त्र » 28
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    विद्वानों के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    तू (विष्णोः) विष्णु [सर्वव्यापक परमेश्वर] से, (क्रमः) पराक्रमयुक्त, (सपत्नहा) वैरियों का नाश करने हारा (दिक्संशितः) दिशाओं से तीक्ष्ण किया गया, (मनस्तेजाः) मन से तेज पाया हुआ (असि) है। (दिशः अनु) दिशाओं के पीछे (अहम्) मैं (वि क्रमे) पराक्रम करता हूँ, (दिग्भ्यः) दिशाओं से (तम्) उस [शत्रु] को.... म० २५ ॥२८॥

    भावार्थ

    मनुष्य दिशाओं के और मन के ज्ञान से उपकार लेकर उपकारी होवें ॥२८॥

    टिप्पणी

    २८−(दिक्संशितः) दिक्सकाशात् तीक्ष्णीकृतः (मनस्तेजाः) मनसः प्राप्ततेजाः। अन्यत् सुगमं गतं च ॥

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    विषय

    दिक्संशितो मनस्तेजा:

    पदार्थ

    १. (विष्णोः क्रमः असि) = तू पवित्र पुरुष के पुरुषार्थवाला है, इसी से सपनहा रोग व वासनारूप शत्रुओं को नष्ट करनेवाला है। (दिक् संशित:) = इस शरीर-पिण्ड की 'पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण' सब दिशाओं में तू तीव्र बना है। (मनस्तेजा:) = सभी दृष्टियों से स्वस्थ होने के कारण तू मानस तेज को प्राप्त हुआ है-तेजस्वी मनवाला बना है। २. तू निश्चय कर कि (अहम्) = मैं (दिश: अनु) = इन सब दिशाओं का लक्ष्य करके सभी प्रकार से स्वास्थ्य के लिए (विक्रमे) = पुरुषार्थवाला होता हूँ। तम्० [शेष पूर्ववत्]

    भावार्थ

    पवित्र कर्मों के द्वारा, शरीर की सब दिशाओं को सशक्त बनाकर, मनस्वी होता हुआ मैं सब शत्रुओं को परास्त करता हूँ।

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    भाषार्थ

    (विष्णोः) विष्णु के (क्रमः) पराक्रम वाला (असि) तू है, (सपत्नहा) सपत्न का हनन करने वाला है, (दिक्संशितः) दिशाओं में तेज अर्थात् उग्र रूप (मनस्तेजाः) तथा मन के सदृश तेजस्वी तू है। (अहम्) मैं (दिशः अनु) दिशाओं में (विक्रमे) विक्रम तथा पराक्रम वाला हूं, (दिग्भ्यः) दिशाओं से (तम्) उसे (निर्भजामः) हम भाग रहित करते हैं (यः) जोकि (अस्मान् द्वेष्टि) हमारे साथ द्वेष करता है (यम्) और जिस के साथ प्रतीकार रूप में (वयम् द्विष्मः) हम द्वेष करते हैं। (सः) वह (मा)(जीवीत्) जीवित रहे (तम्) उसे (प्राणः) प्राण (जहातु) छोड़ जाय।

    टिप्पणी

    [दिग्भ्यः, जब सूर्य, भूमध्यरेखा (Equator) पर मार्च और सितम्बर में होता है तब की पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण दिशाओं को दिग्भ्यः कहा है। इन दो कालों में न अधिक सर्दी होती है और न अधिक गर्मी अतः कार्यों के निमित्त मन अधिक स्फूर्ति वाला हो जाता है। मन के सदृश स्फूर्ति या वेग वाला और कोई पदार्थ नहीं। क्षण में यह द्युलोक तथा उस से परे पहुंच जाता है। मन्त्र (२७) में द्युलोक तक विक्रम करने का निर्देश हुआ है। वहां तक पहुंचने के लिये अतिशीघ्र गति चाहिये। इस अतिशीघ्र गति में मन को दृष्टान्त रूप में मन्त्र में कहा है। इस प्रकार मन्त्र २७, २८ में परस्पर सम्बन्ध है। शेष अभिप्राय (मन्त्र २५) के सदृश]।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Song of Victory

    Meaning

    You are Vishnu’s stride of power and presence, subduer of adversaries, strengthened, honed and perfected by space, blest with the refulgence of cosmic mind. I strive and advance in pursuance of the boundlessness of space. We strike out those restrictions and negativities from our life space and mind which restrict us and which we reject. Closeness and negativity must not survive to thrive. Let even life energy forsake that negativity and negation.

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    Translation

    You are the stride (krama) of the all-prevading Lord (Visņu) slayer of rivals, sharpened by the quarters, full of mind’s might (manas-tejah). I stride forth on the quarters (dik). From the quarters (digbhyah), we drive out him, who hates us and whom we do hate. May he not live. May the vital breath quit him.

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    Translation

    O King! you are the representative of Vishnu, the All-pervading God amongst the subjects, you are the slayer of enemies, you are praised in the regions and you possess the strength and vigor of mind. You should think “I will play my glorious part in regions”. So that we bar from regions that man who hates me and whom we abhor. Let him not be alive and let the vital air abondon him.

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    Translation

    O King, thou followest the dictate of God and art the protector of the people like Him. Thou art foe-slayer. Thou art the master of all quarters. Thou art full of beauty like the mind. I, as king, consider it my duty to perform heroic deeds in all quarters. We, the subjects, expell from all quarters, him who hates us and whom we dislike. Let him not live, let vital breath desert him.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २८−(दिक्संशितः) दिक्सकाशात् तीक्ष्णीकृतः (मनस्तेजाः) मनसः प्राप्ततेजाः। अन्यत् सुगमं गतं च ॥

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    हिंगलिश (1)

    Subject

    दिक्संशितो मनस्तेजाः ।दिशो- सम्वत्सर की प्रत्येक दशा ऋतु में मन का उत्साह बनाए रखना – गर्मी सर्दी बरसात सब दशाओं में पूर्णरूप से उत्साहित रह कर काम करना अपना दायित्व निभाना

    Word Meaning

    विष्णु के संसार के पालन कर्त्ता कार्यक्षेत्र में पराक्रमी बन कर “गर्मी सर्दी बरसात सब दशाओं में पूर्णरूप से उत्साहित रह कर काम करना अपना दायित्व ” एक क्रम से (योजनाबद्ध ढंग से ) कर्म करने से सब शत्रुरूपि विघ्न बाधाओं रुकावटों पर विजय पानी होती है | और जो हमारे (इस वेदाधारित ) सृष्टि पालन धर्म की अवहेलना करते है हम से द्वेष करते है वे हमारी सब उपलब्धियों समृद्धियों से वंचित रहेगे और स्वयं ही नष्ट हो जाएंगे |

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