अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 38
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - मन्त्रोक्ता
छन्दः - पुरउष्णिक्
सूक्तम् - विजय प्राप्ति सूक्त
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दिशो॒ ज्योति॑ष्मतीर॒भ्याव॑र्ते। ता मे॒ द्रवि॑णं यच्छन्तु॒ ता मे॑ ब्राह्मणवर्च॒सम् ॥
स्वर सहित पद पाठदिश॑: । ज्योति॑ष्मती: । अ॒भि॒ऽआव॑र्ते । ता: । मे॒ । द्रवि॑णम् । य॒च्छ॒न्तु॒ । ता: । मे॒ । ब्रा॒ह्म॒ण॒ऽव॒र्च॒सम् ॥५.३८॥
स्वर रहित मन्त्र
दिशो ज्योतिष्मतीरभ्यावर्ते। ता मे द्रविणं यच्छन्तु ता मे ब्राह्मणवर्चसम् ॥
स्वर रहित पद पाठदिश: । ज्योतिष्मती: । अभिऽआवर्ते । ता: । मे । द्रविणम् । यच्छन्तु । ता: । मे । ब्राह्मणऽवर्चसम् ॥५.३८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
विद्वानों के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(ज्योतिष्मतीः) प्रकाशमयी (दिशः) दिशाओं की ओर (अभ्यावर्ते) मैं घूमता हूँ। (ताः) वे [दिशाएँ] (मे) मुझे (द्रविणम्) बल और (ताः) वे (मे) मुझे (ब्राह्मणवर्चसम्) ब्राह्मण [ब्रह्मज्ञानी] का प्रताप (यच्छन्तु) देवें ॥३८॥
भावार्थ
मनुष्य सब दिशाओं से विज्ञान द्वारा बल प्राप्त करके ईश्वर आज्ञा का पालन करे ॥३८॥
टिप्पणी
३८−(दिशः) प्राच्यादीः (ज्योतिष्मतीः) प्रकाशवतीः (अभ्यावर्ते) अभीत्य वर्तनं करोमि (ताः) दिशः (यच्छन्तु) ददतु। अन्यत् पूर्ववत् ॥
विषय
दिशाएँ, सप्तर्षि, ब्रह्म, ब्राह्मण
पदार्थ
१. मैं इन (ज्योतिषमती: दिश: अभि आवर्ते) = ज्योतिर्मय दिशाओं की ओर आवर्तनवाला होता है। प्रतिदिन सन्ध्या में इनका ध्यान करता हुआ इनसे आगे बढ़ने की [प्राची], नन बनने की [अवाची], इन्द्रियों को विषयों से वापस लौटाने की [प्रतीची] व ऊपर उठने की [उदीची]' प्रेरणा प्राप्त करता हूँ। २. इसी प्रकार मैं (सप्तऋषीन् अभि आवर्ते) = सात ऋषियों की ओर आवर्तनवाला होता हूँ। 'गोतम' ऋषि का स्मरण करके प्रशस्त इन्द्रियोंवाला [गावः इन्द्रियणि] बनता हूँ। 'भरद्वाज' का स्मरण मुझे शक्तिभरण का उपदेश देता है। विश्वामित्र' की तरह मैं भी सभी के प्रति प्रेमवाला होता हूँ। जाठराग्नि को न बुझने देकर 'जमदग्नि' बनता हूँ। उत्तम वसुओंवाला 'वसिष्ठ' बनता हुआ 'कश्यप'-ज्ञानी बनने के लिए अन्न करता हूँ और इसप्रकार 'अत्रि'-'काम, क्रोध, लोभ' इन तीनों से ऊपर उठता हूँ। २. (ब्रह्म अभि आवर्ते) = मैं अपने प्रत्येक अवकाश के क्षण में ज्ञान की ओर गतिवाला होता हूँ। इसी उद्देश्य से (ब्राह्मणान् अभि आवर्ते) = ज्ञानियों की ओर आवर्तनवाला होता हूँ। इनके सम्पर्क से ज्ञानी बनता हूँ। ये सब बातें मुझे द्रविण व ब्रह्मवर्चस् प्राप्त कराएँ।
भावार्थ
दिशाओं से प्रेरणा लेता हुआ, ससऋषियों के समान आचरण करता हुआ, अवकाश के प्रत्येक क्षण को ज्ञान-प्राप्ति में लगाता हुआ, ज्ञानियों के संपर्क में चलता हुआ मैं "द्रविण व ब्रह्मवर्चस्' प्राप्त करूँ।
यह 'द्रविण के साथ ब्रह्मवर्चस्' वाला व्यक्ति विशिष्ट हव्योंवाला होता है-उत्तम त्यागवाला बनता है। यज्ञों को करता हुआ यह "विहव्य' अगले नौ मन्त्रों का ऋषि है -
भाषार्थ
(ज्योतिष्मतीः) ज्योति वाली (दिशः अभि) दिशाओं की ओर (आवर्ते) मैं सार्वभौमशासक आवर्तन करता हूं, आता हूं। (ताः) वे (मे) मुझे (द्रविणम्) बल या धन (यच्छतु) देवें, (ताः) वे (मे) मुझे (ब्राह्मणवर्चसम्) ब्राह्मणों की दीप्ति देवें।
टिप्पणी
[सूर्य मकरराशि के पश्चात् उत्तर की ओर प्रयाण आरम्भ करता है। इस प्रयाण में उत्तर की ओर उस की ज्योति बढ़ती जाती है। दक्षिण की ओर जाते हुए उस की ज्योति, उत्तर की ओर, दिन प्रतिदिन घटती जाती है। सार्वभौम शासक भी शासन कार्य में ज्योति का अभिलाषी है। यह ज्योति है ज्ञान ज्योति। यह ज्ञान ज्योति शासक के लिये वास्तविक बल या धन है। इस के निमित्त वह ब्राह्मणों की ज्योति चाहता है। ब्राह्मण ज्ञानज्योति वाले होते हैं, यह ब्राह्मणों की ज्योति है, ब्राह्मणवर्चस है]।
इंग्लिश (4)
Subject
The Song of Victory
Meaning
I turn and advance in the directions of light and enlightenment. May these give me strength and wealth of honour and glory of the Brahmanic order of peace and splendour.
Translation
I turn towards the quarters full of light (diso-jyotismatīh); may they (feminine) grant me wealth; may they grant me an intellectual person’s lusture.
Translation
May I follow the directions full of splendor and let them give me wealth and let them become the source of making me glorious with the glory of Brahmana, the man who knows the Veda and God.
Translation
I go to the regions bright with splendor. May they bestow upon me wealth and glory of knowledge.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३८−(दिशः) प्राच्यादीः (ज्योतिष्मतीः) प्रकाशवतीः (अभ्यावर्ते) अभीत्य वर्तनं करोमि (ताः) दिशः (यच्छन्तु) ददतु। अन्यत् पूर्ववत् ॥
हिंगलिश (1)
Subject
AV10.5.38 सब छह दिशाओं से हमें ऐसा सब धन प्राप्त हो जिस से हमारे अंदर ब्राह्मण वृत्तियों की तेजस्विता और सामर्थ्य उत्पन्न हो |
Word Meaning
AV10.5.38 सब छह दिशाओं से हमें ऐसा सब धन प्राप्त हो जिस से हमारे अंदर ब्राह्मण वृत्तियों की तेजस्विता और सामर्थ्य उत्पन्न हो |
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