अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 49
ऋषिः - सिन्धुद्वीपः
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - विजय प्राप्ति सूक्त
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परा॑ शृणीहि॒ तप॑सा यातु॒धाना॒न्परा॑ग्ने॒ रक्षो॒ हर॑सा शृणीहि। परा॑र्चिषा॒ मूर॑देवाञ्छृणीहि॒ परा॑सु॒तृपः॒ शोशु॑चतः शृणीहि ॥
स्वर सहित पद पाठपरा॑ । शृ॒णी॒हि॒ । तप॑सा । या॒तु॒ऽधाना॑न् । परा॑ । अ॒ग्ने॒ । रक्ष॑: । हर॑सा । शृ॒णी॒हि॒ । परा॑ । अ॒र्चिषा॑ । मूर॑ऽदेवान् । शृ॒णी॒हि॒ । परा॑ । अ॒सु॒ऽतृप॑: । शोशु॑चत: । शृ॒णी॒हि॒ ॥५.४९॥
स्वर रहित मन्त्र
परा शृणीहि तपसा यातुधानान्पराग्ने रक्षो हरसा शृणीहि। परार्चिषा मूरदेवाञ्छृणीहि परासुतृपः शोशुचतः शृणीहि ॥
स्वर रहित पद पाठपरा । शृणीहि । तपसा । यातुऽधानान् । परा । अग्ने । रक्ष: । हरसा । शृणीहि । परा । अर्चिषा । मूरऽदेवान् । शृणीहि । परा । असुऽतृप: । शोशुचत: । शृणीहि ॥५.४९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
शत्रुओं के नाश का उपदेश।
पदार्थ
(अग्ने) हे अग्नि [समान तेजस्वी राजन् !] (तपसा) अपने तप [ऐश्वर्य वा प्रताप] से (यातुधानान्) दुःखदायिओं को (परा शृणीहि) कुचल डाल, (रक्षः) राक्षसों [दुराचारियों वा रोगों] को (हरसा) अपने बल से (परा शृणीहि) मिटा दे। (अर्चिषा) अपने तेज से (मूरदेवान्) मूढ़ [निर्बुद्धि] व्यवहारवालों को (परा शृणीहि) नाश कर दे, (शोशुचतः) अत्यन्त दमकते हुए, (असुतृपः) [दूसरों को] प्राणों से तृप्त होनेवालों को (परा शृणीहि) चूर-चूर कर दे ॥४९॥
भावार्थ
राजा अत्यन्त क्लेशदायक प्राणियों के नाश करने में सदा उद्यत रहे ॥४९॥ यह मन्त्र आ चुका है-अ० ८।३।१३ ॥
टिप्पणी
४९−अयं मन्त्रो व्याख्यातः-अ० ८।३।१३ ॥
पदार्थ
इन मन्त्रों का भाष्य अथर्व० ८।३।१२-१३ पर देखिए।
भाषार्थ
(अग्ने) हे अग्रणी प्रधानमन्त्रिन् ! (तपसा) निज तापक शक्ति द्वारा (परा) पराङ्मुख हुए (यातुधानान्) यातनाओं के निधानों अर्थात् प्रजा को पीड़ित करने वालों को (शृणीहि) तू विशीर्ण कर, विनष्ट कर, (परा) पराङ्मुख हुए (रक्षः) राक्षस स्वभाव वाले को (हरसा) प्राणापहारक तेज द्वारा (शृणीहि) तू विशीर्ण कर, विनष्ट कर (परा) पराङ्मुख हुए (मूरदेवान्) मूढ़ अर्थात् अज्ञानी, देवान् अर्थात् मदमस्तों को (अर्चिषा) निज दीप्ति द्वारा (शृणीहि) तू विशीर्ण कर, विनष्ट कर, (परा) पराङ्मुख हुए (शोशुचतः) प्रति उद्दीप्त उद्दण्ड हुओं, (असुतृपः) प्रजा के प्राणों द्वारा अपने को तृप्त करने वालों को (शृणीहि) विशीर्ण कर, विनष्ट कर।
टिप्पणी
[मन्त्र ४८ के अनुसार यदि फटकार द्वारा सफलता नहीं मिलती तो यातुधान आादि का विनाश करना ही राज्य व्यवस्था के लिये श्रेयस्कर है। परा= राज्यव्यवस्था से पराङ्मुख हुए, उस की प्रवाह न कर, यथेच्छाचारी लोग]।
इंग्लिश (4)
Subject
The Song of Victory
Meaning
Hey Agni, with your heat, shatter the evil doers. With power and passion, crush the demons. With your flames, burn off the fools and wastours. Scorching the ogres, throw them out.
Translation
O fire-divine, crush all the undesirable leaders of opposition; you may have to use fire against them. They have been misguiding and exciting our people. Among them are such persons, bent upon taking our lives. (Also Av. VIII.3.13)
Translation
O King exterminate the wickeds with fervent heat of anger destroy the hypocritic persons and remove those men who are engaged day and night in their own eating and drinking and are burning with their own zeal.
Translation
O King, crush the tormentors with thy fervour, consume the demons with thy wrath, destroy the fools with thy fiery splendor, destroy the blazing ones, the insatiable cannibals!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४९−अयं मन्त्रो व्याख्यातः-अ० ८।३।१३ ॥
हिंगलिश (1)
Subject
अपरिग्रह – निस्वार्थ जीवन शैलि
Word Meaning
तप के द्वारा पीड़ा देने वालों को विनष्ट करो ( जिस जीवन में तप की कमी आ जाती है तब भोग वृत्ति बढ़ जाती है , मनुष्य औरो को पीड़ा देने शोषण करने वाले बन जाते हैं | हे अग्रणी जनों नेतृत्व प्रदान करने वाले जनों आप राक्षसी वृत्तियों को दूर करने वाले बनो , ज्ञान की ज्वाला से मूर्खता को दूर करो , केवल अपने को संतुष्ट करने में लगे हुए औरो के शोक का कारण बने हुए लोगों को सुदूर विनष्ट करो |
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