अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 30
ऋषिः - कौशिकः
देवता - विष्णुक्रमः
छन्दः - त्र्यवसाना षट्पदा यथाक्षरं शक्वरी, अतिशक्वरी
सूक्तम् - विजय प्राप्ति सूक्त
0
विष्णोः॒ क्रमो॑ऽसि सपत्न॒हा ऋक्सं॑शितः॒ साम॑तेजाः। ऋचोऽनु॒ वि क्र॑मे॒ऽहमृ॒ग्भ्यस्तं निर्भ॑जामो॒ यो॒स्मान्द्वेष्टि॒ यं व॒यं द्वि॒ष्मः। स मा जी॑वी॒त्तं प्रा॒णो ज॑हातु ॥
स्वर सहित पद पाठविष्णो॑: । क्रम॑: । अ॒सि॒ । स॒प॒त्न॒ऽहा । ऋक्ऽसं॑शित: । साम॑ऽतेजा: । ऋच॑: । अनु॑ । वि । क्र॒मे॒ । अ॒हम् । ऋ॒क्ऽभ्य: । तम् । नि: । भ॒जा॒म॒: । य: । अ॒स्मान् । द्वेष्टि॑ । यम् । व॒यम् । द्वि॒ष्म: । स: । मा । जी॒वी॒त् । तम् । प्रा॒ण: । ज॒हा॒तु॒ ॥५.३०॥
स्वर रहित मन्त्र
विष्णोः क्रमोऽसि सपत्नहा ऋक्संशितः सामतेजाः। ऋचोऽनु वि क्रमेऽहमृग्भ्यस्तं निर्भजामो योस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः। स मा जीवीत्तं प्राणो जहातु ॥
स्वर रहित पद पाठविष्णो: । क्रम: । असि । सपत्नऽहा । ऋक्ऽसंशित: । सामऽतेजा: । ऋच: । अनु । वि । क्रमे । अहम् । ऋक्ऽभ्य: । तम् । नि: । भजाम: । य: । अस्मान् । द्वेष्टि । यम् । वयम् । द्विष्म: । स: । मा । जीवीत् । तम् । प्राण: । जहातु ॥५.३०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
विद्वानों के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
तू (विष्णोः) विष्णु [सर्वव्यापक परमेश्वर] से (क्रमः) पराक्रमयुक्त, (सपत्नहा) वैरियों का नाश करने हारा, (ऋक्संशितः) वेदवाणियों से तीक्ष्ण किया गया, (सामतेजाः) दुःखनाशक मोक्ष ज्ञान से तेज पाया हुआ (असि) है। (ऋचः अनु) वेदवाणियों के पीछे (अहम्) मैं (वि क्रमे) पराक्रम करता हूँ, (ऋग्भ्यः) वेदवाणियों से (तम्) उस शत्रु को.... म० २५ ॥३०॥
भावार्थ
मनुष्य वेदविद्याओं और मोक्षविद्याओं द्वारा दुःख से छूट कर सुख प्राप्त करे ॥३०॥
टिप्पणी
३०−(ऋक्संशितः) ऋग् वाङ्नाम-निघ० १।११। वेदवाणीसकाशात् तीक्ष्णीकृतः (सामतेजाः) साम व्याख्यातम्-अ० ७।५४।१। षो अन्तकर्मणि। दुःखनाशकमोक्षज्ञानात् प्राप्ततेजाः (ऋचः) वेदवाणीः। अन्यत् सुगमं च ॥
विषय
ऋक्ससंशितः सामतेजाः
पदार्थ
१. तू (विष्णो: क्रमः असि) = पवित्र पुरुष के पराक्रमवाला है, अतएव (सपत्नहा) = रोग व वासनारूप शत्रुओं को नष्ट करनेवाला है। (ऋक्संशित:) = विज्ञान से तीक्ष्ण शक्तियोंवाला होता हुआ तू (सामतेजा:) = उपासना के तेजवाला है। विज्ञान ने तेरी शक्तियों को तीक्ष्ण किया है और उपासना ने तझे प्रभु के तेज से तेजस्वी बनाया है। २.तु निश्चय कर कि इन (ऋचः अनु)-विज्ञानों का लक्ष्य करके ही मैं (विक्रमे) = विशिष्ट पुरुषार्थवाला होता हूँ। (तम् निर्भजाम:०)[शेष पूर्ववत्]
भावार्थ
पवित्र कर्मों में लगे रहने से, विज्ञान व उपासना की वृद्धि के द्वारा हम तेजस्वी बनते हैं और शत्रुओं को परास्त करते हैं।
भाषार्थ
(विष्णोः) विष्णु के (क्रमः) पराक्रम वाला (असि) तू है, (सपत्नहा) सपत्न का हनन करने वाला है, (ऋकसंशितः) ऋचाओं द्वारा उग्र हुआ है। (सामतेजाः) तथा साम के तेज वाला तू है। (अहम्) मैं (ऋचः अनु) ऋचाओं में (विक्रमे) पराक्रम वाला हूं, (ऋग्भ्यः) ऋचाओं से (तम्) उसे (निर्भजामः) हम भाग रहित करते हैं (यः) जोकि (अस्मान् द्वेष्टि) हमारे साथ द्वेष करता है, और (यम्) जिस के साथ (वयम् द्विष्मः) हम द्वेष करते हैं। (सः) वह (मा) न (जीवीत्) जीवित रहे, (तम्) उसे (प्राणः) प्राण (जहातु) छोड़ जाय।
टिप्पणी
[सार्वभौम शासक कहता है कि मैं ऋचाओं के राजनैतिक उपदेशों द्वारा उग्र हुआ हूं, और साम के उपदेशों द्वारा साम अर्थात् शान्त स्वभाव वाला भी हूं। शासन में समयानुसार उग्रता तथा शान्ति का प्रयोग करना होता है। यथा “साम, दाम, दण्ड, भेद" इन चार उपायों का अवलम्बन शासकों को करना होता है। इन उपायों में साम और दण्ड का भी कथन हुआ है। साम है शान्ति, और दण्ड है उग्रता। ऋचाओं१ से सपत्न के निर्भजन अर्थात् बहिष्कार का वर्णन हुआ है। अभिप्राय यह सपत्न को वैदिक संस्कृति से वञ्चित कर देना चाहिये, वैदिक संस्कृति में, निर्दिष्ट साम उपाय का अवलम्बन सपत्न के लिये न हो कर ऋग्वेदीय उग्रता-उपाय का अवलम्बन करना चाहिये, जबकि सपत्न सार्वभौमशासन के प्रतिकूल आचरण करे। मन्त्र में "ऋक्" द्वारा ऋग्वेद को, और "साम" द्वारा सामवेद को भी सूचित किया है। शेष अभिप्राय (मन्त्र २५) के सदृश]। [१. ऋचाओं से सपत्न के निर्भजन का यह अभिप्राय भी सम्भव है कि उसे वहां शामिल होने से वञ्चित कर देना चाहिये जहां ऋचाओं के आधार पर सामगान हो रहा हो। यह सपत्न का सामाजिक बहिष्कार है।]
इंग्लिश (4)
Subject
The Song of Victory
Meaning
You are the stride of Vishnu (beyond physicality), destroyer of adversaries and adversities, strengthened, seasoned and inspired by Rks and blest with the energy and ecstasy of Samans. I strive and advance in pursuance of the Rks. We strike out those adversaries from our way of the Rks which hate and obstruct us and which we hate and reject. Hate and adversaries must not survive, nor thrive. Let even life energy forsake hate and adversity.
Translation
You are the stride (krama) of the all-prevading Lord (Visņu) Slayer of rivals, sharpened by the Rk verses, full of saman’s might (sāma-tejah). I stride forth on the Rk verses (rcah). From the Rk verses, we drive out him, who hates us and whom we do hate. May he not live. May the vital breath quit him.
Translation
O King! you are the representative of Vishnu, the All-pervading God amongst the subjects, you are the slayer of the enemies, you are praised in the attainment of Rigvedic Knowledge and you possess the splendor of Samans, you should think “I will play my glorious part in attainment of Rigvedic Knowledge”. So that we bar from the attainment of Rigvedic Knowledge that man who hates me and whom we abhor. Let him not be alive and let the vital air abandon him.
Translation
O King, thou followest the dictate of God, and art the protector of the people like Him. Thou art foe-slayer. Thy Intellect has been developed through the study of the Rigveda. Thou art brilliant through the knowledge of the Samaveda, that leads to salvation! I, as king, consider it my duty, to make research in the knowledge of the Rigveda. We, the subjects, deprive of the knowledge of the Rigveda, him who hates us and whom we dislike. Let him not live, let vital breath desert him.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३०−(ऋक्संशितः) ऋग् वाङ्नाम-निघ० १।११। वेदवाणीसकाशात् तीक्ष्णीकृतः (सामतेजाः) साम व्याख्यातम्-अ० ७।५४।१। षो अन्तकर्मणि। दुःखनाशकमोक्षज्ञानात् प्राप्ततेजाः (ऋचः) वेदवाणीः। अन्यत् सुगमं च ॥
हिंगलिश (1)
Subject
ऋक्संशितो सामतेजाः ।ऋचोऽनु – ऋचाओं साम गान से स्तुति नित्य कर्म से प्राप्त तेजस्विता
Word Meaning
विष्णु के संसार के पालन कर्त्ता कार्यक्षेत्र में पराक्रमी बन कर “ऋचाओं साम गान से स्तुति नित्य कर्म से प्राप्त तेजस्विता ” एक क्रम से (योजनाबद्ध ढंग से ) करने से सब शत्रुरूपि विघ्न बाधाओं रुकावटों पर विजय पानी होती है | और जो हमारे (इस वेदाधारित ) सृष्टि पालन धर्म की अवहेलना करते है हम से द्वेष करते है वे हमारी सब उपलब्धियों समृद्धियों से वंचित रहेगे और स्वयं ही नष्ट हो जाएंगे |
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal