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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 5 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 33
    ऋषिः - कौशिकः देवता - विष्णुक्रमः छन्दः - त्र्यवसाना षट्पदा यथाक्षरं शक्वरी, अतिशक्वरी सूक्तम् - विजय प्राप्ति सूक्त
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    विष्णोः॒ क्रमो॑ऽसि सपत्न॒हाप्सुसं॑शितो॒ वरु॑णतेजाः। अ॒पोऽनु॒ वि क्र॑मे॒ऽहम॒द्भ्यस्तं निर्भ॑जामो॒ यो॒स्मान्द्वेष्टि॒ यं व॒यं द्वि॒ष्मः। स मा जी॑वी॒त्तं प्रा॒णो ज॑हातु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विष्णो॑: । क्र॒म॑: । अ॒सि॒ । स॒प॒त्न॒ऽहा । अ॒प्सुऽसं॑शित: । वरु॑णऽतेजा: । अ॒प: । अनु॑ । वि । क्र॒मे॒ । अ॒हम् । अ॒त्ऽभ्य: । तम् । नि: । भ॒जा॒म॒: । य: । अ॒स्मान् । द्वेष्टि॑ । यम् । व॒यम् । द्वि॒ष्म: । स: । मा । जी॒वी॒त् । तम् । प्रा॒ण: । ज॒हा॒तु॒ ॥५.३३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विष्णोः क्रमोऽसि सपत्नहाप्सुसंशितो वरुणतेजाः। अपोऽनु वि क्रमेऽहमद्भ्यस्तं निर्भजामो योस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः। स मा जीवीत्तं प्राणो जहातु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विष्णो: । क्रम: । असि । सपत्नऽहा । अप्सुऽसंशित: । वरुणऽतेजा: । अप: । अनु । वि । क्रमे । अहम् । अत्ऽभ्य: । तम् । नि: । भजाम: । य: । अस्मान् । द्वेष्टि । यम् । वयम् । द्विष्म: । स: । मा । जीवीत् । तम् । प्राण: । जहातु ॥५.३३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 5; मन्त्र » 33
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    विद्वानों के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    तू (विष्णोः) विष्णु [सर्वव्यापक परमेश्वर] से (क्रमः) पराक्रमयुक्त, (सपत्नहा) वैरियों का नाश करने हारा, (अप्सुसंशित), जलों से तीक्ष्ण किया गया, (वरुणतेजाः) मेघ से तेज पाया हुआ (असि) है। (अपः अनु) जलों के पीछे (अहम्) मैं (वि क्रमे) पराक्रम करता हूँ, (अद्भ्यः) जलों से (तम्) उस (शत्रु) को.... म० २५ ॥३३॥

    भावार्थ

    मनुष्य जलविद्याओं में निपुण होकर मेघसमान उपकारी होवे ॥३३॥

    टिप्पणी

    ३३−(अप्सुसंशितः) जलसकाशात् तीक्ष्णीकृतः (वरुणतेजाः) मेघात् प्राप्ततेजाः (अपः) जलानि। अन्यत् सुगमं गतं च ॥

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    विषय

    अप्ससंशितः वरुणतेजा:

    पदार्थ

    १. (विष्णोः क्रमः असि) = तू पवित्र पुरुष के पराक्रमवाला है, अतएव (सपत्नहा) = रोग व बासनारूप शत्रुओं को नष्ट करनेवाला है। (अप्सुसंशित:) = रेत:कणों में रेत:कणों के रक्षण द्वारा तीक्ष्ण शक्तिवाला हुआ है। (वरुणतेजा:) = निष पुरुष के-द्वेष आदि का निवारण करनेवाले पुरुष के तेजवाला हुआ है। २. तु निश्चय कर कि (अहम्) = मैं (अप: अनु विक्रमे) = रेत:कणों का लक्ष्य करके पुरुषार्थवाला बना हूँ। रेत:कणों के रक्षण के लिए मैंने पुरुषार्थ किया है और (अद्भ्यः) = इन रेत:कणों के द्वारा (तम्०) [शेष पूर्ववत्]।

    भावार्थ

    पवित्र कमों में व्याप्त होकर मैं वीर्यकणों का रक्षण करता हुआ निढेष जीवनवाला बनता हूँ। इनके रक्षण से ही शत्रुओं को दूर भगाता हूँ।

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    भाषार्थ

    (विष्णोः) विष्णु के (क्रमः) पराक्रम वाला (असि) तू है, (सपत्नहा) सपत्न का हनन करने वाला है, (अप्सुसंशितः) जलों में उग्र विद्युत् के सदृश उग्र है, (वरुणतेजाः) और जलों के अधिपति वरुण के तेज वाला तू है। (अहम्) मैं (अपः अनु) जलों में (विक्रमे) विक्रम अर्थात् पराक्रम वाला हूं, (अद्भ्यः) जलों से (तम्) उसे (निर्भजामः) हम भाग रहित करते हैं, वञ्चित करते हैं (यः) जो कि (अस्मान् द्वेष्टि) हमारे साथ द्वेष करता है, और (यम्) जिस के साथ (वयं द्विष्मः) हम द्वेष करते हैं। (सः) वह (मा)(जीवीत्) जीवित रहे, (तम्) उसे (प्राणः) प्राण (जहातु) छोड़ जाय।

    टिप्पणी

    [वरुण को जलों का अधिपति कहा है। यथा “वरुणोऽपामधिपतिः” (अथर्व० ५।२४।४)। वरुण है मेघ, जोकि सूर्य पर आवरण डालता है। यह जलों का अधिपति है, स्वामी है। यह ही पृथिवी पर जलों की वर्षा करता है। सार्वभौमशासक अपने आप को वरुणसदृश तेज वाला कह कर जलों का अधिपति कहता है, और पृथिवीस्थ जलों से सपत्न को भागरहित करता है, वञ्चित करता है, और सपत्न जलविहीन होकर प्राणों से विहीन हो जाता है। शेष अभिप्राय मन्त्र (५) के सदृश]।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Song of Victory

    Meaning

    You are Vishnu’s stride (into the dynamics of life), seasoned and sharpened for action as destroyer of adversaries, and blest with the splendour of cosmic waters and justice. I strive and advance into life in pursuance of action, justice and generosity. We remove all adversaries and negatives from our paths of action by positive action. We fight out those that hate and obstruct us and those we hate and reject for their negativity. Let not hate and enmity survive and live on. Let even life energy forsake all hate and enmity.

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    Translation

    You are the stride (krama) of the all-prevading Lord (Visnu) slayer of rivals, sharpened by the waters, full of venerable Lord’s might (varuņa-teja). I stride forth on the waters. From the water, we drive out him, who hates us and whom we do hate. May he not live. May the vital breath quit him.

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    Translation

    O King! you are the representative of the All-pervading God amongst the subject, you are the slayer of the enemies, you are praised in the waters and you possess the vigor of Varuna, the gas one of the component of water. You should think “I will play my part in the waters”. So that we may bar from the waters that man who hates me and whom we abhor. Let him not be alive and let the vital air abandon him.

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    Translation

    O King, thou followest the behest of God and art the protector of the people like Him. Thou art foe-slayer. Thou shinest midst thy subjects. Through art brilliant through thy kingly glow! I, as king, consider it my duty to lead expeditions on the strength of my subjects We, the subjects, prevent from polluting water, him who hates us and whom we dislike. Let him not live, let vital breath desert him.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३३−(अप्सुसंशितः) जलसकाशात् तीक्ष्णीकृतः (वरुणतेजाः) मेघात् प्राप्ततेजाः (अपः) जलानि। अन्यत् सुगमं गतं च ॥

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    हिंगलिश (1)

    Subject

    अप्सुसंशितो वरुणतेजाः । अप: - जल में स्थित समस्त विश्व में व्याप्त सब ज्ञान विज्ञान के सदुपयोग से उत्पादित तेजस्विता

    Word Meaning

    विष्णु के संसार के पालन कर्त्ता कार्यक्षेत्र में पराक्रमी बन कर “.जल में स्थित सब ज्ञान विज्ञान के सदुपयोग से उत्पादित तेजस्विता का ” एक क्रम से (योजनाबद्ध ढंग से ) कर्म करने से सब शत्रुरूपि विघ्न बाधाओं रुकावटों पर विजय पानी होती है | और जो हमारे (इस वेदाधारित ) सृष्टि पालन धर्म की अवहेलना करते है हम से द्वेष करते है वे हमारी सब उपलब्धियों समृद्धियों से वंचित रहेगे और स्वयं ही नष्ट हो जाएंगे |

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