Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 70

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 70/ मन्त्र 3
    सूक्त - मधुच्छन्दाः देवता - मरुद्गणः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-७०

    इन्द्रे॑ण॒ सं हि दृक्ष॑से संजग्मा॒नो अबि॑भ्युषा। म॒न्दू स॑मा॒नव॑र्चसा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रे॑ण । सम् । हि । दृक्ष॑से । स॒म्ऽज॒ग्मा॒न: । अबि॑भ्युषा ॥ म॒न्दू इति॑ । स॒मा॒नऽव॑र्चसा ॥७०.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रेण सं हि दृक्षसे संजग्मानो अबिभ्युषा। मन्दू समानवर्चसा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रेण । सम् । हि । दृक्षसे । सम्ऽजग्मान: । अबिभ्युषा ॥ मन्दू इति । समानऽवर्चसा ॥७०.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 70; मन्त्र » 3

    भाषार्थ -
    হে উপাসক! তুমি (হি) নিশ্চিতরূপে, (অবিভ্যুষা) স্বয়ং নির্ভয় এবং উপাসকদের নির্ভয়কারী (ইন্দ্রেণ) পরমেশ্বরের সাথে (সম্) সঙ্গতি প্রাপ্ত হয়েছো (দৃক্ষসে) দৃষ্টিগোচর হয়েছো। এখন তোমরা উভয় (মন্দূ) আনন্দিত এবং (সমানবর্চসা) সমানকান্তিসম্পন্ন হও।

    - [উভয়=পরমেশ্বর এবং উপাসক।]

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top