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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 14
    ऋषिः - नारायणः देवता - ब्रह्मप्रकाशनम्, पुरुषः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मप्रकाशन सूक्त
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    को अ॑स्मिन्य॒ज्ञम॑दधा॒देको॑ दे॒वोऽधि॒ पूरु॑षे। को अ॑स्मिन्त्स॒त्यं कोऽनृ॑तं॒ कुतो॑ मृ॒त्युः कुतो॒ऽमृत॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क: । अ॒स्मि॒न् । य॒ज्ञम् । अ॒द॒धा॒त् । एक॑: । दे॒व: । अधि॑ । पुरु॑षे । क: । अ॒स्मि॒न् । स॒त्यम् । क: । अनृ॑तम् । कुत॑: । मृ॒त्यु: । कुत॑: । अ॒मृत॑म् ॥२.१४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    को अस्मिन्यज्ञमदधादेको देवोऽधि पूरुषे। को अस्मिन्त्सत्यं कोऽनृतं कुतो मृत्युः कुतोऽमृतम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    क: । अस्मिन् । यज्ञम् । अदधात् । एक: । देव: । अधि । पुरुषे । क: । अस्मिन् । सत्यम् । क: । अनृतम् । कुत: । मृत्यु: । कुत: । अमृतम् ॥२.१४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 2; मन्त्र » 14
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्यशरीर की महिमा का उपदेश।

    पदार्थ

    (कः) किस (एकः) एक (देवः) देव [स्तुतियोग्य] ने (अस्मिन् पुरुषे) इस मनुष्य में (यज्ञम्) यज्ञ [देवपूजा, संगतिकरण और दान सामर्थ्य] को, (कः) किस ने (अस्मिन्) इस [मनुष्य] में (सत्यम्) सत्य [विधि] को, (कः) किस ने (अनृतम्) असत्य [निषेध] को (अधि अदधात्) रख दिया है। (कुतः) कहाँ से (मृत्युः) मृत्यु और (कुतः) कहाँ से (अमृतम्) अमरपन [आता है] ॥१४॥

    भावार्थ

    मनुष्य विधि और निषेध के मार्ग को समझकर शारीरिक और आत्मिक बल बढ़ाने में प्रयत्न करे ॥१४॥

    टिप्पणी

    १४−(कः) प्रश्ने (अस्मिन्) (यज्ञम्) देवपूजासङ्गतिकरणदानसामर्थ्यम् (अदधात्) धृतवान् (एकः) (देवः) स्तुत्यः (अधि) (पुरुषे) मनुष्ये (कः) (अस्मिन्) (सत्यम्) वेदविहितं कर्म (कः) (अनृतम्) वेदनिषिद्धं कर्म (कुतः) कस्मात् स्थानात् (मृत्युः) मरणम् (कुतः) (अमृतम्) अमरणम् ॥

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    विषय

    यज्ञ-अमृत

    पदार्थ

    १. (कः) = कौन (एकः देव:) अद्वितीय देव (अस्मिन् पूरुषे अधि) = इस पुरुष में (यज्ञं अदधात्) = यज्ञ को स्थापित करनेवाला हुआ? (क:) = किसने (अस्मिन्) = इसमें (सत्यम्) = सत्य को (क:) = और किसने (अन्तम्) = असत्य को स्थापित किया है? (कुतः मृत्यु:) = कहाँ से यह मृत्यु आती है, और (कुतः अमृतम्) = कहाँ से नीरोगता की स्थापना होती है?

    भावार्थ

    'यज्ञ, सत्य, अनृत, मृत्यु व अमृत' का संस्थापक देव कौन है?

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    भाषार्थ

    (कः एकः देवः) किस एक देव ने (अस्मिन् पूरुषे) इस पुरुष में (यज्ञम्) यज्ञ भावना (अदधात्) स्थापित की है। (कः) किस ने (अस्मिन्) इसमें (सत्यम्) सत्य को और (अनृतम्) असत्य को [स्थापित किया है] (कुतः) किस से (मृत्युः) मृत्यु और (कुतः) किस से (अमृतम्) जन्म-मरण से राहित्य अर्थात् मोक्ष [प्राप्त होता है] कः = द्व्यर्थक ११)]

    टिप्पणी

    [“एकः देवः” से स्पष्ट ज्ञात होता है कि प्रश्नकर्ता को एकदेव का परिज्ञान है। वही एक देव यज्ञ आदि को पुरुष में, उस के कर्मानुसार, स्थापित करता है। यज्ञ= देवपूजा, संगतिकरण तथा दान की भावना। सत्य और असत्य की, तथा मृत्यु और मोक्ष की स्थिति भी, पुरुष के कर्मों तथा संस्कारों के अनुसार उसे एकदेव के न्याय नियमों तथा कर्मव्यवस्था के अनुसार प्राप्त हो रही है। कः = द्व्यर्थक, (मन्त्र ११)]।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Kena Suktam

    Meaning

    Who is the one divine that vests the spirit of yajna and self-sacrifice in man? Who vests truth, and untruth? Whence death? Whence immortality?

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    Translation

    Which was the sole deity that reposed the sacrifice within this man ? Who placed the truth and the untruth within him? Wherefrom (comes) the death and wherefrom the immortality?

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    Translation

    Who is that only one Divinity who does place the instinct of yajna in the man? Who does place truth? Who does place in him the Knowledge of untruth? Whence did come this death and whence did this immortality?

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    Translation

    What God, what only Deity placed sacrificing soul in man? Who gave him truth and falsehood? Whence came Death and Immortality.

    Footnote

    Truth and falsehood; The knowledge of right and wrong.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १४−(कः) प्रश्ने (अस्मिन्) (यज्ञम्) देवपूजासङ्गतिकरणदानसामर्थ्यम् (अदधात्) धृतवान् (एकः) (देवः) स्तुत्यः (अधि) (पुरुषे) मनुष्ये (कः) (अस्मिन्) (सत्यम्) वेदविहितं कर्म (कः) (अनृतम्) वेदनिषिद्धं कर्म (कुतः) कस्मात् स्थानात् (मृत्युः) मरणम् (कुतः) (अमृतम्) अमरणम् ॥

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