अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 7
ऋषिः - नारायणः
देवता - ब्रह्मप्रकाशनम्, पुरुषः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मप्रकाशन सूक्त
1
हन्वो॒र्हि जि॒ह्वामद॑धात्पुरू॒चीमधा॑ म॒हीमधि॑ शिश्राय॒ वाच॑म्। स आ व॑रीवर्ति॒ भुव॑नेष्व॒न्तर॒पो वसा॑नः॒ क उ॒ तच्चि॑केत ॥
स्वर सहित पद पाठहन्वो॑: । हि । जि॒ह्वाम् । अद॑धात् । पु॒रू॒चीम् । अध॑ । म॒हीम् । अधि॑ । शि॒श्रा॒य॒ । वाच॑म् । स: । आ । व॒री॒व॒र्ति॒ । भुव॑नेषु । अ॒न्त: । अ॒प: । वसा॑न: । क: । ऊं॒ इति॑ । तत् । चि॒के॒त॒ ॥२.७॥
स्वर रहित मन्त्र
हन्वोर्हि जिह्वामदधात्पुरूचीमधा महीमधि शिश्राय वाचम्। स आ वरीवर्ति भुवनेष्वन्तरपो वसानः क उ तच्चिकेत ॥
स्वर रहित पद पाठहन्वो: । हि । जिह्वाम् । अदधात् । पुरूचीम् । अध । महीम् । अधि । शिश्राय । वाचम् । स: । आ । वरीवर्ति । भुवनेषु । अन्त: । अप: । वसान: । क: । ऊं इति । तत् । चिकेत ॥२.७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
मनुष्यशरीर की महिमा का उपदेश।
पदार्थ
उसने (हि) ही [मनुष्य के] (हन्वोः) दोनों जबड़ों में (पुरूचीम्) बहुत चलनेवाली (जिह्वाम्) जीभ को (अदधात्) धारण किया है, (अध) और [जीभ में] (महीम्) बड़ी [प्रभावशाली] (वाचम्) वाणी को (अधि शिश्राय) उपयुक्त किया है। (सः) वह (लोकेषु अन्तः) लोकों के भीतर (आ) सब ओर (वरीवर्ति) घूमता रहता है और (अपः) आकाश को (वसानः) ढकते हुए (कः उ) कर्ता परमेश्वर ने ही (तत्) उसे (चिकेत) जाना है ॥७॥
भावार्थ
जिस सृष्टिकर्ता ने मनुष्य को वेद आदि शास्त्रों के सूक्ष्म विचार जानने और प्रकाश करने के लिये जीभ दी है, वह परमात्मा सब स्थानों में व्यापक है ॥७॥
टिप्पणी
७−(हन्वोः) कपोलावयवविशेषयोर्मध्ये (हि) एव (जिह्वाम्) रसनाम् (अदधात्) (पुरूचीम्) अ० २।१३।३। बहुगमनाम् (महीम्) प्रभावशीलाम् (अधि शिश्राय) उपयुक्तवान् (वाचम्) वाणीम् (सः) परमेश्वरः (आ) समन्तात् (वरीवर्ति) वर्ततेर्यङ्लुकि। भृशं भ्रमति (भुवनेषु) लोकेषु (अन्तः) मध्ये (अपः) आपः=अन्तरिक्षम्-निघ० १।३। आकाशम् (वसानः) आच्छादयन् (कः) म० ५। कर्ता (उ) एव (तत्) (चिकेत) जज्ञौ ॥
विषय
पुरूची जिह्वा
पदार्थ
१. उस आनन्दमय प्रभु ने ही (हन्वो:) = दोनों जबड़ों के बीच में (पुरुचीम्) = बहुत चलनेवाली (जिह्वाम्) = जिहा को (अदधात्) = स्थापित किया है, (अध) = और इस जिह्वा में (महीं वाचम्) = महनीय महत्त्वपूर्ण वाणी को (अधिशिश्राय) = आश्रित किया है। २. (स:) = वे प्रभु (भुवनेषु अन्तः) = सब भुवनों में (आवरीवर्ति) = वर्तमान हो रहे हैं। (अप: वसान:) = सब प्रजाओं को उन्होंने आच्छादित किया हुआ है-सबको अपने गर्भ में धारण किया हुआ है। (क: उ) = निश्चय से कौन (तत् चिकेत) = उस ब्रह्म को जानता है? वह प्रभु अज्ञेयस्वरूप ही हैं।
भावार्थ
जबड़ों में गतिशील जिह्वा का स्थापन कितना अद्भुत है। उस जिला में क्या ही अद्भुत वाणी की शक्ति का स्थापन हुआ है। वे प्रभु सब भुवनों में वर्तमान हैं, सब प्राणियों को अपने में धारण कर रहे हैं। प्रभु की गरिमा अव्याख्येय है।
भाषार्थ
(हन्वोः) किस ने दो जबाड़ों में (पुरूचीम्) लम्बी या बहुगतिका (जिह्वाम्, अदधात्) जिह्वा को स्थापित किया है, (अधा) तत्पश्चात् (महीम्, वाचम्) महती वाणी को (अधि शिश्राय) उस पर आश्रित किया है। (सः) वह (अपः वसानः) प्रकृति की ओड़नी ओढ़े हुआ (भुवनेषु अन्त) भुवनों के भीतर (आ वरीवर्ति) बार-बार आता है, (कः उ तत् चिकेत) कौन उसे सम्यक्तया जानता है।
टिप्पणी
[मन्त्र में परमेश्वर का वर्णन है जोकि प्रलयों के पश्चात् भुवनों के भीतर, प्रत्येक सृष्टि में वार-वार आता है। “अपः” का अर्थ है “व्यापक प्रकृति”, आप्लृ व्याप्तौ। यह प्रकृति, परमेश्वर का वस्त्र है, जिस से ढका हुआ वह भुवनों में विचरता है। “अपः” का अर्थ “कर्म” भी होता है। परमेश्वर के कर्म हैं, – रचना, स्थिति, कर्मफल प्रदान, प्रलय आदि। इनकी ओढ़नी ओढ़े हुए परमेश्वर भुवनों में विचरता है]
इंग्लिश (4)
Subject
Kena Suktam
Meaning
Who placed the versatile tongue in the midst of two jaws and then vested the great speech thereon? Wearing the vestments of Prakrti, He pervades and rolls around in the worlds of existence. Who knows that?
Translation
Between thë two jaws he set the far-reaching tongue; thereafter he reposed the mighty speech in it. Robed in his actions he moves to and from within all the beings. Who has speculated about him even ? ( Hanu = jaw; jihvā = tongue; vāk = speech).
Translation
He, who between the jaws sets the tongue which reaches far and places thereon the speech which is a wonderful power, pervades the worlds holding under His control all the atoms of matter. Who does know Him.
Translation
God set within the jaws the tongue that moves fast, and thereon placed the mighty power of speech. He pervades all the. worlds, Matter and souls. Who hath understood it?
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
७−(हन्वोः) कपोलावयवविशेषयोर्मध्ये (हि) एव (जिह्वाम्) रसनाम् (अदधात्) (पुरूचीम्) अ० २।१३।३। बहुगमनाम् (महीम्) प्रभावशीलाम् (अधि शिश्राय) उपयुक्तवान् (वाचम्) वाणीम् (सः) परमेश्वरः (आ) समन्तात् (वरीवर्ति) वर्ततेर्यङ्लुकि। भृशं भ्रमति (भुवनेषु) लोकेषु (अन्तः) मध्ये (अपः) आपः=अन्तरिक्षम्-निघ० १।३। आकाशम् (वसानः) आच्छादयन् (कः) म० ५। कर्ता (उ) एव (तत्) (चिकेत) जज्ञौ ॥
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