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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 20
    ऋषिः - नारायणः देवता - ब्रह्मप्रकाशनम्, पुरुषः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मप्रकाशन सूक्त
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    केन॒ श्रोत्रि॑यमाप्नोति॒ केने॒मं प॑रमे॒ष्ठिन॑म्। केने॒मम॒ग्निं पूरु॑षः॒ केन॑ संवत्स॒रं म॑मे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    केन॑ । श्रोत्रि॑यम् । आ॒प्नो॒ति॒ । केन॑ । इ॒मम् । प॒र॒मे॒ऽस्थित॑म् । केन॑ । इ॒मम् । अ॒ग्निम् । पुरु॑ष: । केन॑ । स॒म्ऽव॒त्स॒रम् । म॒मे॒ ॥२.२०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    केन श्रोत्रियमाप्नोति केनेमं परमेष्ठिनम्। केनेममग्निं पूरुषः केन संवत्सरं ममे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    केन । श्रोत्रियम् । आप्नोति । केन । इमम् । परमेऽस्थितम् । केन । इमम् । अग्निम् । पुरुष: । केन । सम्ऽवत्सरम् । ममे ॥२.२०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 2; मन्त्र » 20
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    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्यशरीर की महिमा का उपदेश।

    पदार्थ

    (पुरुषः) मनुष्य (केन) किसके द्वारा (श्रोत्रियम्) वेदज्ञानी [आचार्य] को, (केन) किसके द्वारा (इमम्) इस (परमेष्ठिनम्) सब से ऊँचे ठहरनेवाले [परमेश्वर] को (आप्नोति) पाता है। उसने (केन) किसके द्वारा (इमम्) इस (अग्निम्) अग्नि [सूर्य, बिजुली और पार्थिव अग्नि] को, (केन) किसके द्वारा (संवत्सरम्) संवत्सर [अर्थात् काल] को (ममे) मापा है ॥२०॥

    भावार्थ

    मनुष्य विचारता रहे कि वह किस प्रकार से आचार्य और परमेश्वर की आज्ञा पूरण कर सकता है और सूर्य आदि पदार्थों से कैसे उपकार ले सकता है। इसका उत्तर आगामी मन्त्र में है ॥२०॥

    टिप्पणी

    २०−(केन) केन द्वारा (श्रोत्रियम्) अ० ९।६(३)।७। वेदज्ञमाचार्य्यम् (आप्नोति) प्राप्नोति (केन) (परमेष्ठिनम्) अ० १।७।२। उत्तमपदस्थं परमात्मानम् (केन) (इमम्) (अग्निम्) सूर्यविद्युत्पार्थिवाग्निरूपम् (पुरुषः) मनुष्यः (केन) (संवत्सरम्) कालमित्यर्थः (ममे) माङ् माने-लिट्। मापितवान्। वशीकृतवान् ॥

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    विषय

    'ब्रह्म [ज्ञान]का महत्त्व

    पदार्थ

    १. (केन) = किस हेतु से (श्रोत्रियम् आप्नोति) = वेदज्ञ आचार्य को प्राप्त करता है, (केन) = किससे (इमम्) = इस (परमेष्ठिनम्) = परम स्थान में स्थित प्रभु को प्राप्त करता है? और (पूरुषः) = पुरुष केन किससे (इमं अग्निम्) = इस अग्नि को (ममे) = मापता है-जान पाता है? (केन) = किससे (संवत्सरम्) = काल को मापता है? २. इन प्रश्नों का उत्तर देते हुए कहते हैं कि ब्रह्म-ज्ञान ही (श्रोत्रियम् आप्नोति) = श्रोत्रिय को प्राप्त करता है, अर्थात् ज्ञान के हेतु से ही मनुष्य श्रोत्रिय के समीप जाता है। (ब्रह्म इमं परमेष्ठिनम्) = ज्ञान ही इस परमेष्ठी को प्राप्त करता है। ज्ञान के द्वारा ही प्रभु की प्रासि होती है। (पूरुषः) = पुरुष (ब्रह्म इमं अग्निं ममे) = ज्ञान के द्वारा इस अग्नि को मापनेवाला होता है और (ब्राह्म संवत्सरं ममे) = ज्ञान ही काल को मापता है। मनुष्य ज्ञान द्वारा ही यज्ञिय अग्नि के महत्त्व को व कालचक्र की गति को जान पाता है।

    भावार्थ

    ज्ञान के हेतु से मनुष्य वेदज्ञ आचार्य को प्राप्त करता है। प्राप्त ज्ञान से प्रभु को प्राप्त करता है। ज्ञान से ही यज्ञिय अग्नि में यज्ञादि कर्मों को करता है और कालचक्र की गति को समझता हुआ समय पर कार्यों को करनेवाला बनता है।

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    भाषार्थ

    (केन) किस कारण [ब्रह्म] (श्रोत्रियम्) वेदाध्ययन करने वाले को, (केन) और किस कारण (परमेष्ठिनम्) परब्रह्म में स्थित हुए को (आप्नोति) प्राप्त होता है। (केन) किस कारण (पूरुषः) ब्रह्म पुरुष (इमम्, अग्निम्) इस ज्ञानाग्निमय व्यक्ति को प्राप्त होता है। (केन) किस कारण वह (संवत्सरम्) संवत्सर को (ममे) मापता या उस का निर्माण करता है।

    टिप्पणी

    [श्रोत्रिय आदि शब्दों के अर्थों में ही प्राप्ति के कारण दर्शा दिये हैं। श्रोत्रिय वेदाध्ययन करता है, इसलिए वह पवित्राचरण वाला है, और वेदज्ञ है। श्रोत्रियः = श्रोत्रं वेदः, तदध्येता; तथा “श्रोत्रियंश्छन्दोधीते" (अष्टा० ५।२।८४)। परमेष्ठिनम् = यतः वह परमेश्वर में निष्ठावान्, उस में स्थिति पाया हुआ, तथा उसके प्रति समर्पित है। अग्निम्-ज्ञानाग्नि, सम्पन्न को इसलिये प्राप्त होता है, यतः ज्ञानाग्नि द्वारा उसके कर्म तथा कमवासनाएं दग्घबीज हो गई हैं, "ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात् कुरुते-ऽर्जुन" (गीता)। संवत्सरम्— संवत्सर का वह इसलिये निर्माण करता है, यतः संवत्सर की ऋतुएं मनुष्य जीवन के वास में हेतु हैं, तथा संवत्सर द्वारा मनुष्यों के व्यवहारों का सम्पादन होता है, अतः उपकार भावना से परमेश्वर संवत्सर का निर्माण करता है। संवत्सरः= “सम्यक् वसन्त्यत्र सः संवत्सरः" (उणा० ३।७२; म० दयानन्द)]।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Kena Suktam

    Meaning

    By what reason does Purusha bless the man dedicated to Shruti, Veda? For what reason does he bless the man dedicated to the Supreme transcendent? For what reason does he light this fire? By what does he form and comprehend the cosmic time span?

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    Translation

    Through whom does he find a learned and wise guide ? Through whom does he realize this Lord of the highest abode ? Through whom does man gain this fire divine ? By what does he measure the year ? (Srotriya = learned in Vedic lores).

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    Translation

    Through which power the man attains the company of learned priest, through which power he attains the Supreme Lord, through which power the man Knows this fire and through which power he measures out the year.

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    Translation

    What leads man to a preceptor learned in Vedic lore? What leads him to this Lord Supreme? How doth he realize this soul? How doth he gain the knowledge of God, the Controller of Time.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २०−(केन) केन द्वारा (श्रोत्रियम्) अ० ९।६(३)।७। वेदज्ञमाचार्य्यम् (आप्नोति) प्राप्नोति (केन) (परमेष्ठिनम्) अ० १।७।२। उत्तमपदस्थं परमात्मानम् (केन) (इमम्) (अग्निम्) सूर्यविद्युत्पार्थिवाग्निरूपम् (पुरुषः) मनुष्यः (केन) (संवत्सरम्) कालमित्यर्थः (ममे) माङ् माने-लिट्। मापितवान्। वशीकृतवान् ॥

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