अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 27
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - अध्यात्मम्
छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप्
सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
2
तस्ये॒मे सर्वे॑ या॒तव॒ उप॑ प्र॒शिष॑मासते ॥
स्वर सहित पद पाठतस्य॑ । इ॒मे । सर्वे॑ । या॒वत॑: । उप॑ । प्र॒ऽशिष॑म् । आ॒स॒ते॒ ॥६.६॥
स्वर रहित मन्त्र
तस्येमे सर्वे यातव उप प्रशिषमासते ॥
स्वर रहित पद पाठतस्य । इमे । सर्वे । यावत: । उप । प्रऽशिषम् । आसते ॥६.६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।
पदार्थ
(इमे सर्वे) यह सब (यातवः) चलनेवाले [पृथिवी आदि लोक और प्राणी] (तस्य) उस [परमेश्वर] के (प्रशिषम्) उत्तम शासन को (उप आसते) मानते हैं ॥२७॥
भावार्थ
परमात्मा के ही नियम में सब लोक और सब प्राणी चलते हैं ॥२७॥
टिप्पणी
२७−(तस्य) परमेश्वरस्य (इमे) विद्यमानाः (सर्वे) (यातवः) कमिमनिजनिगाभायाहिभ्यश्च। उ० १।७३। या गतिप्रापणयोः-तु। गतिशीलाः पृथिव्यादिलोकाः प्राणिनश्च (प्रशिषम्) शासु अनुशिष्टौ-क्विप्। उत्तमं शासनम् (उपासते) सेवन्ते ॥
विषय
मृत्यु अमृतम्
पदार्थ
१. (सः एव) = वे अद्वितीय प्रभु ही (मृत्युः) = मृत्यु है-जीवों को प्राणों से वियुक्त करनेवाले व नया शरीर प्राप्त करानेवाले हैं। (सः अमृतम्) = वे ही मोक्षधाम को प्राप्त करानेवाले हैं। (सः अभ्वम्) = वे महान् हैं और (स: रक्षः) = वे ही सबके रक्षक हैं। २. (सः रुद्रः) = वे प्रभु ही ज्ञान देनेवाले हैं। (वसुदेये) = सब वस्तुओं के देने के कार्य में (वसुवनिः) = सब वस्तुओं का संभजन करनेवाले हैं [विभक्तारं हवामहे वसोश्चित्रस्य राधसः] तथा (नमो वाके) = 'नम:' वचनपूर्वक किये जानेवाले ब्रह्मयज्ञ में (वषट्कार:) = 'स्वाहा' करनेवाले के रूप में (अनुसंहित:) = निरन्तर स्मरण किये जाते हैं। प्रभु ने जीवहित के लिए अपने को दे डाला है-सर्वमहान् त्याग करनेवाले प्रभु ही हैं। वे 'आत्मदा: 'हैं। ३. (इमे सर्वे यातव:) = ये सब गतिशील पिण्ड-सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र आदि (तस्य) = उस प्रभु की (प्रशिषम् उपासते) = आज्ञा का उपासन करते हैं। ये सूर्यादि प्रभु के शासन में गति कर रहे हैं। (अमू सर्वा नक्षत्रा) = वे सब नक्षत्र (चन्द्रमसा सह) = चन्द्रमा के साथ (तस्य वशे) = उसके वश में है। प्रभु सब लोक-लोकान्तरों के अधिपति हैं और सब पिण्ड उस प्रभु के प्रशासन में गतिवाले हो रहे हैं।
भावार्थ
प्रभु ही मृत्यु हैं, वे ही अमृत हैं। वे महान् हैं, रक्षक है, ज्ञानदाता हैं, वसुओं को प्रास करानेवाले हैं। त्यागपुञ्ज वे प्रभु नमस्करणीय हैं। सब पिण्ड प्रभु के शासन में गति कर रहे हैं।
भाषार्थ
(इमे) ये (सर्वे) सब (यातवः) गतिशील तारागण आदि, (तस्य) उस सविता परमेश्वर के (प्रशिषम्) उत्तम-शासन की (उप आसते) उपासना करते हैं, अर्थात् उस के आज्ञापालक हैं।
विषय
परमेश्वर का वर्णन
भावार्थ
(तस्य) उसके (प्रशिषम्) शासन को (सर्वे) सब (यातवः) गतिमान सूर्य, ग्रह आदि पिण्ड और समस्त जंगम प्राणी भी (उप आसते) मानते हैं। (तस्य वशे) उसके वश में (चन्द्रमसा सह) चन्द्रमा सहित (अमू) ये (सर्वा) समस्त (नक्षत्रा) नक्षत्रगण भी हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
२२ भुरिक् प्राजापत्या त्रिष्टुप्, २३ आर्ची गायत्री, २५ एकपदा आसुरी गायत्री, २६ आर्ची अनुष्टुप् २७, २८ प्राजापत्याऽनुष्टुप्। सप्तर्चं तृतीयं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Savita, Aditya, Rohita, the Spirit
Meaning
All the moving stars and planets obey his law and discipline with praise and adoration.
Translation
All these causes of pains and tortures strictly obey His command.
Translation
All these controlling and Governing powers obey His Supreme governance.
Translation
All revolving planets and moving creatures obey with reverence His behest.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२७−(तस्य) परमेश्वरस्य (इमे) विद्यमानाः (सर्वे) (यातवः) कमिमनिजनिगाभायाहिभ्यश्च। उ० १।७३। या गतिप्रापणयोः-तु। गतिशीलाः पृथिव्यादिलोकाः प्राणिनश्च (प्रशिषम्) शासु अनुशिष्टौ-क्विप्। उत्तमं शासनम् (उपासते) सेवन्ते ॥
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