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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 38
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम् छन्दः - साम्न्युष्णिक् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
    1

    स वा ऋ॒ग्भ्योजा॑यत॒ तस्मा॒दृचो॑ऽजायन्त ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । वै । ऋ॒क्ऽभ्य: । अ॒जा॒य॒त॒ । तस्मा॑त् । ऋच॑: । अ॒जा॒य॒न्त॒ ॥७.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स वा ऋग्भ्योजायत तस्मादृचोऽजायन्त ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । वै । ऋक्ऽभ्य: । अजायत । तस्मात् । ऋच: । अजायन्त ॥७.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 38
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

    पदार्थ

    (सः) वह [परमात्मा] (वै) अवश्य (ऋग्भ्यः) ऋचाओं [स्ततियोग्य वेदवाणियों] से (अजायत) प्रकट हुआ है, (तस्मात्) उस [परमात्मा] से (ऋचः) ऋचाएँ (अजायन्त) उत्पन्न हुई हैं ॥३८॥

    भावार्थ

    परमात्मा के सत्यगुण वेदों से जाने जाते हैं, जिनको उसने मनुष्यों के हित के लिये उत्पन्न किया है ॥३८॥

    टिप्पणी

    ३८−(ऋग्भ्यः) स्तुत्याभ्यो वेदवाणीभ्यः (ऋचः) स्तुत्या वेदवाण्यः। अन्यद् गतम् ॥

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    पदार्थ

    १. (सः) = वह प्रभु (वै) = निश्चय से (भूमे:) = इस भूमि से (अजायत) = प्रादुर्भूत महिमावाला हो रहा है। यह भूमि अपने से उत्पन्न होनेवाले विविध वनस्पतियों के पत्र-पुष्पों में विविध पुण्यगन्धों को प्राप्त करा रही है। किन्हीं भी दो वनस्पतियों की गन्ध एक-सी नहीं, क्या ही अद्भुत चमत्कार-सा है! (भूमिः) = यह भूमि (तस्मात्) = उस प्रभु से ही तो (अजायत) = उत्पन्न हुई है। २. (सः वा) = वह प्रभु निश्चय से (अग्नेः) = अग्नि से (अजायत) = प्रादुर्भूत होता है। मिलाने व फाड़ने [संयुक्त व वियुक्त करने] की विरोधी शक्तियों को लिये हुए यह अग्नि भी विचित्र ही तत्त्व है। तस्मात् उस प्रभु से ही अग्निः (अजायत) = अग्नि उत्पन्न किया गया है। ३. (सः वा) = वह प्रभु निश्चय से (अद्भ्यः) = सब वनस्पतियों में विविध रसों का संचार करनेवाले जलों से (अजायत) = प्रादुर्भत महिमावाला होता है। तस्मात्-उस प्रभु से ही तो (आपः अजायन्त) = जल प्रादुर्भूत हुए हैं। ४. (सः वा) = यह प्रभु निश्चय से (ऋग्भ्यः) = ऋचाओं से (अजायत) = प्रादुर्भूत हो रहा है। किसप्रकार ये ऋचाएँ सम्पूर्ण प्रकृति-विज्ञान को प्रकट कर रही हैं? तस्मात् ऋचा: अजायन्त-उस प्रभु ने सृष्टि के आरम्भ में ही इन ऋचाओं का ज्ञान दिया है। ५. (सः वै) = वह प्रभु निश्चय से (यज्ञात्) = यज्ञ से (अजायत) = प्रकट हो रहा है, किसप्रकार 'यज्ञ' पर्जन्य को उत्पन्न कर वृष्टि द्वारा अन्नों का उत्पादन करके हमारे जीवन का आधार बनता है? तस्मात् यज्ञः (अजायत) = प्रभु से ही प्रजाओं के साथ ही इस यज्ञ का भी प्रादुर्भाव किया गया है। यज्ञ ही जीवन है।

    भावार्थ

    'भूमि, अग्नि, जल, ऋचाओं व यज्ञों' में इस प्रभु की महिमा का प्रादुर्भाव हो रहा  है|

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    भाषार्थ

    (सः वै) वह निश्चय से (ॠगभ्यः) ऋचाओं से (अजायत) प्रकट हुआ है, क्योंकि (तस्मात्) उस से (ऋचः) ऋचाएँ (अजायन्त) पैदा या प्रकट हुई हैं।

    टिप्पणी

    [इस वर्णन में स्पष्ट कहा है कि ॠचाएँ अर्थात् वेद, सविता नाम वाले अर्थात् प्रेरक परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं। परमेश्वर ने आद्य ऋषियों में वेद प्रेरित किये। साथ ही यह भी जानना चाहिये कि ऋचाओं से सविता तथा परमेश्वर का प्रसिद्धार्थक जन्म नहीं होता, अपितु उस के स्वरूप का बौद्धिक ज्ञानमात्र होता है। इसलिये जिन भी मन्त्रों में परमेश्वर के जन्म का वर्णन होता है, उन में जन्म द्वारा ज्ञानमात्र अर्थ ही जानना चाहिये।]

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    विषय

    परमेश्वर का वर्णन।

    भावार्थ

    (सः वा) वह परमेश्वर (ऋग्भ्यः अजायत) ऋचाओं से प्रकट होता है और ये (ऋचः) ऋचाएं (तस्मात् अजायन्त) उससे ही उत्पन्न होती हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    २९, ३३, ३९, ४०, ४५ आसुरीगायत्र्यः, ३०, ३२, ३५, ३६, ४२ प्राजापत्याऽनुष्टुभः, ३१ विराड़ गायत्री ३४, ३७, ३८ साम्न्युष्णिहः, ४२ साम्नीबृहती, ४३ आर्षी गायत्री, ४४ साम्न्यनुष्टुप्। सप्तदशर्चं चतुर्थं पर्यायसूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Savita, Aditya, Rohita, the Spirit

    Meaning

    And he emerges from the Rks, since the Rks are born of him for his self-manifestation.

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    Translation

    He, indeed, is born of Rk verses; Rk verses are born of him.

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    Translation

    He (as creator and revealer) comes to expression from the Riks (Vedic Speeches) therefore, the Riks emerge out from Him (as an efficient cause).

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    Translation

    The existence of God is perceived by studying the holy Vedic verses, which in reality are revealed by Him.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३८−(ऋग्भ्यः) स्तुत्याभ्यो वेदवाणीभ्यः (ऋचः) स्तुत्या वेदवाण्यः। अन्यद् गतम् ॥

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