अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 36
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - अध्यात्मम्
छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप्
सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
1
स वा अ॒ग्नेर॑जायत॒ तस्मा॑द॒ग्निर॑जायत ॥
स्वर सहित पद पाठस: । वै । अ॒ग्ने: । अ॒जा॒य॒त॒ । तस्मा॑त् । अ॒ग्नि: । अ॒जा॒य॒त॒ ॥७.८॥
स्वर रहित मन्त्र
स वा अग्नेरजायत तस्मादग्निरजायत ॥
स्वर रहित पद पाठस: । वै । अग्ने: । अजायत । तस्मात् । अग्नि: । अजायत ॥७.८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।
पदार्थ
(सः) वह [कारणरूप ईश्वर] (वै) अवश्य (अग्नेः) [कार्यरूप] अग्नि से (अजायत) प्रकट हुआ है, (तस्मात्) उस [कारणरूप] से (अग्निः) अग्नि [सूर्य, बिजुली आदि तेज] (अजायत) उत्पन्न हुआ है ॥३६॥
भावार्थ
मन्त्र २९ के समान ॥३६॥
टिप्पणी
३६−(अग्नेः) कार्यरूपात् तेजसः (अग्निः) सूर्यविद्युदादि तेजः। अन्यद् गतम् ॥
पदार्थ
१. (सः) = वह प्रभु (वै) = निश्चय से (भूमे:) = इस भूमि से (अजायत) = प्रादुर्भूत महिमावाला हो रहा है। यह भूमि अपने से उत्पन्न होनेवाले विविध वनस्पतियों के पत्र-पुष्पों में विविध पुण्यगन्धों को प्राप्त करा रही है। किन्हीं भी दो वनस्पतियों की गन्ध एक-सी नहीं, क्या ही अद्भुत चमत्कार-सा है! (भूमिः) = यह भूमि (तस्मात्) = उस प्रभु से ही तो (अजायत) = उत्पन्न हुई है। २. (सः वा) = वह प्रभु निश्चय से (अग्नेः) = अग्नि से (अजायत) = प्रादुर्भूत होता है। मिलाने व फाड़ने [संयुक्त व वियुक्त करने] की विरोधी शक्तियों को लिये हुए यह अग्नि भी विचित्र ही तत्त्व है। तस्मात् उस प्रभु से ही अग्निः (अजायत) = अग्नि उत्पन्न किया गया है। ३. (सः वा) = वह प्रभु निश्चय से (अद्भ्यः) = सब वनस्पतियों में विविध रसों का संचार करनेवाले जलों से (अजायत) = प्रादुर्भत महिमावाला होता है। तस्मात्-उस प्रभु से ही तो (आपः अजायन्त) = जल प्रादुर्भूत हुए हैं। ४. (सः वा) = यह प्रभु निश्चय से (ऋग्भ्यः) = ऋचाओं से (अजायत) = प्रादुर्भूत हो रहा है। किसप्रकार ये ऋचाएँ सम्पूर्ण प्रकृति-विज्ञान को प्रकट कर रही हैं? तस्मात् ऋचा: अजायन्त-उस प्रभु ने सृष्टि के आरम्भ में ही इन ऋचाओं का ज्ञान दिया है। ५. (सः वै) = वह प्रभु निश्चय से (यज्ञात्) = यज्ञ से (अजायत) = प्रकट हो रहा है, किसप्रकार 'यज्ञ' पर्जन्य को उत्पन्न कर वृष्टि द्वारा अन्नों का उत्पादन करके हमारे जीवन का आधार बनता है? तस्मात् यज्ञः (अजायत) = प्रभु से ही प्रजाओं के साथ ही इस यज्ञ का भी प्रादुर्भाव किया गया है। यज्ञ ही जीवन है।
भावार्थ
'भूमि, अग्नि, जल, ऋचाओं व यज्ञों' में इस प्रभु की महिमा का प्रादुर्भाव हो रहा है|
भाषार्थ
(सः वै) वह निश्चय से (अग्नेः) अग्नि से (अजायत) प्रकट हुआ है, क्योंकि (तस्मात्) उस से (अग्निः) अग्नि (अजायत) पैदा हुई है ।
विषय
परमेश्वर का वर्णन।
भावार्थ
(सः वा अग्नेः अजायत) जिस प्रकार सूर्य अग्नि तत्व से उत्पन्न होता है और (तस्माद् अग्निः अजायत) उस सूर्य से अग्नि उत्पन होता है उसी प्रकार वह परमेश्वर अग्नि की महान शक्ति से स्वयं प्रकट होता और अग्नि उसी से उत्पन्न होता है।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
२९, ३३, ३९, ४०, ४५ आसुरीगायत्र्यः, ३०, ३२, ३५, ३६, ४२ प्राजापत्याऽनुष्टुभः, ३१ विराड़ गायत्री ३४, ३७, ३८ साम्न्युष्णिहः, ४२ साम्नीबृहती, ४३ आर्षी गायत्री, ४४ साम्न्यनुष्टुप्। सप्तदशर्चं चतुर्थं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Savita, Aditya, Rohita, the Spirit
Meaning
He is manifest from Agni, since the fire is born of him through his manifestation.
Translation
He, indeed, is born of the elemental fire; the elemental fire is born of him
Translation
He (as creator) comes to expression from the fire, therefore, the fire emerges out from Him (as an efficient cause).
Translation
The existence of God is perceived by beholding fire, which in reality is created by Him.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३६−(अग्नेः) कार्यरूपात् तेजसः (अग्निः) सूर्यविद्युदादि तेजः। अन्यद् गतम् ॥
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