अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 30
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - अध्यात्मम्
छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप्
सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
1
स वै रात्र्या॑ अजायत॒ तस्मा॒द्रात्रि॑रजायत ॥
स्वर सहित पद पाठस: । वै । रात्र्या॑: । अ॒जा॒य॒त॒ । तस्मा॑त् । रात्रि॑: । अ॒जा॒य॒त॒ ॥७.२॥
स्वर रहित मन्त्र
स वै रात्र्या अजायत तस्माद्रात्रिरजायत ॥
स्वर रहित पद पाठस: । वै । रात्र्या: । अजायत । तस्मात् । रात्रि: । अजायत ॥७.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।
पदार्थ
(सः) वह [कारणरूप ईश्वर] (वै) अवश्य (रात्र्याः) [कार्यरूप] रात्रि से (अजायत) प्रकट हुआ है, (तस्मात्) उस [कारणरूप] से (रात्रिः) रात्रि (अजायत) उत्पन्न हुई है ॥३०॥
भावार्थ
मन्त्र २९ के समान है ॥३०॥
टिप्पणी
३०−(रात्र्याः) कार्यरूपाया निशायाः (रात्रिः) निशा। अन्यद् यथा म० २९ ॥
विषय
'दिन व रात्रि में, अन्तरिक्ष व वायु में', धुलोक व दिशाओं में प्रभु का प्रकाश
पदार्थ
१. (स: वा) = वे प्रभु निश्चय से (अह्नः अजायत) = दिन से प्रादुर्भूत हो रहे हैं-दिन की रचना में प्रभु की महिमा का प्रकाश हो रहा है। (तस्मात्) = उस प्रभु से ही तो (अहः अजायत) = यह दिन प्रकट किया गया है। प्रभु ने दिन [अ-हन्] का निर्माण करके मनुष्यों को एक भी क्षण नष्ट न करते हुए आगे बढ़ने का अवसर दिया है। २. इसीप्रकार (सः वै) = वे प्रभु निश्चय से (रात्र्या अजायत) = रात्रि से प्रादुर्भूत हो रहे हैं। किस प्रकार रात्रि रमयित्री-हमारी सारी थकावट को दूर करके हमें प्रफुल्लित कर देती है। (तस्मात् रात्रिः अजायत) = उस प्रभु से ही यह रात्रि प्रादुर्भूत की गई है। ३. (सः वा) = वे प्रभु निश्चय से (अन्तरिक्षात् अजायत) = इस 'वायु चन्द्र, मेष व विद्युत् के आधारभूत अन्तरिक्ष से प्रकट हो रहे हैं। तस्मात्-उस प्रभु से ही अन्तरिक्ष अजायत्-यह अन्तरिक्ष प्रादुर्भूत किया गया है। ४. (सः वै) = वे प्रभु निश्चय से (वायो: अजायत) = वायु से प्रादुर्भूत हो रहे हैं। प्राणिमात्र के जीवन की कारणभूत ये वायु भी उस प्रभु की अद्भुत ही सृष्टि है। (तस्मात्) = उस प्रभु से ही (वायुः अजायत) = उस जीवनप्रद वायु का प्रादुर्भाव किया गया है। ५. (स: वै) = वे प्रभु निश्चय से (दिवः) = सूर्य के आधारभूत इस द्युलोक से (अजायत) = प्रादुर्भूत महिमावाले हो रहे हैं। सम्पूर्ण प्रकाशमय व प्राणशक्ति का स्रोत कितना अद्भुत है यह सूर्य! (तस्मात्) = उस प्रभु से ही (द्यौः) = सूर्य-प्रकाश से देदीप्यमान यह द्युलोक अध्यजायत उत्पन्न किया गया है। ६. (स: वै) = वे प्रभु निश्चय से (दिग्भ्यः) = इन प्राची आदि दिशाओं से (अजायत) = प्रादुर्भूत महिमावाले हो रहे हैं। उत्तर-दक्षिण में किस प्रकार चुम्बकीय शक्ति कार्य करती है और किस प्रकार सूर्यादि सब पिण्ड पूर्व से पश्चिम की ओर गति कर रहे हैं? यह सब-कुछ अद्भुत ही है। (तस्मात्) = इस प्रभु से (दिश: अजायन्त) = इन दिशाओं का प्रादुर्भाव किया गया है।
भावार्थ
दिन व रात्रि में, अन्तरिक्ष व वायु में, धुलोक व दिशाओं में सर्वत्र प्रभु की महिमा का प्रकाश हो रहा है।
भाषार्थ
(सः वै) वह निश्चय से (रात्र्याः) रात्रि से (अजायत) प्रकट हुआ है, क्योंकि (तस्मात्) उन से (रात्रिः) रात्रि (अजायत) पैदा हुई है।
टिप्पणी
[अजायत= इस पद में "जन्" धातु का प्रयोग है, जिस का प्रसिद्ध अर्थ है जन्म धारण करना। दिन और रात्रि आदि से सविता-परमेश्वर का प्रसिद्धार्थक जन्म नहीं होता, न ही प्रतिदिन और प्रतिरात्रि से सविता-परमेश्वर का प्रतिदिन और प्रतिरात्रि जन्म होता रहता है। प्रतिदिन ओर प्रतिरात्रि, सविता-परमेश्वर का प्रकटीकरण तो अनुमान द्वारा होता ही रहता है]।
विषय
परमेश्वर का वर्णन।
भावार्थ
(सः वा) वह सूर्य जिस प्रकार (रात्र्याः अजायत) रात्रि के उत्तर काल में उदित होकर रात्रि से उत्पन्न होता प्रतीत है और सूर्य के अस्त हो जाने पर रात्रि के आजाने से (तस्माद् रात्रिः अजायत) उस सूर्य से रात्रि होती प्रतीत होती है उसी प्रकार वह परमेश्वर उस महा प्रलय की घोर रात्रि से ही जाना जाता है, वस्तुतः उस परमेश्वर से ही वह प्रलय काल की रात्रि भी उत्पन्न होती है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
२९, ३३, ३९, ४०, ४५ आसुरीगायत्र्यः, ३०, ३२, ३५, ३६, ४२ प्राजापत्याऽनुष्टुभः, ३१ विराड़ गायत्री ३४, ३७, ३८ साम्न्युष्णिहः, ४२ साम्नीबृहती, ४३ आर्षी गायत्री, ४४ साम्न्यनुष्टुप्। सप्तदशर्चं चतुर्थं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Savita, Aditya, Rohita, the Spirit
Meaning
He is manifest from the night, since the night is born of him through his manifestation.
Translation
He, indeed, is born of the night: the night is born of him,
Translation
He (as creator of cosmos) comes to expression from night therefore, the night emerges out from Him (as an efficient cause).
Translation
Just as the Sun appears to be born of Night, as it appears after its expiry, and Night is born of the Sun as it sets in the evening, so the existence of God is perceived by beholding the Great Night of Dissolution, which in reality is created by Him.
Footnote
God creates the universe which last 4320000000 years which is called Brahma Day. He dissolves the universe. Matter goes into its atomic state, and thus lasts for the same period. It is called Brahma Night. This process is beginningless and endless.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३०−(रात्र्याः) कार्यरूपाया निशायाः (रात्रिः) निशा। अन्यद् यथा म० २९ ॥
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