अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 5
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - अध्यात्मम्
छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप्
सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
8
सो अ॒ग्निः स उ॒ सूर्यः॒ स उ॑ ए॒व म॑हाय॒मः ॥
स्वर सहित पद पाठस: । अ॒ग्नि: । स: । ऊं॒ इति॑ । सूर्य॑: । स: । ऊं॒ इति॑ । ए॒व । म॒हा॒ऽय॒म: ॥४.५॥
स्वर रहित मन्त्र
सो अग्निः स उ सूर्यः स उ एव महायमः ॥
स्वर रहित पद पाठस: । अग्नि: । स: । ऊं इति । सूर्य: । स: । ऊं इति । एव । महाऽयम: ॥४.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।
पदार्थ
(सः) वह [परमेश्वर] (अग्निः) व्यापकः (सः उ) वही (सूर्यः) प्रेरक, (सः उ) वही (एव) निश्चय करके (महायमः) बड़ा न्यायकारी है ॥५॥
भावार्थ
मन्त्र ३ के समान है ॥५॥
टिप्पणी
५−(सः) (अग्निः) व्यापकः (सः) (उ) अवधारणे (सूर्यः) प्रेरकः (सः) (उ) (एव) निश्चयेन (महायमः) महान्यायाधीशः ॥
पदार्थ
शब्दार्थ = ( स ) = वह परमेश्वर ( धाता ) = पोषण करनेवाला और ( स विधर्ता ) = वही परमेश्वर विविध प्रकार से धारण करनेवाला है। ( स वायुः ) = वह परमात्मा महाबली है। ( उच्छ्रितम् ) = और ऊँचा वर्त्तमान ( नभ: ) = प्रबन्धकर्त्ता व नायक है ( स: ) = वह परमेश्वर ( अर्यमा ) = सब से श्रेष्ठ और श्रेष्ठों का मान करता है। ( स वरुण: ) = वह श्रेष्ठ ( स रुद्रः ) = वह भगवान् ज्ञानवान् है । ( स महादेव: ) = वह महादानी है। ( सः ) = वह परमात्मा ( अग्निः ) = व्यापक ( स उ सूर्यः ) = वही प्रेरक है । ( स उ ) = वही ( एव ) = निश्चय करके ( महायम:) = बड़ा न्यायकारी है ।
भावार्थ
भावार्थ = इस परमेश्वर के अनन्त नाम जैसे ऋग्वेदादि में कहे हैं, वैसे इस अथर्व में भी अनेक नाम कहे हैं। जैसे कि धाता, विधर्ता, नभः, अर्यमा, वरुण, महादेव, अग्नि, सूर्य, महायम इत्यादि ।
विषय
धाता, अर्यमा, अग्नि
पदार्थ
१. (स:) = वे प्रभु (धाता) = सबका निर्माण करनेवाले हैं [धाता]। (स: विधर्ता) = वे विशेषरूप से धारण करनेवाले हैं। (सः वायुः) = वे गति द्वारा सब बुराइयों का गन्धन [हिंसन] करनेवाले हैं। (नभः) = [णह बन्धने] वे सूत्ररूपेण सबको अपने में बाँधनेवाले हैं [मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव]। उच्छितम्-वे प्रभु सर्वोन्नत हैं-प्रत्येक उत्तमता की चरमसीमा ही तो प्रभु हैं। इसप्रकार प्रभु-चिन्तन करनेवाले का (नभः) = मस्तिष्करूप झुलोक (रश्मिभिः आभृतम्) = ज्ञानरश्मियों से आभूत होता है तथा (आवृतः) = ज्ञान से आवृत (महेन्द्रः एति) = प्रभु प्राप्त होते हैं। २. (सः) = वे प्रभु ही (अर्यमा) = [अरीन् यच्छति] हमारे काम-क्रोधादि शत्रुओं का नियमन करनेवाले हैं। (सः वरुण:) = वे वरणीय व श्रेष्ठ हैं। (सः) = वे (रुद्रा:) = [रुत्-र] ज्ञानोपदेश करनेवाले हैं। (सः महादेव:) = वे महान् देव हैं। ३. (स: अग्निः) = वे प्रभु ही अग्रणी हैं, हमें आगे ले-चलनेवाले हैं। (उ) = और (सः सूर्य:) = वे प्रभु ही सूर्य हैं, हमें कर्मों में प्रेरित करनेवाले हैं [सुवति कर्मणि] (उ) = और (सः एव) = वे ही महायमः सर्वमहान् नियन्ता हैं। इस प्रकार प्रभु का स्मरण करनेवाला पुरुष अपने हृदयाकाश को ज्ञानरश्मियों से परिपोषित करता है और इसे ज्ञान से आवृत प्रभु प्राप्त होते हैं।
भावार्थ
हम 'धाता, विधर्ता' आदि नामों से प्रभु का स्मरण करते हुए वैसा ही बनने का प्रयत्न करें। परिणामत: हमें प्रकाश प्राप्त होगा और हमारा हृदय प्रभु का अधिष्ठान बनेगा।
भाषार्थ
वह सविता अग्नि है, वह ही सूर्य है, वह ही महायम है। (रश्मिभिः) देखो मन्त्र (२)।
टिप्पणी
[महायमः= महानियन्ता, जङ्गम, और स्थावर सृष्टि का नियन्ता]।
विषय
रोहित, परमेश्वर का वर्णन।
भावार्थ
(सः अग्निः) वह सर्वप्रकाशक, सर्वव्यापक, सबों का अग्रणी तेजोमय ज्ञानवान् ‘अग्नि’ है। (सः उ सूर्यः) वह ही सूर्य, सबका, प्रेरक उत्पादक, प्रकाशक है। (स उ एव महायमः) वह ही महान् नियन्ता ‘महायम’ है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। अध्यात्मं रोहितादित्यो देवता। त्रिष्टुप छन्दः। षट्पर्यायाः। मन्त्रोक्ता देवताः। १-११ प्राजापत्यानुष्टुभः, १२ विराङ्गायत्री, १३ आसुरी उष्णिक्। त्रयोदशर्चं प्रथमं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Savita, Aditya, Rohita, the Spirit
Meaning
He is Agni, fire and passion of life, leader, pioneer, High-priest. He is the Surya, self-refulgent, He is Mahayama, supreme guide and justiciar. The sky overflows with light, Mahendra comes wrapped in the halo of divinity.
Translation
He is the fire divine; He is also the sun; and verily He is the supreme controller. The great resplendent Lord comes to the dimmed sky surrounded with rays.
Translation
Verily He is called Agnih,He is Surya and He is known as Mahayamah. This….this.
Translation
He is Agni, Omniscient, He is Surya, the Urger. He is Mahayama, the Great Leader. Great God pervades all the worlds with His refulgence,
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५−(सः) (अग्निः) व्यापकः (सः) (उ) अवधारणे (सूर्यः) प्रेरकः (सः) (उ) (एव) निश्चयेन (महायमः) महान्यायाधीशः ॥
बंगाली (1)
পদার্থ
স ধাতা স বিধর্তা স বায়ুর্নভ উচ্ছ্রিতম্।
সোঽর্য়মা স বরুণঃ স রুদ্রঃ স মহাদেবঃ।
সো অগ্নিঃ স উ সূর্য়ঃ স উ মহায়মঃ।।৫৩।।
(অথর্ব ১৩।৪।৩, ৪, ৫)
পদার্থঃ (সঃ) সেই পরমেশ্বর (ধাতা) আমাদের পোষণকর্তা এবং (স্ বিধর্তা) তিনিই আমাদের বিবিধ প্রকারে ধারণ করেন। (সঃ বায়ুঃ) সেই পরমাত্মা সর্বব্যাপক। (উচ্ছ্রিতম্) সকলের চেয়ে উন্নত, (নভঃ) তিনিই আমাদের সকলকে একত্রে বন্ধন করে রেখেছেন। (সঃ) সেই পরমাত্মা (অর্য়মা) শ্রেষ্ঠদিগের মান্যতা দানকারী। (সঃ বরুণঃ) তিনি শ্রেষ্ঠ, (সঃ রুদ্রঃ) সেই ভগবান জ্ঞানবান, (সঃ মহাদেবঃ) তিনি মহাদানকারী। (সঃ) সেই পরমাত্মা (অগ্নিঃ) সমস্তকিছু ব্যাপন করে আছেন, (সঃ উ সূর্য়ঃ) তিনিই প্রেরণা দানকারী। (সঃ উ) তিনিই (এব) নিশ্চিত রূপে (মহা যমঃ) মহান ন্যায়কারী।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ পরমেশ্বরের অনন্ত নাম। যেমন ঋগ্বেদে বলা হয়েছে তেমনি অথর্ববেদের এই মন্ত্রেও বলা হচ্ছে, তিনিই যথাক্রমে- ধাতা, বিধাতা, বায়ু, নভ, উচ্ছ্রিত, অর্যমা, বরুণ, রুদ্র, মহাদেব, অগ্নি, সূর্য, মহাযম ইত্যাদি ।।৫৩।।
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