अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 33
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - अध्यात्मम्
छन्दः - आसुरी गायत्री
सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
1
स वै दि॒वोजा॑यत॒ तस्मा॒द्द्यौरधि॑ अजायत ॥
स्वर सहित पद पाठस: । वै । दि॒व: । अ॒जा॒य॒त॒ । तस्मा॑त् । द्यौ: । अधि॑ । अ॒जा॒य॒त॒ ॥७.५॥
स्वर रहित मन्त्र
स वै दिवोजायत तस्माद्द्यौरधि अजायत ॥
स्वर रहित पद पाठस: । वै । दिव: । अजायत । तस्मात् । द्यौ: । अधि । अजायत ॥७.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।
पदार्थ
(सः) वह [कारणरूप ईश्वर] (वै) अवश्य (दिवः) [कार्यरूप] सूर्य से (अजायत) प्रकट हुआ है, (तस्मात्) उस [कारणरूप] से (द्यौः) सूर्य (अधि) यथाविधि (अजायत) उत्पन्न हुआ है ॥३३॥
भावार्थ
मन्त्र २९ के समान ॥३३॥
टिप्पणी
३३−(दिवः) कार्यरूपात् सूर्यात् (द्यौः) सूर्यः (अधि) यथाविधि। अन्यद् गतम् ॥
विषय
'दिन व रात्रि में, अन्तरिक्ष व वायु में', धुलोक व दिशाओं में प्रभु का प्रकाश
पदार्थ
१. (स: वा) = वे प्रभु निश्चय से (अह्नः अजायत) = दिन से प्रादुर्भूत हो रहे हैं-दिन की रचना में प्रभु की महिमा का प्रकाश हो रहा है। (तस्मात्) = उस प्रभु से ही तो (अहः अजायत) = यह दिन प्रकट किया गया है। प्रभु ने दिन [अ-हन्] का निर्माण करके मनुष्यों को एक भी क्षण नष्ट न करते हुए आगे बढ़ने का अवसर दिया है। २. इसीप्रकार (सः वै) = वे प्रभु निश्चय से (रात्र्या अजायत) = रात्रि से प्रादुर्भूत हो रहे हैं। किस प्रकार रात्रि रमयित्री-हमारी सारी थकावट को दूर करके हमें प्रफुल्लित कर देती है। (तस्मात् रात्रिः अजायत) = उस प्रभु से ही यह रात्रि प्रादुर्भूत की गई है। ३. (सः वा) = वे प्रभु निश्चय से (अन्तरिक्षात् अजायत) = इस 'वायु चन्द्र, मेष व विद्युत् के आधारभूत अन्तरिक्ष से प्रकट हो रहे हैं। तस्मात्-उस प्रभु से ही अन्तरिक्ष अजायत्-यह अन्तरिक्ष प्रादुर्भूत किया गया है। ४. (सः वै) = वे प्रभु निश्चय से (वायो: अजायत) = वायु से प्रादुर्भूत हो रहे हैं। प्राणिमात्र के जीवन की कारणभूत ये वायु भी उस प्रभु की अद्भुत ही सृष्टि है। (तस्मात्) = उस प्रभु से ही (वायुः अजायत) = उस जीवनप्रद वायु का प्रादुर्भाव किया गया है। ५. (स: वै) = वे प्रभु निश्चय से (दिवः) = सूर्य के आधारभूत इस द्युलोक से (अजायत) = प्रादुर्भूत महिमावाले हो रहे हैं। सम्पूर्ण प्रकाशमय व प्राणशक्ति का स्रोत कितना अद्भुत है यह सूर्य! (तस्मात्) = उस प्रभु से ही (द्यौः) = सूर्य-प्रकाश से देदीप्यमान यह द्युलोक अध्यजायत उत्पन्न किया गया है। ६. (स: वै) = वे प्रभु निश्चय से (दिग्भ्यः) = इन प्राची आदि दिशाओं से (अजायत) = प्रादुर्भूत महिमावाले हो रहे हैं। उत्तर-दक्षिण में किस प्रकार चुम्बकीय शक्ति कार्य करती है और किस प्रकार सूर्यादि सब पिण्ड पूर्व से पश्चिम की ओर गति कर रहे हैं? यह सब-कुछ अद्भुत ही है। (तस्मात्) = इस प्रभु से (दिश: अजायन्त) = इन दिशाओं का प्रादुर्भाव किया गया है।
भावार्थ
दिन व रात्रि में, अन्तरिक्ष व वायु में, धुलोक व दिशाओं में सर्वत्र प्रभु की महिमा का प्रकाश हो रहा है।
भाषार्थ
(सः वै) वह निश्चय से (दिवः) द्युलोक से (अजायत) प्रकट हुआ है, क्योंकि (तस्माद् अधि) उस से (द्यौः) द्युलोक (अजायत) पैदा हुआ है।
विषय
परमेश्वर का वर्णन।
भावार्थ
(वै) निश्चय से (दिवः) द्यौलोक, महान् आकाश से (सः अजायत) वह प्रकट होता है (तस्माद्) उससे (द्यौः अधि अजायत) द्यौ, वह महान् आकाश उत्पन्न होता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
२९, ३३, ३९, ४०, ४५ आसुरीगायत्र्यः, ३०, ३२, ३५, ३६, ४२ प्राजापत्याऽनुष्टुभः, ३१ विराड़ गायत्री ३४, ३७, ३८ साम्न्युष्णिहः, ४२ साम्नीबृहती, ४३ आर्षी गायत्री, ४४ साम्न्यनुष्टुप्। सप्तदशर्चं चतुर्थं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Savita, Aditya, Rohita, the Spirit
Meaning
He is manifest from the solar region, since the solar region is born of him through his manifestation.
Translation
He, indeed, is born of the heaven; the heaven is born of him.
Translation
He (as creator) comes to expression from the heavenly region, therefore, the heavenly region emerges out from Him (as an efficient cause).
Translation
The existence of God is perceived by beholding the Heaven, which in reality is created by Him.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३३−(दिवः) कार्यरूपात् सूर्यात् (द्यौः) सूर्यः (अधि) यथाविधि। अन्यद् गतम् ॥
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