अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 23/ मन्त्र 10
ऋषिः - अथर्वा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - अथर्वाण सूक्त
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त्र॑योदश॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठत्र॒यो॒द॒श॒ऽऋ॒चेभ्यः॑। स्वाहा॑ ॥२३.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
त्रयोदशर्चेभ्यः स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठत्रयोदशऽऋचेभ्यः। स्वाहा ॥२३.१०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पदार्थ
(त्रयोदशर्चेभ्यः) तेरह [उछालना, गिराना, सकोड़ना, फैलाना और चलना पाँच कर्म तथा छोटाई, हलकायी, प्राप्ति, स्वतन्त्रता, बड़ाई, ईश्वरपन, जितेन्द्रियता और सत्य संकल्प आठ ऐश्वर्य इन तेरह] की स्तुतियोग्य विद्यावाले [वेदों] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥१०॥
भावार्थ
मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥१०॥
टिप्पणी
१०−(त्रयोदशर्चेभ्यः) म०१। उत्क्षेपणमवक्षेपणमाकुञ्चनं प्रसारणं गमनमिति कर्माणि-वैशेषिके १।१।७। अणिमा लघिमा प्राप्तिः प्राकाम्यं महिमा तथा। ईशित्वं च वशित्वं च तथा कामावसायिता ॥१॥ इत्यष्टैश्वर्याणि। इत्येतेषां त्रयोदशानां स्तुत्या विद्या येषु तेभ्यो वेदेभ्यः ॥
विषय
बुद्धि, चौदह विद्याएँ, १५ गन्ध
पदार्थ
१. (द्वादशचेंभ्यः स्वाहा) = बारह आदित्यों [चैत्र आदि १२ मासों] का स्तवन व प्रतिपादन करनेवाले मन्त्रों के लिए हम प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं। इनके अध्ययन से इन बारह मासों के अनुरूप आहार-विहार को अपनाते हुए आदित्यसम दीप्त-जीवनवाले बनते हैं। २. (त्रयोदशर्चेभ्यः स्वाहा) = पाँच यमों [अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह] तथा पाँच नियमों [शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वरप्रणिधान] और उनके पालन से स्वस्थ होनेवाले 'शरीर, मन व बुद्धि' का स्तवन करनेवाले मन्त्रों के लिए हम प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं और यम-नियमों का पालन करते हुए हम त्रिविध स्वस्थ्य को प्राप्त करते हैं। ३. (चतुर्दशर्चेभ्यः स्वाहा) = चतुर्दश विद्याओं का [षडङ्गमिश्रिता वेदा धर्मशास्त्रां पुराणकम्। मीमांसा तर्कमपि च एता विद्याश्चतुर्दश] शंसन करनेवाले मन्त्रों का शंसन करते हुए हम इन चौदह विद्याओं को प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं। ४. (पञ्चदशचेभ्यः स्वाहा) = द्विविधगन्ध [सुरभि-असुरभि] षड् रस [कषाय, मधुर, लवण, कटु, तिक्त, अम्ल], सप्तवर्ण [सूर्य की सात रंग की किरणें]-इन पन्द्रह का वर्णन करनेवाली ऋचाओं के लिए हम प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं और इनका यथायोग करते हुए स्वस्थ बनते हैं।
भावार्थ
हम बारह आदित्यों को समझें। दश यम-नियमों व उनसे स्वस्थ बननेवाले शरीर, मन व बुद्धि को समझें। चौदह विद्याओं को जानने के लिए यत्नशील हों और 'द्विविध गन्ध, षड् रसों व सप्त वर्णों को समझकर' उनका ठीक प्रयोग करनेवाले बनें।
भाषार्थ
१३ ऋचाओं वाले सूक्तों के लिए प्रशंसायुक्त वाणी हो।
इंग्लिश (4)
Subject
x
Meaning
For thirteen-verse hymns (on thirteen adorables: eight siddhis and five natural variations of rising, falling, contraction, expansion and displacement), Svaha.
Translation
Svaha to the thirteen-versed ones.
Translation
Let us gain knowledge from the sets of thirteen verses and appreciate them.
Translation
Have full mastery over the suktas with thirteen Richas.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१०−(त्रयोदशर्चेभ्यः) म०१। उत्क्षेपणमवक्षेपणमाकुञ्चनं प्रसारणं गमनमिति कर्माणि-वैशेषिके १।१।७। अणिमा लघिमा प्राप्तिः प्राकाम्यं महिमा तथा। ईशित्वं च वशित्वं च तथा कामावसायिता ॥१॥ इत्यष्टैश्वर्याणि। इत्येतेषां त्रयोदशानां स्तुत्या विद्या येषु तेभ्यो वेदेभ्यः ॥
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