अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 23/ मन्त्र 25
ऋषिः - अथर्वा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - दैवी पङ्क्तिः
सूक्तम् - अथर्वाण सूक्त
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व्रा॒त्याभ्यां॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठव्रा॒त्याभ्या॑म्। स्वाहा॑॥२३.२५॥
स्वर रहित मन्त्र
व्रात्याभ्यां स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठव्रात्याभ्याम्। स्वाहा॥२३.२५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पदार्थ
(व्रात्याभ्याम्) मनुष्यों के हितकारी दोनों [बल और पराक्रम] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥२५॥
भावार्थ
मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥२५॥
टिप्पणी
२५−(व्रात्याभ्याम्) अ०१५।१।१। व्रात-यत्। व्राताः, मनुष्य-नाम-निघ०२।३। मनुष्येभ्यो हिताभ्यां बलपराक्रमाभ्याम् ॥
विषय
सूर्य-वात्य-प्राजापत्य
पदार्थ
१. [रोहयति इति] (रोहितेभ्य:) = हमारा उत्थान करनेवाले इन वेदमन्त्रों के लिए (स्वाहा) = मैं अपना अर्पण करता हूँ। २. (सूर्याभ्यां स्वाहा) = वेद से प्रेरणा प्राप्त करके सूर्य की भाँति निरन्तर गतिशील [सरति] पति-पत्नी के लिए हम शुभ शब्द कहते हैं। उनका प्रशंसन करते हैं। हम भी उनसे अपना जीवन उन-जैसा बनाने की प्रेरणा लेते हैं। ३. (वात्याभ्याम्) = व्रतमय जीवनवाले पति-पत्नी के लिए हम (स्वाहा) = प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं। हम भी उनकी भौति व्रती जीवनवाले होते हैं। ४. (प्राजापत्याभ्याम्) = सन्तानों का उत्तम रक्षण करनेवाले इन पति-पत्नी के लिए (स्वाहा) = हम प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं और उनसे स्वयं भी सन्तानों के सम्यक् रक्षण की प्रेरणा लेते हैं।
भावार्थ
उन्नति के साधनभूत वेद-मन्त्रों का अध्ययन करते हुए हम निरन्तर गतिशील [सूर्य] व्रतमय जीवनवाले [ब्रात्य] व सन्तानों का सम्यक् रक्षण करनेवाले [प्राजापत्य] बनते हैं।
भाषार्थ
“व्रात्य” के वर्णन सम्बन्धी दो अनुवाकों के लिये प्रशंसायुक्त वाणी हो।
टिप्पणी
[अथर्ववेद के १५ वें काण्ड में दो अनुवाक हैं, जिनमें “व्रात्य” का वर्णन है। व्रात्य= व्रतं कर्मनाम (निघं० २.१); तथा व्राताः मनुष्यनाम (निघं० २.३)। अर्थात् व्रतपति तथा मनुष्यजाति का हितकारी परमेश्वर, तथा व्रतधारी और मनुष्य जाति का कल्याण करनेवाला महाविद्वान् व्यक्ति।]
इंग्लिश (4)
Translation
Svih to the two about Vratya (learned guest).
Translation
Let us gain the knowledge of two entities of inviolable discipline i. e. God and material cause of the universe and appreciate them.
Translation
Completely study the two sukta of Vratya (i.e., 15 Kanda).
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२५−(व्रात्याभ्याम्) अ०१५।१।१। व्रात-यत्। व्राताः, मनुष्य-नाम-निघ०२।३। मनुष्येभ्यो हिताभ्यां बलपराक्रमाभ्याम् ॥
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