अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 23/ मन्त्र 13
ऋषिः - अथर्वा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - दैवी जगती
सूक्तम् - अथर्वाण सूक्त
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षो॑डश॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठषो॒ड॒श॒ऽऋ॒चेभ्यः॑। स्वाहा॑ ॥२३.१३॥
स्वर रहित मन्त्र
षोडशर्चेभ्यः स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठषोडशऽऋचेभ्यः। स्वाहा ॥२३.१३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पदार्थ
(षोडशर्चेभ्यः) सोलह [प्राण, श्रद्धा, आकाश, वायु, प्रकाश, जल, पृथिवी, इन्द्रिय, मन, अन्न, वीर्य, तप, मन्त्र, कर्म, लोक और नाम−इन सोलह कलाओं] की स्तुतियोग्य विद्यावाले [वेदों] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥१३॥ प्रश्नोपनिषद में सोलह कलाएँ इस प्रकार हैं [स प्राणमसृजत, प्राणाच्छ्रद्धा खं वायुर्ज्योतिरापः पृथिवीन्द्रियम्। मनोऽन्नमन्नाद् वीर्यं तपो मन्त्राः कर्म लोका लोकेषु च नाम च ॥ प्रश्न ६ श्लोक ४] उस [पुरुष] ने प्राण, प्राण से श्रद्धा [आस्तिक बुद्धि], आकाश, वायु, प्रकाश, जल, पृथिवी, इन्द्रिय [ज्ञानेन्द्रिय और कर्मेन्द्रिय] मन और अन्न को, अन्न से वीर्य, तप, मन्त्रों [ऋग्वेदादि चार वेदों] कर्म और लोकों में नाम को उत्पन्न किया ॥
भावार्थ
मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥१३॥
टिप्पणी
१३−(षोडशर्चेभ्यः) म०१। प्रश्नोपनिषदि प्रश्ने ६ श्लोके ४ प्रतिपादितानां प्राणश्रद्धादिषोडशकलानां स्तुत्या विद्या येषु वेदेषु तेभ्यः ॥
विषय
षोडश कलाएँ, १७ तत्त्वों का सूक्ष्मशरीर, अष्टादश ऋत्विज्
पदार्थ
१. षोडशचेंभ्यः स्वाहा-सोलह कलाओंवाले षोडशी पुरुष की सोलह कलाओं का शंसन करनेवाले मन्त्रों के लिए हम प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं और इनके अध्ययन से इन सोलह कलाओं को समझने का प्रयत्न करते हैं। [प्राण, श्रद्धा, पञ्चभूतात्मक शरीर, इन्द्रियाँ, मन, अन्न, वीर्य, तप, मन्त्र, कर्म, लोक, नाम]। ३. (सप्तदशर्चेभ्यः स्वाहा) = 'दश इन्द्रियाँ-पाँच प्राण, मन व बुद्धि' से बने हुए सत्रह तत्त्वोंवाले सूक्ष्मशरीर का वर्णन करनेवाले मन्त्रों के लिए हम शंसन करते हैं। इनके अध्ययन से इस सूक्ष्मशरीर के महत्त्व को समझकर इसकी उन्नति के लिए यत्नशील होते हैं। ३. (अष्टादशभ्यः स्वाहा) = 'सोलह ऋत्विजों तथा यजमान व यजमान-पत्नी' इन अठारह से चलनेवाले यज्ञों का शंसन करनेवाले मन्त्रों का हम शंसन करते हैं। इनके अध्ययन से इन यज्ञों को जानकर इन्हें अपनाते हैं। ४. (एकोनविंशति:) = जागरित व स्वप्नस्थान में १९ मुखोंवाला [एकोनविंशतिमुख: दश इन्द्रियाँ, पञ्च प्राण, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार] मैं "एकोनविंशति' (स्वाहा) = न मन्त्रों के प्रति अपने को अर्पित करता हूँ। इन सब मुखों से इन्हीं के अध्ययन के लिए यत्नशील होता है। ५. (विंशति:) = पञ्चस्थूलभूत+पञ्चसूक्ष्मभूत+पञ्च ज्ञानेन्द्रियाँ पञ्च कर्मेन्द्रियोंवाला-बीस तत्त्वों का पुतला मैं (स्वाहा) = इन मन्त्रों के प्रति अपने को अर्पित करता हूँ।
भावार्थ
मैं षोडशी पुरुष की सोलह कलाओं को, सूक्ष्मशरीर के १७ तत्त्वों को तथा १८ व्यक्तियों से साध्य यज्ञों का ज्ञान प्राप्त करता हूँ। मैं अपने १९ मुखों से इन ऋचाओं का अध्ययन करता हूँ। बीस तत्त्वोंवाला मैं इन मन्त्रों के प्रति अपने को अर्पित करता हूँ।
भाषार्थ
१६ ऋचाओं वाले सूक्तों के लिए प्रशंसायुक्त वाणी हो।
इंग्लिश (4)
Subject
x
Meaning
For sixteen-verse hymns (on the adorable sixteen-kala Purusha), Svaha.
Translation
Svaha to the sixteen-versed ones.
Translation
Let us gain knowledge from the sets of sixteen verses and appreciate them.
Translation
Study well the suktas of sixteen mantras,
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१३−(षोडशर्चेभ्यः) म०१। प्रश्नोपनिषदि प्रश्ने ६ श्लोके ४ प्रतिपादितानां प्राणश्रद्धादिषोडशकलानां स्तुत्या विद्या येषु वेदेषु तेभ्यः ॥
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