अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 23/ मन्त्र 4
ऋषिः - अथर्वा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - दैवी त्रिष्टुप्
सूक्तम् - अथर्वाण सूक्त
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स॑प्त॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठसप्तऽऋचेभ्यः। स्वाहा ॥२३.४॥
स्वर रहित मन्त्र
सप्तर्चेभ्यः स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठसप्तऽऋचेभ्यः। स्वाहा ॥२३.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पदार्थ
(सप्तर्चेभ्यः) सात [दो कान, दो नथने, दो आँखें और एक मुख-अथर्व०१०।२।६ इनकी] स्तुतियोग्य विद्यावाले [वेदों] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥४॥
भावार्थ
मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥४॥
टिप्पणी
४−(सप्तर्चेभ्यः) म०१। कः सप्त खानि वि ततर्द शीर्षणि कर्णाविमौ नासिके चक्षणी मुखम्-अथर्व०१०।२।६। इत्येतेषां स्तुत्या विद्या येषु वेदेषु तेभ्यः ॥
विषय
चार पुरुषार्थ, पञ्चभूत, छह ऋतुएँ, सात ऋषि
पदार्थ
१. 'अथर्वा' से जिन मन्त्रों का अर्थ देखा जाता है वे मन्त्र 'आथर्वण' कहलाते हैं। 'अथर्वा' वे व्यक्ति हैं जोकि 'अथ अर्वाङ्'-विषयों में न भटक [न थर्व] अब अन्दर-आत्मनिरीक्षण करते हैं। (आथर्वणानाम्) = इन अथर्वाओं से देखे गये मन्त्रों में (चतुर्ऋचेभ्यः) = [ऋच् स्तुती] जिनमें 'धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष' इन चारों पुरुषार्थों का स्तवन व प्रतिपादन है, उन मन्त्रों के लिए (स्वाहा) = हम [सु आह] प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं। हम भी उन मन्त्रों का अध्ययन करते हुए 'धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष' इन चारों ही पुरुषार्थों को सिद्ध करते हैं। २. (पञ्चचेभ्यः) = पृथिवी, जल, तेज, वायु व आकाश' इन पाँचों भूतों का स्तवन व प्रतिपादन करनेवाले मन्त्रों के लिए हम (स्वाहा) = प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं। इनके अध्ययन से पाँचों भूतों का ज्ञान प्राप्त करके उनकी अनुकूलता के सम्पादन से हम पूर्ण स्वस्थ होने का प्रयत्न करते हैं। ३. (षड्चेभ्य:) = 'वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त व शिशिर' इन छह ऋओं का स्तवन करनेवाले मन्त्रों का हम स्वाहा शंसन करते हैं। इनका अध्ययन करते हुए सब ऋतुओं के गुण-धर्मों को समझकर अपनी ऋतुचर्या को ठीक बनाते हैं। २. (सप्तर्चेभ्यः स्वाहा) = 'कर्णाविमौ नासिके चक्षणी मुखम्' इन सात ऋषियों का स्तवन व प्रतिपादन करनेवाले मन्त्रों के लिए हम प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं। इनके अध्ययन से कान आदि ऋषियों के महत्त्व को समझते हैं और उनको ज्ञान-प्राप्ति में लगाकर सचमुच ही उन्हें ऋषि बनाये रखने का प्रयत्न करते हैं।
भावार्थ
हम आथर्वण मन्त्रों में 'चतुरीच' मन्त्रों से 'धर्मार्थ, काम व मोक्ष' इन चार पुरुषार्थों का ज्ञान प्राप्त करें। 'पञ्चचों' से पञ्चभूतों का, 'षड़चों' से छह ऋतुओं का तथा 'सप्तौं' सें कान आदि सात ऋषियों का ज्ञान प्राप्त करें।
भाषार्थ
७ ऋचाओं वाले सूक्तों के लिये प्रशंसायुक्त वाणी हो।
इंग्लिश (4)
Translation
Svaha to the seven-versed ones.
Translation
Let us gain knowledge from the sets of seven verses and appreciate them.
Translation
Completely learn the suktas with seven Richas.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४−(सप्तर्चेभ्यः) म०१। कः सप्त खानि वि ततर्द शीर्षणि कर्णाविमौ नासिके चक्षणी मुखम्-अथर्व०१०।२।६। इत्येतेषां स्तुत्या विद्या येषु वेदेषु तेभ्यः ॥
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