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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 23 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 23/ मन्त्र 26
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - दैवी जगती सूक्तम् - अथर्वाण सूक्त
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    प्रा॑जाप॒त्याभ्यां॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्रा॒जा॒ऽप॒त्याभ्या॑म्। स्वाहा॑ ॥२३.२६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्राजापत्याभ्यां स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्राजाऽपत्याभ्याम्। स्वाहा ॥२३.२६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 23; मन्त्र » 26
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    हिन्दी (3)

    विषय

    ब्रह्मविद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (प्राजापत्याभ्याम्) प्रजापति [परमात्मा] को पूजनीय माननेवाली दोनों [कार्य और कारण] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥२६॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥२६॥

    टिप्पणी

    २६−(प्राजापत्याभ्याम्) प्रजापतिः परमात्मा देवता पूजनीयो ययोस्ताभ्यां कार्यकारणाभ्याम् ॥

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    विषय

    सूर्य-वात्य-प्राजापत्य

    पदार्थ

    १. [रोहयति इति] (रोहितेभ्य:) = हमारा उत्थान करनेवाले इन वेदमन्त्रों के लिए (स्वाहा) = मैं अपना अर्पण करता हूँ। २. (सूर्याभ्यां स्वाहा) = वेद से प्रेरणा प्राप्त करके सूर्य की भाँति निरन्तर गतिशील [सरति] पति-पत्नी के लिए हम शुभ शब्द कहते हैं। उनका प्रशंसन करते हैं। हम भी उनसे अपना जीवन उन-जैसा बनाने की प्रेरणा लेते हैं। ३. (वात्याभ्याम्) = व्रतमय जीवनवाले पति-पत्नी के लिए हम (स्वाहा) = प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं। हम भी उनकी भौति व्रती जीवनवाले होते हैं। ४. (प्राजापत्याभ्याम्) = सन्तानों का उत्तम रक्षण करनेवाले इन पति-पत्नी के लिए (स्वाहा) = हम प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं और उनसे स्वयं भी सन्तानों के सम्यक् रक्षण की प्रेरणा लेते हैं।

    भावार्थ

    उन्नति के साधनभूत वेद-मन्त्रों का अध्ययन करते हुए हम निरन्तर गतिशील [सूर्य] व्रतमय जीवनवाले [ब्रात्य] व सन्तानों का सम्यक् रक्षण करनेवाले [प्राजापत्य] बनते हैं।

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    भाषार्थ

    प्रजापति-सम्बन्धी दो अनुवाकों के लिये प्रशंसायुक्त वाणी हो।

    टिप्पणी

    [अथर्ववेद १६वें काण्ड के दो अनुवाक “प्राजापत्याभ्याम्” द्वारा अभिप्रेत हैं। सर्वानुक्रमणी में इन दो अनुवाकों को “प्राजापत्य” कहा है। १६वें काण्ड के प्रथम पर्याय का देवता प्रजापति है। अथवा “प्राजापत्याभ्याम्” द्वारा दो सूक्त अभिप्रेत हैं, जिनमें कि “प्राजापत्य” का वर्णन है। यथा—“कृणोमि ते प्राजापत्यमा योनिं गर्भ एतु ते” (अथर्व० ३.२३.५)। इसमें प्राजापत्य का अर्थ है—“प्रजापति बनने का कर्म,” अर्थात् गर्भाधान। तथा—“प्राजापत्यो वा एतस्य यज्ञो विततो य उपहरति” (अथर्व० ९.६(१).११)। प्रजापतेर्वा एष विक्रमाननु विक्रमते य उपहरति” (अथर्व० ९.६(२).१२)। इन मन्त्रों में “प्राजापत्य यज्ञ” का कथन है, और कहा है कि जो गृहस्थी अन्नादि द्वारा अतिथि की सेवा करता है, वह मानो प्रजापति परमेश्वर के रचाए यज्ञ का विस्तार करता है, और वह प्रजापति का पदानुगामी होता है।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    x

    Meaning

    For two Prajapatya Anuvakas, Svaha.

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    Translation

    Svaha to the two about Prajápati (the Lord of the creatures).

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    Translation

    Let us gain knowledge of Prajapatya, the heaven and earth and appreciate them.

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    Translation

    Learn well the two anuvakas of Prajapati (i.e., 16 Kanda).

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २६−(प्राजापत्याभ्याम्) प्रजापतिः परमात्मा देवता पूजनीयो ययोस्ताभ्यां कार्यकारणाभ्याम् ॥

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