अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 23/ मन्त्र 30
ऋषिः - अथर्वा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - चतुष्पदा त्रिष्टुप्
सूक्तम् - अथर्वाण सूक्त
1
ब्रह्म॑ज्येष्ठा॒ संभृ॑ता वी॒र्याणि॒ ब्रह्माग्रे॒ ज्येष्ठं॒ दिव॒मा त॑तान। भू॒तानां॑ ब्र॒ह्मा प्र॑थ॒मोत ज॑ज्ञे॒ तेना॑र्हति॒ ब्रह्म॑णा॒ स्पर्धि॑तुं॒ कः ॥
स्वर सहित पद पाठब्रह्म॑ऽज्येष्ठा। सम्ऽभृ॑ता। वी॒र्या᳡णि। ब्रह्म॑। अग्रे॑। ज्येष्ठ॑म्। दिव॑म्। आ। त॒ता॒न॒। भू॒ताना॑म्। ब्र॒ह्मा। प्र॒थ॒मः। उ॒त। ज॒ज्ञे॒। तेन॑। अ॒र्ह॒ति॒। ब्रह्म॒णा। स्पर्धि॑तुम्। कः ॥२३.३०॥
स्वर रहित मन्त्र
ब्रह्मज्येष्ठा संभृता वीर्याणि ब्रह्माग्रे ज्येष्ठं दिवमा ततान। भूतानां ब्रह्मा प्रथमोत जज्ञे तेनार्हति ब्रह्मणा स्पर्धितुं कः ॥
स्वर रहित पद पाठब्रह्मऽज्येष्ठा। सम्ऽभृता। वीर्याणि। ब्रह्म। अग्रे। ज्येष्ठम्। दिवम्। आ। ततान। भूतानाम्। ब्रह्मा। प्रथमः। उत। जज्ञे। तेन। अर्हति। ब्रह्मणा। स्पर्धितुम्। कः ॥२३.३०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पदार्थ
(संभृता) यथावत् भरे हुए (वीर्याणि) वीर कर्म (ब्रह्मज्येष्ठा) ब्रह्म [परमात्मा] को ज्येष्ठ [महाप्रधान रखनेवाले] हैं, (ज्येष्ठम्) ज्येष्ठ [महाप्रधान] (ब्रह्म) ब्रह्म [परमात्मा] ने (अग्रे) पहिले (दिवम्) ज्ञान को (आ) सब ओर (ततान) फैलाया है। (उत) और (ब्रह्मा) वह ब्रह्मा [सबसे बड़ा सर्वजनक परमात्मा] (भूतानाम्) प्राणियों में (प्रथमः) पहिला (जज्ञे) प्रकट हुआ है, (तेन) इसलिये (ब्रह्मणा) ब्रह्मा [महान् परमात्मा] के साथ (कः) कौन (स्पर्धितुम्) झगड़ने को (अर्हति) समर्थ है ? ॥३०॥
भावार्थ
संसार में सब प्रकार के पराक्रम वा बल सर्वशक्तिमान् जगदीश्वर के सामर्थ्य से हैं, उस महावृद्ध सर्वजनक से तुल्य वा अधिक कोई भी नहीं है। सब मनुष्य उसकी उपासना करके सुख प्राप्त करें ॥३०॥
टिप्पणी
मन्त्र २९, ३० आ चुके हैं-अ०१९।२२।२०, २१॥३०-अयं मन्त्रो व्याख्यातः। अ०१९।२२।२१॥
भाषार्थ
व्याख्या देखो (अथर्व० १९.२२.२१)।
टिप्पणी
[विशेष वक्तव्य—१९.२२.१-२१ में कई रोगों तथा तत्सम्बन्धी कई सूक्तों तथा १९.२३.१-३० में ऋक्-संख्या की उत्तरोत्तर वृद्धि के क्रम से वर्त्तमान कई सूक्तों का निर्देश नहीं। ८ से १२ काण्डों में २१ ऋचाओं वाले सूक्त से लेकर ७३ ऋचावाले सूक्त हैं, जिनका निर्देश १९.२३.१-३० में अनुपलब्ध है। प्रतीयमान इन क्षतियों का समाधान १९.२२.१-२१ में पठित “ब्रह्मणे स्वाहा” द्वारा जानना चाहिए। यही “ब्रह्मणे स्वाहा” मन्त्र १९.२३.१-३० में भी पठित है। “ब्रह्मणे” शब्द द्वारा ब्रह्म अर्थात् परमेश्वर का भी ग्रहण होता है, और ब्रह्मवेद अर्थात् समग्र अथर्ववेद का भी। परमेश्वरार्थ में “स्वाहा” का अर्थ है—सुविधि द्वारा तथा पूर्णरूप में परमेश्वर के प्रति समर्पण। स्वाहा=सु+आ=हा (ओहाक् त्यागे)। इस प्रकार ब्रह्मवेद में, रहे सभी सूक्त समाविष्ट जानने चाहिए। एकोनविंशतिः विंशतिः तथा महत्काण्डाय में भी सभी अनिर्दिष्ट सूक्त समाविष्ट हो जाते हैं।]
इंग्लिश (4)
Subject
x
Meaning
United and organised are all greats and grandeurs of matter, energy and mind of Prakrti, Jiva and Brahma, of which the first and highest is Brahma. Brahma first self-manifested and creatively evolved the light of heavenly awareness and divine will. Of the first evolved forms of being, Brahma was the first that manifested Itself and emerged as the creator. Who can claim to be the rival of Brahma? None.
Translation
All the valours collected are surpassed by the Divine supreme. In the beginning the Divine supreme spread out the sky. The Divine supreme existed before the beings were born. So, who can dare to compete with that Divine supreme.
Translation
Whatever are the subsisting powers are surpassed by Brahman. The All-surpassing Supreme Powers in the beginning of cereation spread out vedic speech (Divam). He as the Brahman, the Supreme Efficient cause is known first of all the Bhutas, the material substances combined with energy. who can prove to be paralleled of Brahmna ? In fact no one
Translation
Brahma, the Almighty is the topmost power amongst the powers that are borne here in this universe. In the very beginning of the creation. He, the mighty Lord spread the heavens far and wide. He revealed Himself to be the foremost among all the created things. Who else can compete with Him, the mighty one?
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
मन्त्र २९, ३० आ चुके हैं-अ०१९।२२।२०, २१॥३०-अयं मन्त्रो व्याख्यातः। अ०१९।२२।२१॥
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