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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 23 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 23/ मन्त्र 27
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - दैवी त्रिष्टुप् सूक्तम् - अथर्वाण सूक्त
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    वि॑षास॒ह्यै स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒ऽस॒स॒ह्यै। स्वाहा॑ ॥२३.२७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विषासह्यै स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विऽससह्यै। स्वाहा ॥२३.२७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 23; मन्त्र » 27
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    हिन्दी (3)

    विषय

    ब्रह्मविद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (विषासह्यै) सदा विजयिनी [वेदविद्या] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥२७॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥२७॥

    टिप्पणी

    २७−(विषासह्यै) सहिवहिचलिपतिभ्यो यङन्तेभ्यः किकिनौ वक्तव्यौ। वा० पा०३।२।१७१। षह अभिभवे-कि। अलोपयलोपौ। विविधं पुनः पुनः सोढ्री तस्यै सदाविजयिन्यै वेदविद्यायै ॥

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    विषय

    विषासहि-मंगलिक-ब्रह्मा

    पदार्थ

    १. (विषासहौ) = वेदज्ञान द्वारा सब शत्रुओं का पराभव करनेवाली इस गृहिणी के लिए हम (स्वाहा) = प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं। इससे सब गृहिणियों को 'विषासहि' बनने की प्रेरणा प्राप्त होती है। २. (मंगलिकेभ्यः स्वाहा) = वेदज्ञान द्वारा सदा यज्ञ आदि मंगल कार्यों को करनेवाले पुरुषों के लिए हम प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं। इससे सभी को इन मंगल कार्यों को करने की प्रवृत्ति प्राप्त होती है। ३. अन्ततः हम (ब्रह्मणे) = इन चारों वेदों का ज्ञान प्राप्त करनेवाले सर्वोत्तम सात्त्विक पुरुष के लिए शुभ शब्द कहते हैं और स्वयं ऐसा बनने का ही अपना लक्ष्य बनाते हैं।

    भावार्थ

    वेदज्ञान से हम शत्रुओं का मर्षण करनेवाले, मंगल कार्यों को करनेवाले व सर्वोत्तम सात्त्विक स्थिति की ओर बढ़नेवाले बनते हैं।

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    भाषार्थ

    “विषासहि” पद द्वारा आरब्ध काण्ड के लिये प्रशंसायुक्त वाणी हो।

    टिप्पणी

    [अथर्ववेद काण्ड १७ का आरम्भ “विषासहिं सहमानम्” द्वारा होता है। इस काण्ड में इन्द्र अर्थात् राजा तथा परमेश्वर का वर्णन है, जिन्हें कि—“पराभव करने वाला, तथा सहनशील कहा है।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    x

    Meaning

    For "Vishasahi " seventeenth Kanda, Svaha For ‘Vishasahi’ seventeenth Kanda, Svaha. Wl^l' II II

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    Translation

    Svahä to the (one beginning with the word) Visasahi.

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    Translation

    Let us gain knowledge of the victorious power and appreciate it.

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    Translation

    Study the 17th Kanda, with one Richa only (i.e., Vishasahi sukta).

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २७−(विषासह्यै) सहिवहिचलिपतिभ्यो यङन्तेभ्यः किकिनौ वक्तव्यौ। वा० पा०३।२।१७१। षह अभिभवे-कि। अलोपयलोपौ। विविधं पुनः पुनः सोढ्री तस्यै सदाविजयिन्यै वेदविद्यायै ॥

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