अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 10
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - शान्तिः, मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शान्ति सूक्त
0
शं नो॒ ग्रहा॑श्चान्द्रम॒साः शमा॑दि॒त्यश्च॑ राहु॒णा। शं नो॑ मृ॒त्युर्धू॒मके॑तुः॒ शं रु॒द्रास्ति॒ग्मते॑जसः ॥
स्वर सहित पद पाठशम्। नः॒। ग्रहाः॑। चा॒न्द्र॒म॒साः। शम्। आ॒दि॒त्यः। च॒। रा॒हु॒णा। शम्। नः॒। मृ॒त्युः। धू॒मऽके॑तुः। शम्। रु॒द्राः। ति॒ग्मऽते॑जसः ॥९.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
शं नो ग्रहाश्चान्द्रमसाः शमादित्यश्च राहुणा। शं नो मृत्युर्धूमकेतुः शं रुद्रास्तिग्मतेजसः ॥
स्वर रहित पद पाठशम्। नः। ग्रहाः। चान्द्रमसाः। शम्। आदित्यः। च। राहुणा। शम्। नः। मृत्युः। धूमऽकेतुः। शम्। रुद्राः। तिग्मऽतेजसः ॥९.१०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
मनुष्यों को कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(चान्द्रमसाः) चन्द्रमा के (ग्रहाः) ग्रह [कृत्तिका आदि नक्षत्र] (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक [होवें], (च) और (आदित्यः) सूर्य (राहुणा) राहु [ग्रह विशेष] के साथ (शम्) शान्तिदायक [होवे]। (मृत्युः) मृत्युरूप (धूमकेतुः) धूमकेतु [पुच्छल तारा] (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक [हो], (तिग्मतेजसः) तीक्ष्ण तेजवाले (रुद्राः) गतिमान् [बृहस्पति आदि ग्रह] (शम्) शान्तिदायक [होवें] ॥१०॥
भावार्थ
राहु ग्रह विशेष, प्रकाश को रोककर सूर्य और चन्द्र के ग्रहण का कारण होता है, धूमकेतु अपनी टेढ़ी चाल से अनेक ग्रहों और नक्षत्रों को टकराकर नाश करता है, मनुष्य ज्योतिष शास्त्र द्वारा दूरदर्शी होकर विघ्नों से बचने का उपाय करें ॥१०॥
टिप्पणी
१०−(शम्) शान्तिप्रदाः (नः) अस्मभ्यम् (ग्रहाः) कृत्तिकादिनक्षत्रगणाः (चान्द्रमसाः) चन्द्रलोकसम्बन्धिनः (शम्) (आदित्यः) आदीप्यमानः सूर्यः (च) (राहुणा) दृसनिजनिचरिचटिरहिभ्यो ञुण्। उ० १।३। रह त्यागे−ञुण्। ज्योतिश्चक्रस्थेन सूर्यकिरणसम्पर्काभावेन जायमानपृथिवीच्छायाकारकेण ग्रहभेदेन (शम्) (नः) (मृत्युः) मृत्युरूपः (धूमकेतुः) उत्पारूपोऽशुभसूचकस्तारापुञ्जरूपोऽशुभसूचकस्तारापुञ्जभेदः (शम्) (रुद्राः) रु गतौ-क्विप्, तुक्। रो मत्वर्थीयः। गतिमन्तो ग्रहाः (तिग्मतेजसः) तीक्ष्णतापाः ॥
विषय
चान्द्रमस ग्रह शान्तिकर हों
पदार्थ
१. (चान्द्रमसा:) = चन्द्रमा से सम्बद्ध (ग्रहा:) = सब ग्रह (नः शम्) = हमारे लिए शान्त हो (च) = और (राहुणा) = प्रकाश को आवृत करनेवाले [विच्छिन्न करनेवाले] 'राहु' के साथ (आदित्य:) = सूर्य (शम्) = हमारे लिए शान्तिकर हो। २. (मृत्यु:) = लोगों की मृत्यु का कारण बननेवाला (धूमकेतु:) = धूमकेतु ग्रह (नः शम्) = हमारे लिए शान्तिकर हो तथा (तिग्मतेजसः) = तीन तेज-[ताप व प्रकाश]-वाले (रुद्रा:) = 'मृग-व्याध' आदि नक्षत्र (शम्) = हमारे लिए शान्तिकर हों।
भावार्थ
सब चान्द्रमस ग्रहों की, राहु के साथ सूर्य की, धूमकेतु तथा मृग-व्याध आदि नक्षत्रों की हमारे लिए अनुकूलता हो। [मृगव्याधश्च सर्पश्च निर्गतिश्च महायशाः । अजैकपादहिर्बुध्न: पिनाकी च परन्तप । दहनोऽथेश्वरश्चैव कपली च महाद्युतिः । स्थणुर्भगश्च भगवान् रुद्रा एकादश स्मृताः]॥
भाषार्थ
(चान्द्रमसाः) चन्द्रमा के (ग्रहाः) ग्रहण (Eclipses, आप्टे) (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक हों। (च) और (राहुणा) राहु के साथ (आदित्यः) सूर्य (शम्) शान्तिदायक हो। (मृत्युः) मृत्युरूप (धूमकेतुः) पुच्छल तारा (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक हो। (तिग्मतेजसः) प्रखरतेज वाली (रुद्राः) वायवीय तरङ्गें (शम्) शान्तिदायक हों।
टिप्पणी
[राहुणा= राहु द्वारा आदित्य को ग्रहण लगता है। इसके द्वारा आदित्य के ग्रहण को सूचित किया है। राहु= In astronomy Rahu is regarded, as one of the nine planets, or only as the asending node of the moon.(आप्टे)। तथा An eclipse or moment of occultation (आप्टे)। धूमकेतू= पुच्छल तारा (Comet)। पुच्छल तारे की गति बड़ी वक्र होती है। इसका एक घना शिरोबिन्दु होता है, जो कि चमकीली विरलवाष्प द्वारा घिरा रहता है। और इसकी एक चमकीली पूंछ होती है, जो कभी शिरोबिन्दु के आगे की ओर होती है, और कभी पीछे की ओर होती है। इसकी गति बहुत वक्र होती है, इसलिए सदा सम्भावना रहती है कि किसी द्युलोक के पिण्ड के साथ टकरा कर यह नष्ट न हो जाय, और उस पिण्ड को भी नुक्सान न पहुंचा दे। इसलिये इसे “मृत्यु” कहा गया है। रुद्राः=ये अन्तरिक्षस्थ प्राण हैं। इनका वर्णन “रुद्रास इन्द्रवन्तः” (ऋ० ५.५७.१) इन शब्दों द्वारा भी हुआ है। इन्द्र का अर्थ है—विद्युत्। इसलिए विद्युत् से आविष्ट वायु-तरङ्गों को “रुद्राः तिग्मतेजसः” कहा है। तिग्मतेजस्=विद्युत्। ये आधिदैविक रुद्र हैं। इन्हीं के आध्यात्मिक रूप शरीरस्थ ११ प्राण हैं, जिन्हें कि “एकादश रुद्राः” कहा जाता है।]
इंग्लिश (4)
Subject
Shanti
Meaning
Let lunar eclipses and solar eclipses in all phases be at peace, free from evil shadow. Let the deadly meteor and the falling star be peaceable for us, and let the wind storms with terrible shears be at peace for us.
Translation
Gracious to us be the eclipser of the moon; and gracious be the sun eclippsed by Rahu, gracious to us be the fatal comet; gracious be the terrible punisher with fierce valour.
Translation
May the planets concerned with the moon and the sun. With Rahu, the shadow of moon between sun and, earth be free from agitation for us. May the death and meteor be free from disturbances for us and may Rudras, the fires having piercing powers be peaceful for us.
Translation
May the lunar eclipses be peaceful to us. May the solar eclipse caused by ‘Rahu’ be gracious to us. May the comet, bringing in death and destruction (in its trail) be harmless for us. May Rudras with sharp, penetrating brilliance be comfortable to us.
Footnote
Rahu and Ketu are not demons, as interpreted by Griffith and Sayana. It is due to the ignorance of Astronomy. Rahrris the point, through which the moon passes and intercepts rays of light coming from the sun and prevents them from coming to the earth, therefore, causing solar eclipse. Similarly Ketu is the point through which the earth passes and cuts, off the Sun-rays from falling on the moon and thus causing the lunar eclipse. Rudras: eleven kinds of gases, with sharp and penetrating powers of consuming brilliance. There are active, when it is raining, thundering and lightening. Their prototypes are in the bodies of creatures, performing various functions to maintain them.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१०−(शम्) शान्तिप्रदाः (नः) अस्मभ्यम् (ग्रहाः) कृत्तिकादिनक्षत्रगणाः (चान्द्रमसाः) चन्द्रलोकसम्बन्धिनः (शम्) (आदित्यः) आदीप्यमानः सूर्यः (च) (राहुणा) दृसनिजनिचरिचटिरहिभ्यो ञुण्। उ० १।३। रह त्यागे−ञुण्। ज्योतिश्चक्रस्थेन सूर्यकिरणसम्पर्काभावेन जायमानपृथिवीच्छायाकारकेण ग्रहभेदेन (शम्) (नः) (मृत्युः) मृत्युरूपः (धूमकेतुः) उत्पारूपोऽशुभसूचकस्तारापुञ्जरूपोऽशुभसूचकस्तारापुञ्जभेदः (शम्) (रुद्राः) रु गतौ-क्विप्, तुक्। रो मत्वर्थीयः। गतिमन्तो ग्रहाः (तिग्मतेजसः) तीक्ष्णतापाः ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal