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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 2
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - शान्तिः, मन्त्रोक्ताः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शान्ति सूक्त
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    शा॒न्तानि॑ पूर्वरू॒पाणि॑ शा॒न्तं नो॑ अस्तु कृताकृ॒तम्। शा॒न्तं भू॒तं च॒ भव्यं॑ च॒ सर्व॑मे॒व शम॑स्तु नः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शा॒न्तानि॑। पू॒र्व॒ऽरू॒पाणि॑। शा॒न्तम्। नः॒। अ॒स्तु॒। कृ॒त॒ऽअ॒कृ॒तम्। शा॒न्तम्। भू॒तम्। च॒। भव्य॑म्। च॒। सर्व॑म्। ए॒व। शम्। अ॒स्तु॒। नः॒ ॥९.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शान्तानि पूर्वरूपाणि शान्तं नो अस्तु कृताकृतम्। शान्तं भूतं च भव्यं च सर्वमेव शमस्तु नः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शान्तानि। पूर्वऽरूपाणि। शान्तम्। नः। अस्तु। कृतऽअकृतम्। शान्तम्। भूतम्। च। भव्यम्। च। सर्वम्। एव। शम्। अस्तु। नः ॥९.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 9; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्यों को कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (पूर्वरूपाणि) पूर्व रूप [आरम्भ के चिह्न] (शान्तानि) शान्तियुक्त, (कृताकृतम्) किया हुआ और न किया हुआ [मन में विचारा हुआ कर्म] (नः) हमारे लिये (शान्तम्) शान्तियुक्त (अस्तु) होवे। (भूतम्) बीता हुआ (च) और (भव्यम्) होनेवाला (शान्तम्) शान्तियुक्त (च) और (सर्वम्) सब (एव) ही (नः) हमारे लिये (शम्) शान्तियुक्त (अस्तु) होवे ॥२॥

    भावार्थ

    यह कार्य कैसे हुआ वा कैसे होगा, हमने किया है वा करना विचारा है, उस का फल क्या होगा, पूर्वजों के कर्म का क्या फल हुआ, आगे क्या होगा, ऐसा सोचकर मनुष्य उचित कर्तव्य करता हुआ आनन्द प्राप्त करे ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(शान्तानि) शान्तियुक्तानि। सुखकराणि (पूर्वरूपाणि) प्रथमलक्षणानि। आरम्भचिह्नानि (नः) अस्मभ्यम् (अस्तु) (कृताकृतम्) कृतं निष्पादितम् अकृतमनिष्पादितं मनसि निर्धारितं कर्म (शान्तम्) (भूतम्) अतीतम् (च) (भव्यम्) भविष्यत्। अनागतम् (च) (सर्वम्) (एव) निश्चयेन (शम्) शान्तिकरम् (अस्तु) (नः) अस्मभ्यम् ॥

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    विषय

    'भूत व भव्य' की अनुकूलता

    पदार्थ

    १. (पूर्वरूपाणि) = पहले-पहले प्रादुर्भूत हुए रोगों के पूर्वरूप हमारे लिए (शान्तानि) = शान्त हों-कष्टजनक न हों। रोग प्रारम्भ में ही समाप्त हो जाए, वह बढ़कर हमारे कष्ट का कारण न बने । (कृताकृतम्) = [कृतं च अकृतं च] कुछ किया गया और कुछ न किया गया, अर्थात् अधूरा काम (न:) = हमारे लिए (शान्तम् अस्तु) = शान्त हो जाए, अर्थात् हम कार्यों को अधूरेपन से न करें। २. इसप्रकार (भूतं च भव्यम् च) = विगत काल व आनेवाला काल-दोनों ही हमारे लिए (शान्तम्) = शान्ति देनेवाले हों। वस्तुतः (सर्वम् एव) = सब-कुछ ही (नः शम् अस्तु) = हमारे लिए शान्तिकर हो।

    भावार्थ

    हम रोगों को प्रारम्भ में ही शान्त करनेवाले बनें। सब-कुछ-सारा वातावरण और पदार्थ हमें शान्ति देनेवाले हों।

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    भाषार्थ

    (नः) हमारे (पूर्वरूपाणि) कर्मों के करने के पूर्वरूप अर्थात् कर्मों के करने के विचार तथा संकल्प (शान्तानि) शान्तरूप हों। अर्थात् हम शान्त-स्वभाव होकर कर्मों के करने का विचार और संकल्प करें। (कृताकृतम्) किये शुभ कर्म और न किये अशुभ कर्म (शान्तम् अस्तु) हमें शान्ति प्रदान करें। (भूतं च) भूतकाल में किये गये कर्मों के संस्कार (भव्यं च) और भविष्यत् काल में किये जानेवाले कर्मों के संस्कार (शान्तम्) शान्तिदायक हों। (सवर्म् एव) सब ही पदार्थ (नः) हमें (शम् अस्तु) शान्तिप्रद हों।

    टिप्पणी

    [कृताकृतम्=समहारे नपुंसकम्, एकवचनं च।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Shanti

    Meaning

    May our former ways of life and forms of action bring us peace. May what we have done and what we have not done be for our peace. May our past and our future be for our peace. And may all be peace, full of peace, for our peace and our well-being.

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    Translation

    May the indications of the things approaching be peace-giving; may our commissions and ommissions be peace-giving to us. Peace-giving the past and future; may everything be peace-giving to us.

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    Translation

    May be free from disturbance the first symptoms and may be free from all agitations whatever has been and whatever is to be done by us. May be the Past free from agitation and also the future and thus everything be peaceful for us.

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    Translation

    May the fore-casting signs of the coming events be peaceful and so may be our acts of omission and commission—may the past and the future bring peace and all may be blissful for us.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(शान्तानि) शान्तियुक्तानि। सुखकराणि (पूर्वरूपाणि) प्रथमलक्षणानि। आरम्भचिह्नानि (नः) अस्मभ्यम् (अस्तु) (कृताकृतम्) कृतं निष्पादितम् अकृतमनिष्पादितं मनसि निर्धारितं कर्म (शान्तम्) (भूतम्) अतीतम् (च) (भव्यम्) भविष्यत्। अनागतम् (च) (सर्वम्) (एव) निश्चयेन (शम्) शान्तिकरम् (अस्तु) (नः) अस्मभ्यम् ॥

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