Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 9 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 14
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - शान्तिः, मन्त्रोक्ताः छन्दः - चतुष्पदा सङ्कृतिः सूक्तम् - शान्ति सूक्त
    1

    पृ॑थि॒वी शान्ति॑र॒न्तरि॑क्षं॒ शान्ति॒र्द्यौः शान्ति॒रापः॒ शान्ति॒रोष॑धयः॒ शान्ति॒र्वन॒स्पत॑यः॒ शान्ति॒र्विश्वे॑ मे दे॒वाः शान्तिः॒ सर्वे॑ मे देवाः॒ शान्तिः॒ शान्तिः॒ शान्तिः॒ शान्ति॑भिः। ताभिः॒ शान्ति॑भिः॒ सर्व॒ शान्ति॑भिः॒ शम॑यामो॒ऽहं यदि॒ह घो॒रं यदि॒ह क्रू॒रं यदि॒ह पा॒पं तच्छा॒न्तं तच्छि॒वं सर्व॑मे॒व शम॑स्तु नः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पृ॒थि॒वी। शान्तिः॑। अ॒न्तरि॑क्षम्। शान्तिः॑। द्यौः। शान्तिः॑। आपः॑। शान्तिः॑। ओष॑धयः। शान्तिः॑। वन॒स्पत॑यः। शान्तिः॑। विश्वे॑। मे॒। दे॒वाः। शान्तिः॑। सर्वे॑। मे॒। दे॒वाः। शान्तिः॑। शान्तिः॑। शान्तिः॑। शान्ति॑ऽभिः। ताभिः॑। शान्ति॑ऽभिः। सर्व॑। शान्ति॑ऽभिः। श॑म्। अ॒या॒मः॒। अ॒हम्। यत्। इ॒ह। घो॒रम्। यत्। इ॒ह। क्रू॒रम्। यत्। इ॒ह। पा॒पम्। तत्। शा॒न्तम्। तत्। शि॒वम्। सर्व॑म्। ए॒व। शम्। अ॒स्तु॒। नः॒ ॥९.१४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पृथिवी शान्तिरन्तरिक्षं शान्तिर्द्यौः शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिर्वनस्पतयः शान्तिर्विश्वे मे देवाः शान्तिः सर्वे मे देवाः शान्तिः शान्तिः शान्तिः शान्तिभिः। ताभिः शान्तिभिः सर्व शान्तिभिः शमयामोऽहं यदिह घोरं यदिह क्रूरं यदिह पापं तच्छान्तं तच्छिवं सर्वमेव शमस्तु नः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पृथिवी। शान्तिः। अन्तरिक्षम्। शान्तिः। द्यौः। शान्तिः। आपः। शान्तिः। ओषधयः। शान्तिः। वनस्पतयः। शान्तिः। विश्वे। मे। देवाः। शान्तिः। सर्वे। मे। देवाः। शान्तिः। शान्तिः। शान्तिः। शान्तिऽभिः। ताभिः। शान्तिऽभिः। सर्व। शान्तिऽभिः। शम्। अयामः। अहम्। यत्। इह। घोरम्। यत्। इह। क्रूरम्। यत्। इह। पापम्। तत्। शान्तम्। तत्। शिवम्। सर्वम्। एव। शम्। अस्तु। नः ॥९.१४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 9; मन्त्र » 14
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्यों को कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (पृथिवी) भूमि (शान्तिः) शान्तिदायक [हो], (अन्तरिक्षम्) मध्यलोक [वायुमण्डल, मेघमण्डल, तारागण आदि] (शान्तिः) शान्तिदायक हो, (द्यौः) प्रकाशमान [सूर्य आदि] (शान्तिः) शान्तिदायक हो, (आपः) जल (शान्तिः) शान्तिदायक हो, (ओषधयः) ओषधें [अन्न सोमलता आदि] (शान्तिः) शान्तिदायक हों, (वनस्पतयः) वनस्पतियाँ [वट आदि वृक्ष] (शान्तिः) शान्तिदायक हों, (विश्वे) सब (देवाः) विद्वान् लोग (मे) मेरे लिये (शान्तिः) शान्तिदायक हों, (सर्वे) सब (देवाः) उत्तम पदार्थ (मे) मेरे लिये (शान्तिः) शान्तिदायक हों, (शान्तिभिः) शान्तियों [सुखदायक क्रियाओं] के साथ (शान्तिः) शान्ति, (शान्तिः) शान्ति [धैर्य आदि] हो। (ताभिः) उन (शान्तिभिः) शान्तियों [आनन्द क्रियाओं] से, (सर्व=सर्वाभिः) सब (शान्तिभिः) शान्तियों [धैर्य क्रियाओं] से (अहम्=वयम्) हम (शम्) शान्ति (अयामः) पावें, (यत्) जो कुछ (इह) यहाँ पर (घोरम्) घोर [भयङ्कर] हो, (यत्) जो कुछ (इह) यहाँ पर (क्रूरम्) क्रूर [निर्दय] हो, और (यत्) जो कुछ (इह) यहाँ पर (पापम्) पाप [अनिष्ट] हो, (तत्) वह (शान्तम्) शान्तियुक्त हो, (तत्) वह (शिवम्) कल्याणकारक हो, (सर्वम्) सब (एव) ही (नः) हमारे लिये (शम्) शान्तिदायक (अस्तु) हो ॥१४॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को प्रयत्न करना चाहिये कि पृथिवी आदि पदार्थ सदा सुखदायक होवें ॥१४॥ इति प्रथमोऽनुवाकः ॥

    टिप्पणी

    यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद में है−३६।१७ ॥१४−(पृथिवी) भूमिः (शान्तिः) शान्तिकरी (अन्तरिक्षम्) मध्यलोकः (शान्तिः) (द्यौः) प्रकाशमानः सूर्यादिः (शान्तिः) (आपः) जलानि (शान्तिः) (ओषधयः) अन्नसोमलताद्याः (वनस्पतयः) वटादिवृक्षाः (शान्तिः) (विश्वे) सर्वे (मे) मह्यम् (देवाः) विद्वांसः (शान्तिः) (सर्वे) (मे) (देवाः) दिव्यपदार्थाः (शान्तिः) (शान्तिः) (शान्तिभिः) सुखदायिकाभिः क्रियाभिः (सर्व) विभक्तेर्लुक्। सर्वाभिः (शान्तिभिः) (शम्) शान्तिम् (अयामः) अय गतौ। प्राप्नुमः (अहम्) सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। इति जसः सुः। वयम् (यत्) यत् किञ्चित् (इह) संसारे (घोरम्) भयङ्करम् (यत्) (इह) (क्रूरम्) निर्दयम् (यत्) (इह) (पापम्) अनिष्टम् (तत्) पूर्वोक्तम् (शान्तम्) (तत्) (शिवम्) कल्याणकरम् (सर्वम्) (एव) निश्चयेन (शम्) शान्तिप्रदम् (अस्तु) (नः) अस्मभ्यम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    'मोह, घोर, क्रूर व पाप' का दूरीकरण

    पदार्थ

    १. (पृथिवी शान्ति:) = यह पृथिवीलोक हमारे लिए शान्ति देनेवाला हो। (अन्तरिक्षं शान्ति:) = अन्तरिक्षलोक शान्ति देनेवाला हो। (द्यौः शान्तिः) = द्युलोक शान्ति देनेवाला हो। (आपः शान्ति:) = जल शान्तिकर हों। (ओषधयः शान्तिः) = ओषधियाँ शान्तिकर हों। (वनस्पतयः) = वनस्पतियाँ (शान्तिः) = शान्तिकर हों। (विश्वेदेवाः) = सब प्राकृतिक देव (मे शान्ति:) = मुझे नीरोगता के द्वारा शान्ति देनेवाले हों। (सर्वे देवा:) = सब विद्वान् (मे शान्ति:) = मुझे मानस स्वास्थ्य प्राप्त कराके शान्ति देनेवाले हों। (शान्तिभिः शान्तिः शान्तिः) = इन सब शान्तियों के द्वारा मुझे शारीर शान्ति व मानस शान्ति प्राप्त हो। २. (ताभिः शान्तिभि:) = उन शान्तियों के द्वारा (सर्वशान्तिभिः) = सब शान्तियों के द्वारा (मोहं शमया) = हमारे वैचित्य को शान्त कीजिए। हम (शम् अयामः) = शान्ति को प्राप्त होते हैं। २. हम स्वस्थचित्त बन पाएँ। (यत् इह पापम्) = जो भी यहाँ पाप है, (तत् शान्तम्) = वह शान्त हो, (तत् शिवम्) = वह शिव हो जाए। असत् के स्थान में सब-कुछ सत् हो जाए। इसप्रकार (सर्वम् एव) = सब-कुछ ही (न:) = हमारे लिए (शम् अस्तु) = शान्त हो जाए।

    भावार्थ

    तीनों लोकों, जलों, ओषधि, वनस्पतियों, सब प्राकृतिक शक्तियों व विद्वानों की अनुकूलता से हमें शान्ति प्राप्त हो। हमारे जीवनों में से मोह, घोर, क्रूर व पाप का निराकरण होकर शान्ति-ही-शान्ति प्राप्त हो।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (पृथिवी) पृथिवी (शान्तिः) शान्तिदायक हो, (अन्तरिक्षम्) अन्तरिक्ष (शान्तिः) शान्तिदायक हो, (द्यौः) द्युलोक (शान्तिः) शान्तिदायक हो, (आपः) जल (शान्तिः) शान्तिदायक हों, (ओषधयः) ओषधियां (शान्तिः) शान्तिदायक हों, (वनस्पतयः) वनस्पतियां (शान्तिः) शान्तिदायक हों, (विश्वे) सब (देवाः) देव (मे) मुझे (शान्तिः) शान्तिदायक हों। (सर्वे) सब (देवाः) देव (मे) मुझे (शान्तिः) शान्तिदायक हों। (शान्तिभिः) सबके द्वारा दी गई शान्तियों के कारण (शान्तिः) मेरी शान्ति बनी रहे, (शान्तिः) सदा शान्ति बनी रहे। (ताभिः) उन अनवच्छिन्न (शान्तिभिः) शान्तियों के साथ, (सर्वशान्तिभिः) और सार्वत्रिक शान्तियों के साथ (अहम्) मैं और हम सब (शम्) शान्ति को (अयामः) प्राप्त हों। (इह) इस भूमण्डल में (यद्) जो (घोरम्) घोरकर्म हैं, घातक कर्म हैं, (इह) इस भूमण्डल में (यत्) जो (क्रूरम्) क्रूरकर्म हैं, हिंस्र और दुःखदायी कर्म हैं, (इह) इस भूमण्डल में (यत्) जो (पापम्) पापकर्म हैं, (तत्) वे सब (शान्तम्) शान्त हो जायें (तत्) वे सब (शिवम्) सबको सुखदायी हो जायें। (नः) हम सबके लिए (सर्वम्) सब कुछ (एव) ही (शम्) शान्तिदायक (अस्तु) हो॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Shanti

    Meaning

    May earth be at peace, firmament be at peace, heaven be at peace, waters, oceans and spatial vapours be at peace, herbs be at peace, trees be at peace, all divinities of the world be at peace, for me. May all divinities of nature and humanity bring me peace, peace and peace, with all forms and shades of peace in every phase of life, society and the environment. With all those forms of peace, all those modes and methods and sources of peace, let us all attain peace, let me be at peace. Whatever is awful here, whatever is cruel here, whatever is sin and sinful here, let all that be at peace, be good and beneficial, let all and everything be at peace, peaceful, and peaceable for us here in the world for all. Mantra-wise Devata, Vasishtha Rshi

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    May the earth (grant) peace, the midspace peace, the sky peace, the waters peace, the herbs peace, forest-trees peace; all the enlightened one (grant) me peace; all the bounties of Nature (grant) me peace. May the peace be real peace with all sorts of peace. With those peaces, with complete peaces, we hereby appease what is dreadful here, what is cruel here. What is sinful here, that has been appeased, that has become blessed. May everything be peace-giving to us.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    May this earth be source of peace, may the mid-region be peaceful, may the heavenly region be source of peace, may peace prevail in waters, may the herbs, be peaceful, may the trees be source of happiness, may all the forces be peaceful for me and may all the wondrous and luminous objects be peaceful and pleasant for me. May the peace and prosperity itself be peaceful and constructive incorporated with peace and tranquility. May these peace and happiness and the means of peace and auspiciousness make me peaceful and tranquil. Whatever is terrified in this world whatever is cruel in this world, whatever is impious be made Shanty (mended or ended) and turned to be auspicious. May everything be auspicious for us.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Let the earth, the atmosphere, the heavens, the waters, the herbs, the plants and trees, all the radiant things be each a source of peace and comfort for me. May all the learned people bless me with peace, comfort and happiness, through all means of pacification. May I attain perfect state of calmness by all and sundry means of peace. Whatever there is in this world, terrific, whatever there is cruel in this world, whatsoever there is evil in this world; let all that be peace-giving, let all that be gracious, let all that be harmless for us.

    Footnote

    cf. Yajur, 36-17.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद में है−३६।१७ ॥१४−(पृथिवी) भूमिः (शान्तिः) शान्तिकरी (अन्तरिक्षम्) मध्यलोकः (शान्तिः) (द्यौः) प्रकाशमानः सूर्यादिः (शान्तिः) (आपः) जलानि (शान्तिः) (ओषधयः) अन्नसोमलताद्याः (वनस्पतयः) वटादिवृक्षाः (शान्तिः) (विश्वे) सर्वे (मे) मह्यम् (देवाः) विद्वांसः (शान्तिः) (सर्वे) (मे) (देवाः) दिव्यपदार्थाः (शान्तिः) (शान्तिः) (शान्तिभिः) सुखदायिकाभिः क्रियाभिः (सर्व) विभक्तेर्लुक्। सर्वाभिः (शान्तिभिः) (शम्) शान्तिम् (अयामः) अय गतौ। प्राप्नुमः (अहम्) सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। इति जसः सुः। वयम् (यत्) यत् किञ्चित् (इह) संसारे (घोरम्) भयङ्करम् (यत्) (इह) (क्रूरम्) निर्दयम् (यत्) (इह) (पापम्) अनिष्टम् (तत्) पूर्वोक्तम् (शान्तम्) (तत्) (शिवम्) कल्याणकरम् (सर्वम्) (एव) निश्चयेन (शम्) शान्तिप्रदम् (अस्तु) (नः) अस्मभ्यम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top