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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 12
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - शान्तिः, मन्त्रोक्ताः छन्दः - त्र्यवसाना सप्तपदाष्टिः सूक्तम् - शान्ति सूक्त
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    ब्रह्म॑ प्र॒जाप॑तिर्धा॒ता लो॒का वेदाः॑ सप्तऋ॒षयो॒ऽग्नयः॑। तैर्मे॑ कृ॒तं स्व॒स्त्यय॑न॒मिन्द्रो॑ मे॒ शर्म॑ यच्छतु ब्र॒ह्मा मे॒ शर्म॑ यच्छतु। विश्वे॑ मे दे॒वाः शर्म॑ यच्छन्तु॒ सर्वे॑ मे दे॒वाः शर्म॑ यच्छन्तु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ब्रह्म॑। प्र॒जाऽप॑तिः। धा॒ता। लो॒काः। वे॒दाः। स॒प्त॒ऽऋ॒षयः॑। अ॒ग्नयः॑। तैः। मे॒। कृ॒तम्। स्व॒स्त्यय॑नम्। इन्द्रः॑। मे॒। शर्म॑। य॒च्छ॒तु॒। ब्र॒ह्मा। मे॒। शर्म॑। य॒च्छ॒तु॒। विश्वे॑। मे॒। दे॒वाः। शर्म॑। य॒च्छ॒न्तु॒। सर्वे॑। मे॒। दे॒वाः। शर्म॑। य॒च्छ॒न्तु॒ ॥९.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ब्रह्म प्रजापतिर्धाता लोका वेदाः सप्तऋषयोऽग्नयः। तैर्मे कृतं स्वस्त्ययनमिन्द्रो मे शर्म यच्छतु ब्रह्मा मे शर्म यच्छतु। विश्वे मे देवाः शर्म यच्छन्तु सर्वे मे देवाः शर्म यच्छन्तु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ब्रह्म। प्रजाऽपतिः। धाता। लोकाः। वेदाः। सप्तऽऋषयः। अग्नयः। तैः। मे। कृतम्। स्वस्त्ययनम्। इन्द्रः। मे। शर्म। यच्छतु। ब्रह्मा। मे। शर्म। यच्छतु। विश्वे। मे। देवाः। शर्म। यच्छन्तु। सर्वे। मे। देवाः। शर्म। यच्छन्तु ॥९.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 9; मन्त्र » 12
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्यों को कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (ब्रह्म) यत्र, (प्रजापतिः) प्रजापालक [इन्द्रियादि का रक्षक] और (धाता) पोषक [जीवात्मा], (लोकाः) सब लोक [पृथिवी आदि] (वेदाः) ऋग्वेद आदि चारों वेद, (सप्तऋषयः) सात ऋषि [कान, आँख, नाक, जिह्वा, त्वचा पाँच ज्ञानेन्द्रिय, मन और बुद्धि], और (अग्नयः) अग्नि [शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक पराक्रम] [जो हैं]। (तैः) उन करके (मे) मेरे लिये (स्वस्त्ययनम्) कल्याण का मार्ग (कृतम्) बनाया गया, है (इन्द्रः) इन्द्र [परम ऐश्वर्यवान् जगदीश्वर] (मे) मेरे लिये (शर्म) सुख (यच्छतु) देवे, (ब्रह्मा) ब्रह्मा [सब से बड़ा परमात्मा] (मे) मेरे लिये (शर्म) सुख (यच्छतु) देवे ॥१२॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को चाहिये कि परमेश्वर की सृष्टि के बीच वेद आदि शास्त्र द्वारा संसार के अन्न आदि पदार्थों को इन्द्रियों और मन बुद्धि द्वारा यथावत् परीक्षा करके काम में लावें, और परमेश्वर को धन्यवाद देते हुए सुख प्राप्त करें ॥१२॥

    टिप्पणी

    १२−(ब्रह्म) अन्नम्-निघ० २।७। (प्रजापतिः) इन्द्रियादिप्रजानां पालकः (धाता) पोषको जीवात्मा (लोकाः) पृथिव्यादयः (वेदाः) ऋग्वेदादयश्चत्वारो वेदाः (सप्तऋषयः) मनोबुद्धिसहितानि श्रोत्रनेत्रनासिकाजिह्वात्त्वग्रूपाणि पञ्च ज्ञानेन्द्रियाणि (अग्नयः) म० ११ (तैः) पूर्वोक्तैः (मे) मह्यम् (कृतम्) निष्पादितम् (स्वस्त्ययनम्) कल्याणमार्गः (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् जगदीश्वरः (मे) (शर्म) सुखम् (यच्छतु) ददातु (ब्रह्मा) सर्वेभ्यः प्रवृद्धः परमात्मा। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    स्वस्त्ययन+शर्म

    पदार्थ

    १. (ब्रह्म) = ज्ञान, (प्रजापतिः) = राजा, (धाता) = सब लोकों का धारक प्रभु, (लोका:) = सब लोक, (वेदा:) = प्रभु से दिये गये 'ऋग्वेद-यजुर्वेद-सामवेद-अथर्ववेद', (सप्त ऋषयः) = दो कान, दो नासिका छिद्र, दो आँखें व मुख, (अग्नयः) = मातृरूप दक्षिणाग्नि, पितृरूप गार्हपत्य अग्नि तथा आचार्यरूप आहवनीयाग्नि' (तै:) = उन सबके द्वारा में (स्वस्त्ययनं कृतम्) = मेरे कल्याण का मार्ग किया गया है। इन सबकी प्रेरणा, अनुग्रह व व्यवस्था से मैं कल्याण के मार्ग पर चला हूँ। २. (इन्द्रः) = वे सर्वशक्तिमान् प्रभु (मे शर्म यच्छतु) = मेरे लिए सुख दें। (ब्रह्मा) = वे सर्वज्ञ प्रभु (मे शर्म यच्छतु) = मुझे सुख दें। शाक्ति व ज्ञान का [क्षत्र व ब्रह्म का] सम्पादन करता हुआ मैं कल्याण प्राप्त करूँ। (विश्वेदेवाः) = सभी प्राकृतिक शक्तियों-सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र, वायु आदि देव (मे शर्म यच्छन्तु) = मुझे सुख दें। ये मुझे शारीरिक आरोग्य प्राप्त कराके सुखी करें। (सर्वे देवा:) = सब विद्वान् व माता पिता-आचार्य व अतिथिरूप देव (मे शर्म यच्छन्तु) = मुझे सुखी करें। ये मुझे मानस स्वास्थ्य प्राप्त कराके आनन्दयुक्त जीवनवाला बनाएँ।

    भावार्थ

    ज्ञान, राजा, प्रभु, सब लोक, वेद, ऋषि व अग्नियाँ मुझे कल्याण के मार्ग पर ले-चलें। मैं शक्ति व ज्ञान का सम्पादन करता हुआ सुख प्राप्त करूँ। प्राकृतिक देव मुझे नीरोग बनाएँ, विद्वान् मुझे स्वस्थ मनवाला करें और इसप्रकार मुझे सुख प्राप्त कराएँ।

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    भाषार्थ

    (ब्रह्म) सर्वतोमहान् परमेश्वर, (प्रजापतिः) सब प्रजाओं का रक्षक परमेश्वर, (धाता) सबका धारण-पोषण करनेवाला परमेश्वर, (लोकाः) उसके रचे लोक-लोकान्तर, (वेदाः) चारों वेद, (सप्त ऋषयः) सात ऋषि, (अग्नयः) इन सात ऋषियों की ज्ञान-ज्योतियां, (तैः) उन सब ने (मे) मेरा (स्वस्त्ययनम्) स्वस्ति अर्थात् कल्याण का अयन अर्थात् मार्ग (कृतम्) निश्चित् कर दिया है। इसलिए (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् परमेश्वर या इन्द्रियों का प्रेरक जीवात्मा (मे) मुझे (शर्म) सुख (यच्छतु) प्रदान करे। (ब्रह्मा) चारों वेदों का ज्ञाता (मे) मुझे (शर्म) सुख (यच्छतु) प्रदान करे। (विश्वे) सब (देवाः) देव (मे) मुझे (शर्म) सुख (यच्छन्तु) प्रदान करें। (सव) सब (देवाः) देव (मे) मुझे (शर्म) सुख (यच्छन्तु) प्रदान करें।

    टिप्पणी

    [सप्त ऋषयः= “सप्त ऋषय प्रतिहिताः शरीरे” (यजुः० ३४.५५), अर्थात् सात ऋषि शरीर में निहित हैं। “षडिन्द्रियाणि विद्या सप्तमी आत्मनि” (निरु० १२.४.३८), अर्थात् ५ ज्ञानेन्द्रियां, १ मन उभयात्मक इन्द्रिय, १ विद्या अर्थात् ज्ञान—ये सात ऋषि आत्मा में निहित हैं। शर्म=सुख (निघं० ३.६)। स्वस्त्ययनं कृतम्=अथवा उन्होंने मुझे कल्याण की प्राप्ति करा दी है। अयनम्=अय् गतौ। गतेः त्रयोऽर्था—ज्ञानं गतिः प्राप्तिश्च।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Shanti

    Meaning

    Brahma, Lord Supreme and his Word of the Veda, Prajapati, father sustainer of the children of his creation, Dhata, lord ordainer, regions of the world, the Vedas and specialised branches of the general Vedic lore, seven sages who know the seven chhandas and all sciences of yajnic fires, by all these has been created and determined my path of life and action. May Indra give me peace. May Brahma give me peace. May all divinities of nature and divinities of humanity bring me peace. May all the divinities, brilliancies and eminences of the world give me peace and peaceful settlement.

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    Translation

    Divine Supreme, the Lord of Creatures, the sustainer, the seven worlds, Vedas (sacred knowledge), the seven seers, the adorable leaders--by them my progress and safety has been secured. May the resplendent Lord grant me happiness; may the Lord of knowledge grant me happiness; may all the enlightened ones grant me happiness: may all the bounties of Nature grant me happiness.

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    Translation

    May the path of mine be made peaceful by Supreme Being, the ruler of the subject, the Air, the people, Vedas, the seven seers, the seven cognitive powers and the fires the igneous substance, electricity, sun, heat of digestion and Brahma, the pervading cosmic heat. May mighty electricity or mighty spirit give me happiness, may Brahma, the master of four Vedas give me happiness, May Vishvedevah, the natural forces give me pleasure and may all the wondrous powers and learned men give me happiness.

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    Translation

    May God, the great, the Revealer of Vedic lore, the Protector of all His subjects, the Creator of the universe, all the worlds, the four Vedas, the seven sages or sense-organs, the three or five agnis, all provide a peaceful shelter for me. May the Lord of riches and prosperity grant me blissful refuge. May the Great Lord of the Vedas shower peace on me. May all learned people give peace and happiness. May all things of divine qualities be a source of peace for me.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १२−(ब्रह्म) अन्नम्-निघ० २।७। (प्रजापतिः) इन्द्रियादिप्रजानां पालकः (धाता) पोषको जीवात्मा (लोकाः) पृथिव्यादयः (वेदाः) ऋग्वेदादयश्चत्वारो वेदाः (सप्तऋषयः) मनोबुद्धिसहितानि श्रोत्रनेत्रनासिकाजिह्वात्त्वग्रूपाणि पञ्च ज्ञानेन्द्रियाणि (अग्नयः) म० ११ (तैः) पूर्वोक्तैः (मे) मह्यम् (कृतम्) निष्पादितम् (स्वस्त्ययनम्) कल्याणमार्गः (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् जगदीश्वरः (मे) (शर्म) सुखम् (यच्छतु) ददातु (ब्रह्मा) सर्वेभ्यः प्रवृद्धः परमात्मा। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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