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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 13
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - शान्तिः, मन्त्रोक्ताः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शान्ति सूक्त
    1

    यानि॒ कानि॑ चिच्छा॒न्तानि॑ लो॒के स॑प्तऋ॒षयो॑ वि॒दुः। सर्वा॑णि॒ शं भ॑वन्तु मे॒ शं मे॑ अ॒स्त्वभ॑यं मे अस्तु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यानि॑। कानि॑। चि॒त्। शा॒न्तानि॑। लो॒के। स॒प्त॒ऽऋ॒षयः॑। वि॒दुः। सर्वा॑णि। शम्। भ॒व॒न्तु॒। मे॒। शम्। मे॒। अ॒स्तु॒। अभ॑यम्। मे॒। अ॒स्तु॒ ॥९.१३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यानि कानि चिच्छान्तानि लोके सप्तऋषयो विदुः। सर्वाणि शं भवन्तु मे शं मे अस्त्वभयं मे अस्तु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यानि। कानि। चित्। शान्तानि। लोके। सप्तऽऋषयः। विदुः। सर्वाणि। शम्। भवन्तु। मे। शम्। मे। अस्तु। अभयम्। मे। अस्तु ॥९.१३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 9; मन्त्र » 13
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    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्यों को कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (यानि) जिन (कानि) किन्हीं (चित्) भी [शान्तानि] शान्त कर्मों को (लोके) संसार में (सप्तऋषयः) सात ऋषि [कान, आँख, नाक, जिह्वा, त्वचा पाँच ज्ञानेन्द्रिय मन और बुद्धि] (विदुः) जानते हैं। (सर्वाणि) वे सब (मे) मेरे लिये (शम्) शान्तिदायक (भवन्तु) होवें, (मे) मेरे लिये (शम्) शान्ति [आरोग्यता धैर्य आदि] (अस्तु) होवे, (मे) मेरे लिये (अभयम्) अभय (अस्तु) होवे ॥१३॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को योग्य है कि संसार के सब पदार्थों को साक्षात् करके उनसे यथावत् लाभ उठावें और धर्म का आचरण करते हुए धैर्य के साथ निर्भय रहें ॥१३॥

    टिप्पणी

    १३−(यानि कानि) उक्तानुक्तानि (चित्) एव (शान्तानि) शान्तियुक्तानि कर्माणि (लोके) संसारे (सप्तऋषयः) म० १२। मनोबुद्धिसहितानि पञ्चज्ञानेन्द्रियाणि (विदुः) जानन्ति (सर्वाणि) (शम्) शान्तकराणि (भवन्तु) (मे) मह्यम् (शम्) (मे) (अस्तु) (अभयम्) भयराहित्यम् (मे) (अस्तु) ॥

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    विषय

    शम् अभय

    पदार्थ

    १. (लोके) = लोक में (यानि कानिचित्) = जो कोई भी (शान्तानि) = शान्तिदायक कर्म हैं, (सप्तऋषय:) = मेरे सप्त ऋषि-'दो कान, दो नासिका-छिद्र, दो आँखें व मुख'–उनको (विदुः) = जानते हैं। मेरे ये सात ऋषि उन्हीं को अपनाने का प्रयत्न करते हैं। २. इस प्रकार (ये सर्वाणि) = सब में (शं भवन्तु) = मेरे लिए शान्ति देनेवाले हों। (मे शम् अस्तु)= मेरे लिए शान्ति हो। मे (अभयम् अस्तु) = मेरे लिए निर्भयता हो।

    भावार्थ

    मैं इन कान आदि सप्त ऋषियों से शान्त कर्मों को करता हुआ शान्ति व निर्भयता प्राप्त करूँ।

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    भाषार्थ

    (सप्त ऋषयः) सप्तछन्दोमयी वेदवाणी के रहस्यार्थवेत्ता (यानि कानि चित्) जिन-किन्हीं भी (शान्तानि) शान्तिदायक कर्मों को (लोके) इस पृथिवीलोक में (विदुः) जानते हैं, (सर्वाणि) सब वे शान्तिदायक कर्म (मे) मुझे (शम्) शान्तिदायक (भवन्तु) हों। उन सब कर्मों को करके (मे) मुझे (शम्) शान्तिलाभ (अस्तु) हो। (मे) और मुझे (अभयम्) अभय (अस्तु) हो।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Shanti

    Meaning

    Whatever the methods and sources of peace and peaceful settlement that possibly exist in the world and which the seven sages of the Veda know, may they all be the very haven and home of peace for me may all be peace for me, may all be freedom from fear for me.

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    Translation

    May world's all the peace giving things whatsoever, which the seven-seers know, be peace-giving to me; may there be peace for me; may there be freedom from fear for me.

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    Translation

    May all the alleviations and their means what so ever in this world are known by the seven cognitive organs of the body be the source of peace and happiness for me? May there be happiness for me and there be security for me.

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    Translation

    Whatsoever things, the seven sages or sense-organs know to be the sources of peace and comfort, may these be peaceful to me. Let there be all peace and calmness for me. May there be fearlessness for me.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १३−(यानि कानि) उक्तानुक्तानि (चित्) एव (शान्तानि) शान्तियुक्तानि कर्माणि (लोके) संसारे (सप्तऋषयः) म० १२। मनोबुद्धिसहितानि पञ्चज्ञानेन्द्रियाणि (विदुः) जानन्ति (सर्वाणि) (शम्) शान्तकराणि (भवन्तु) (मे) मह्यम् (शम्) (मे) (अस्तु) (अभयम्) भयराहित्यम् (मे) (अस्तु) ॥

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