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अथर्ववेद के काण्ड - 9 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 15
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मधु, अश्विनौ छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - मधु विद्या सूक्त
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    सं मा॑ग्ने॒ वर्च॑सा सृज॒ सं प्र॒जया॒ समायु॑षा। वि॒द्युर्मे॑ अ॒स्य दे॒वा इन्द्रो॑ विद्यात्स॒ह ऋषि॑भिः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सम् । मा॒ । अ॒ग्ने॒ । वर्च॑सा । सृ॒ज॒ । सम् । प्र॒ऽजया॑ । सम् । आयु॑षा । वि॒द्यु: । मे॒ । अ॒स्य । दे॒वा: । इन्द्र॑: । वि॒द्या॒त् । स॒ह । ऋषि॑ऽभि: ॥१.१५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सं माग्ने वर्चसा सृज सं प्रजया समायुषा। विद्युर्मे अस्य देवा इन्द्रो विद्यात्सह ऋषिभिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सम् । मा । अग्ने । वर्चसा । सृज । सम् । प्रऽजया । सम् । आयुषा । विद्यु: । मे । अस्य । देवा: । इन्द्र: । विद्यात् । सह । ऋषिऽभि: ॥१.१५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 1; मन्त्र » 15
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    ब्रह्म की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (अग्ने) हे विद्वान् ! (मा) मुझको (वर्चसा) [ब्रह्मविद्या के] प्रकाश से (सम्) अच्छे प्रकार (प्रजया) प्रजा से (सम्) अच्छे प्रकार और (आयुषा) जीवन से (सं सृज) अच्छे प्रकार संयुक्त कर। (देवाः) विद्वान् लोग (अस्य) इस (मे) मुझको (विद्युः) जानें, (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् आचार्य (ऋषिभिः सह) ऋषियों के साथ [मुझे] (विद्यात्) जाने ॥१५॥

    भावार्थ

    मनुष्य उत्तम विद्या पाकर संसार के सुधार से अपना जीवन सफल करके विद्वानों और गुरु जनों में प्रतिष्ठा पावें ॥१५॥ यह मन्त्र ऋग्वेद में है−१।२™३।२४। और पहिले आ चुका है-अ० ७।८९।२ ॥

    टिप्पणी

    १५-अयं मन्त्रो व्याख्यातः-अ० ७।८९।२ ॥

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    विषय

    वर्चसा, प्रजया, आयुषा

    पदार्थ

    १. इस मन्त्र की व्याख्या ७।९।३ पर द्रष्टव्य है।

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    भाषार्थ

    (अग्ने) हे अग्नि [मन्त्र १४] (मा) मेरा (वर्चसा) वर्चस् के साथ (संसृज) संसर्ग कर, (सं प्रजया) प्रजा के साथ संसर्ग कर, (सम् आयुषा) और आयु के साथ संसर्ग कर ! (देवाः) विद्वान् लोग, तथा (ऋषिभिः सह इन्द्रः१) ऋषियों के साथ इन्द्र (मे अस्य) इस मुझ की (विद्युः) प्रार्थना को जान।

    टिप्पणी

    [१. इन्द्रः = सम्राट्। ऋषिभिः= ऋषिकोटि के मन्त्रियों सहित।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Madhu Vidya

    Meaning

    Hey Agni, lord of light, brilliant teacher, pray bless me with the light and lustre of life and knowledge. Bless me with progeny, good health and long age. Let the Devas, brilliancies of nature and humanity, know and acknowledge me. Let Indra, lord of power, know and acknowledge me with all the sages and seers.

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    Translation

    O adorable Lord, may you endow me with lustre, progeny and long span of life. May the enlightened ones know of me as such, may the resplendent self along with the seers know (of me). (Also.Rg. 1.23.24)

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    Translation

    O teacher! grant me splendor and strength, grant me progeny and grant me lengthy life. May the learned men know me as I am and may the King with the men of great penetrative geneus.

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    Translation

    Grant me, O Guru, splendid strength, and progeny, and lengthened life. May the learned know me as I am. May God with the sages know me.

    Footnote

    In the presence of the learned, sages and God, a pupil takes this vow to receive knowledge from his Guru, by remaining obedient and loyal to him.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १५-अयं मन्त्रो व्याख्यातः-अ० ७।८९।२ ॥

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