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अथर्ववेद के काण्ड - 9 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 8
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मधु, अश्विनौ छन्दः - बृहतीगर्भा संस्तारपङ्क्तिः सूक्तम् - मधु विद्या सूक्त
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    हि॒ङ्करि॑क्रती बृह॒ती व॑यो॒धा उ॒च्चैर्घो॑षा॒भ्येति॒ या व्र॒तम्। त्रीन्घ॒र्मान॒भि वा॑वशा॒ना मिमा॑ति मा॒युं पय॑ते॒ पयो॑भिः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    हि॒ङ्ऽकरि॑क्रती । बृ॒ह॒ती । व॒य॒:ऽधा: । उ॒च्चै:ऽघो॑षा । अ॒भि॒ऽएति॑ । या । व्र॒तम् । त्रीन् । ध॒र्मान् । अ॒भि । वा॒व॒शा॒ना । मिमा॑ति । मा॒युम् । पय॑ते । पय॑:ऽभि: ॥१.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    हिङ्करिक्रती बृहती वयोधा उच्चैर्घोषाभ्येति या व्रतम्। त्रीन्घर्मानभि वावशाना मिमाति मायुं पयते पयोभिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    हिङ्ऽकरिक्रती । बृहती । वय:ऽधा: । उच्चै:ऽघोषा । अभिऽएति । या । व्रतम् । त्रीन् । धर्मान् । अभि । वावशाना । मिमाति । मायुम् । पयते । पय:ऽभि: ॥१.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 1; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    ब्रह्म की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (हिङ्करिक्रती) अत्यन्त वृद्धि करती हुई, (वयोधाः) बल वा अन्न देनेवाली, (उच्चैर्घोषा) ऊँचा शब्द रखनेवाली (या) जो (बृहती) बहुत बड़ी [ब्रह्मविद्या] (व्रतम्) अपने नियम पर (अभ्येति) चली चलती है, वह (त्रीन्)) तीन [शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक] (घर्मान्) यज्ञों की (अभि) सब ओर से (वावशाना) अति कामना करती हुई (मायुम्) शब्द (मिमाति) करती है और (पयोभिः) बलों के साथ (पयते) चलती है ॥८॥

    भावार्थ

    वेदवाणी जाननेवाले पुरुष संसार में सब प्रकार उन्नति करते हैं ॥८॥ इस मन्त्र का उत्तर भाग भेद से ऋग्वेद में है−१।१६४।२८ ॥

    टिप्पणी

    ८−(हिङ्करिक्रती) हि गतिवृद्ध्योः-डि। दाधर्त्तिदर्द्धर्त्तिदर्द्धर्षि०। पा० ७।४।६५। करोतेर्यङ्लुकि-शतृ, चुत्वाभावः। हिङ्कृण्वती। अ० ७।७३।८। गतिं वृद्धिं वा कुर्वती (बृहती) विशाला। वेदवाणी (वयोधाः) बलस्यान्नस्य वा दात्री (उच्चैर्घोषा) प्रसिद्धनादा (अभ्येति) प्राप्नोति (या) मधुकशा (व्रतम्) स्वकीयं कर्म (त्रीन्) शारीरिकात्मिकसामाजिकान् (घर्मान्) यज्ञान्-निघ० ३।७। (अभि) सर्वतः (वावशाना) भृशं कामयमाना (मिमाति) मा माने जुहोत्यादित्वम्। निर्माति। करोति (मायुम्) कृवापाजिमि०। उ० १।१। माङ् माने शब्दे च-उण्, युक् च। शब्दम् वाचम्-निघ० १।११। (पयते) गच्छति (पयोभिः) बलैः सह ॥

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    विषय

    हिंकरिक्रती-उच्चैर्घोषा

    पदार्थ

    १. (हिंकरिक्रती) = [हि गतिवृद्ध्योः ] गति व वृद्धि करनेवाली यह वेदधेनु (बृहती) = वृद्धि का कारण बनती है और (वयोधा:) = उत्कृष्ट जीवन का धारण करती है। (या) = जो यह (उच्चैः घोषा) = उच्च घोषवाली-यह वेदधेनु ज्ञान की वाणियों का गर्जन करनेवाली है, वह (व्रतम् अभि एति) = व्रतमय जीवनवाले पुरुष को प्राप्त होती है। व्रती पुरुष इस वेदधेनु को प्राप्त करता है। २. (त्रीन् घर्मान् अभिवावशाना) = जीवन के 'प्रातः, माध्यन्दिन ब सायन्तन'-इन तीनों सवनों का लक्ष्य करके ज्ञान की वाणियों का प्रतिपादन करती हुई यह वेदवाणी (मायुं मिमाती) = शब्द करती है तथा (पयोभिः पयते) = ज्ञानदुग्धों के साथ हमें प्राप्त होती है।

    भावार्थ

    वेदधेनु ब्रतमय जीवनवालों को ज्ञानदुग्ध प्राप्त कराती है तथा ज्ञान-वाणियों के द्वारा ज्ञानदुग्ध देती हुई उनका वर्धन करती है।


     

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    भाषार्थ

    (हिङ्करिक्रती) बार-बार गति करती हुई, (बृहती) बड़ी शक्तिरूपा, (वयोधाः) अन्न का पोषण करने वाली, (उच्चैर्घोषा) ऊंची आवाज वाली (या) जो विद्युत्, (व्रतम्) निज कर्म को (अभ्येति) प्राप्त करती है, वह (त्रीन्) तीन (घर्मान्) दीप्तियों को (वावशाना) कान्तियुक्त करती हुई, (मायुम्) शब्द का (मिमाति) निर्माण करती है, और (पयोभिः) जलों के साथ (पयते) गति करती है।

    टिप्पणी

    [हिम्= हि "हि गतौ वृद्धौ च, स्वादिः] + क्विप्, द्वितीयैकवचन। करिक्रती= विद्युत् मेघ में बार-बार चमकती हुई बार-बार गति करती है। वयोधाः= वर्षा द्वारा अन्न का पोषण करती है "वयः अन्ननाम" (निघं० २।७)। व्रतम् कर्मनाम (निघं० २।१), वर्षा करना विद्युत् का कर्म है। घर्मान्= पार्थिव अग्नि, सूर्य, और द्युलोक की दीप्तियां,— ये तीन दीप्तियां विद्युत् के ही रूप हैं। पयोभिः= मेघीय जलों के साथ-साथ गति करती है, विद्युत्। पयते= पय गतौ (भ्वादिः)। जिधर-जिधर वायु द्वारा प्रेरित हुए मेघ जाते हैं, मेघारूढ विद्युत् भी उधर-उधर ही गति करती है।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Madhu Vidya

    Meaning

    Continuously sounding again and again, mighty expansive bearer of food and health by showers of rain, thundering aloud, electric energy goes on to its job of breaking the clouds of rain ; heating, energising and illuminating three orders of energy of earth, sky and the solar region, thus does lightning roar with thunder and moves on with clouds laden with vapours.

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    Translation

    Bellowing with hin sound (hinkarikrati) great , bestower of long-life, loud-roaring (uccaghosa), she that comes to the place of sacrifice, commanding the three libations, she roars a roarer (lows a lowing) and pours out waters (plenty of milk).

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    Translation

    The Madhyma vak (from of the speech) is the support of life and is’ grand. This is the storming and producing constant clamor comes to water, the rain. This having contact with three objects of light—the Sun, Air and cloud creates storming sound and fill the earth with rainy waters.

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    Translation

    Ever progressing, grand, life-infusing, preaching lofty principles, Vedic knowledge is acquired by a disciplined learned person. Controlling the three forces, it reveals its teachings to a learned person, and satisfies him with the showers of knowledge.

    Footnote

    Three forces: Spiritual, physical, social.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ८−(हिङ्करिक्रती) हि गतिवृद्ध्योः-डि। दाधर्त्तिदर्द्धर्त्तिदर्द्धर्षि०। पा० ७।४।६५। करोतेर्यङ्लुकि-शतृ, चुत्वाभावः। हिङ्कृण्वती। अ० ७।७३।८। गतिं वृद्धिं वा कुर्वती (बृहती) विशाला। वेदवाणी (वयोधाः) बलस्यान्नस्य वा दात्री (उच्चैर्घोषा) प्रसिद्धनादा (अभ्येति) प्राप्नोति (या) मधुकशा (व्रतम्) स्वकीयं कर्म (त्रीन्) शारीरिकात्मिकसामाजिकान् (घर्मान्) यज्ञान्-निघ० ३।७। (अभि) सर्वतः (वावशाना) भृशं कामयमाना (मिमाति) मा माने जुहोत्यादित्वम्। निर्माति। करोति (मायुम्) कृवापाजिमि०। उ० १।१। माङ् माने शब्दे च-उण्, युक् च। शब्दम् वाचम्-निघ० १।११। (पयते) गच्छति (पयोभिः) बलैः सह ॥

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