अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 16
ऋषिः - अथर्वा
देवता - मधु, अश्विनौ
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - मधु विद्या सूक्त
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यथा॒ मधु॑ मधु॒कृतः॑ सं॒भर॑न्ति॒ मधा॒वधि॑। ए॒वा मे॑ अश्विना॒ वर्च॑ आ॒त्मनि॑ ध्रियताम् ॥
स्वर सहित पद पाठयथा॑ । मधु॑ । म॒धु॒ऽकृत॑: । स॒म्ऽभर॑न्ति । मधौ॑ । अधि॑ । ए॒व । मे॒ । अ॒श्वि॒ना॒ । वर्च॑: । आ॒त्मनि॑ । ध्रि॒य॒ता॒म् ॥१.१६॥
स्वर रहित मन्त्र
यथा मधु मधुकृतः संभरन्ति मधावधि। एवा मे अश्विना वर्च आत्मनि ध्रियताम् ॥
स्वर रहित पद पाठयथा । मधु । मधुऽकृत: । सम्ऽभरन्ति । मधौ । अधि । एव । मे । अश्विना । वर्च: । आत्मनि । ध्रियताम् ॥१.१६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
ब्रह्म की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ
(यथा) जैसे (मधुकृतः) ज्ञान करनेवाले [आचार्य लोग] (मधु) [एक] ज्ञान को (मधौ) [दूसरे] ज्ञान पर (अधि) यथावत् (संभरन्ति) भरते जाते हैं, (एव) वैसे ही, (अश्विना) हे [कार्यकुशल] माता-पिता ! (मे आत्मनि) मेरे आत्मा में [विद्या का] (वर्चः) प्रकाश (ध्रियताम्) धरा जावे ॥१६॥
भावार्थ
मनुष्य उत्तम आचार्यों के समान एक के ऊपर एक अनेक विद्याओं का उपदेश करके शिष्यों को श्रेष्ठ बनावें ॥१६॥ इस मन्त्र का उत्तर भाग आ चुका है-म० ११ ॥
टिप्पणी
१६−(मधु) ज्ञानम् (मधुकृतः) बोधकर्तारः। आचार्याः (संभरन्ति) संगृह्य धरन्ति (मधौ) ज्ञाने (अधि) यथावत्। अन्यत् पूर्ववत्-म० ११ ॥
विषय
मधुकृतः, मक्षाः
पदार्थ
१. (यथा) = जिस प्रकार (मधौ) = मधुमास या वसन्तकाल में (मधुकृत:) = भ्रमर (मधु) = मधुरस को (अधिसभरन्ति) = आधिक्येन संग्रहीत करते हैं, (एव) = इसी प्रकार हे (अश्विना) = प्राणापानो! मे (आत्मनि वर्चः धियताम्) = मेरी आत्मा में वर्चस् का धारण किया जाए। २. (यथा) = जिस प्रकार (मक्षा:) = मधुमक्खियाँ (मधौ) = मधुमास या वसन्तकाल में (इदं मधु) = इस मधुरस को (अधिन्यजन्ति) = [अञ्ज गती] आधिक्येन प्राप्त करती है, (एव) = इसी प्रकार (अश्विना) = हे प्राणापानो! (मे आत्मनि) = मेरी आत्मा में (वर्च: तेज: बलम् ओज: च) = ब्रह्मवर्चस, तेज, बल और ओज (ध्रियताम्) = धारण किये जाएँ।
भावार्थ
जैसे भ्रमर और मधुमक्षिकाएँ थोड़ा-थोड़ा करके मधु का सञ्चय करती हैं, इसी प्रकार हम प्राणसाधना करते हुए 'वर्चस, तेज, ओज व बल' को धारण करनेवाले हों।
भाषार्थ
(यथा) जैसे (मधुकृतः) मधु एकत्रित करने वाले मधुकर अर्थात् भौंरे (मधु) मधु को (मधौ अधि) मधु में या मधुछत्ते में (सं भरन्ति) भरते रहते हैं, इकठ्ठा करते रहते हैं, (एवा) इसी प्रकार (अश्विना) हे अश्वियों ! (मे आत्मनि) मेरी आत्मा में (वर्चः) वर्चस् (ध्रियताम्) स्थापित हो [आश्विना=आश्विनौ (मन्त्र ११)]
इंग्लिश (4)
Subject
Madhu Vidya
Meaning
Just as honey bees collect, carry and store honey in the honey comb, so may the Ashvins, harbingers of nature’s and human gifts bless me with sweetness and light in the soul.
Translation
As the honey-makers (bees) accumulate honey in the honeycomb, even so, O twins-divine, may the lustre be maintained in my self (atmani).
Translation
As honey-bees collect and add fresh honey to their honey- store in the same manner lay splendor and vigor in my soul, O teacher and preacher !
Translation
As honey-bees collect honey in spring; even so may both the Gurus God and teacher lay splendor of knowledge and spiritual strength within my soul.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१६−(मधु) ज्ञानम् (मधुकृतः) बोधकर्तारः। आचार्याः (संभरन्ति) संगृह्य धरन्ति (मधौ) ज्ञाने (अधि) यथावत्। अन्यत् पूर्ववत्-म० ११ ॥
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