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अथर्ववेद के काण्ड - 9 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 22
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मधु, अश्विनौ छन्दः - त्रिपदा ब्राह्मी पुरउष्णिक् सूक्तम् - मधु विद्या सूक्त
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    यो वै कशा॑याः स॒प्त मधू॑नि॒ वेद॒ मधु॑मान्भवति। ब्रा॑ह्म॒णश्च॒ राजा॑ च धे॒नुश्चा॑न॒ड्वांश्च॑ व्री॒हिश्च॒ यव॑श्च॒ मधु॑ सप्त॒मम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । वै । कशा॑या: । स॒प्त । मधू॑नि । वेद॑ । मधु॑ऽमान् । भ॒व॒ति॒ । ब्रा॒ह्म॒ण: । च॒ । राजा॑ । च॒ । धे॒नु: । च॒ । अ॒न॒ड्वान् । च॒ । व्री॒हि: । च॒ । यव॑: । च॒ । मधु॑ । स॒प्त॒मम् ॥१.२२।


    स्वर रहित मन्त्र

    यो वै कशायाः सप्त मधूनि वेद मधुमान्भवति। ब्राह्मणश्च राजा च धेनुश्चानड्वांश्च व्रीहिश्च यवश्च मधु सप्तमम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । वै । कशाया: । सप्त । मधूनि । वेद । मधुऽमान् । भवति । ब्राह्मण: । च । राजा । च । धेनु: । च । अनड्वान् । च । व्रीहि: । च । यव: । च । मधु । सप्तमम् ॥१.२२।

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 1; मन्त्र » 22
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    ब्रह्म की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (यः) जो पुरुष (वै) निश्चय करके (कशायाः) वेदवाणी के (सप्त) सात (मधूनि) ज्ञानों को (वेद) जानता है, वह (मधुमान्) ज्ञानवान् (भवति) होता है। [जो] (ब्राह्मणः) वेदवेत्ता (च) और (राजा) राजा (च) और (धेनुः) तृप्त करनेवाली गौ (च) और (अनड्वान्) अन्न पहुँचानेवाला, बैल (च) और (व्रीहिः) चावल (च) और (यवः) जौ (च) और (सप्तमम्) सातवाँ (मधु) ज्ञान है ॥२२॥

    भावार्थ

    सूक्ष्मदर्शी, नीतिज्ञ पुरुष उपकारी जीवों और पदार्थों से वेदज्ञान द्वारा ज्ञानवान् होता है ॥२२॥

    टिप्पणी

    २२−(यः) (वै) अवधारणे (कशायाः) म० ५। वेदवाचः (सप्त) (मधूनि) ज्ञानानि (वेद) वेत्ति (मधुमान्) ज्ञानवान् (भवति) (ब्राह्मणः) अ० २।६।३। वेदवेत्ता (राजा) (च) (धेनुः) अ० ३।१०।१। तर्पयित्री गौः (अनड्वान्) अ० ४।११।१। अनसोऽन्नस्य वाहकः प्रापकः (व्रीहिः) अ० ६।—१४०।२। अन्नविशेषः (यवः) (मधु) ज्ञानम् (सप्तमम्) ॥

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    विषय

    सप्त मधूनि

    पदार्थ

    १.(यः) = जो (वै) = निश्चय से (कशाया:) = वेदवाणी के-वेद में प्रतिपादित (सप्त) = सात (मधुनि) = मधुओं को (वेद) = जानता है, वह (मधुमान् भवति) = प्रशस्त मधुवाला-अत्यन्त मधुर जीवनवाला होता है। २. वेदवाणी के सात मधु ये हैं (ब्राह्मण: च राजा च) = ब्राह्मण और राजा, अर्थात् ब्रह्म और क्षत्र। मनुष्य को ब्रह्म और क्षत्र दोनों का जीवन में समन्वय करके श्रीसम्पन्न बनना है-'इदं में ब्रह्म च क्षत्रं चोभे श्रियमश्नुताम्'। (धेनुः च अनड्वान् च) = गौ और बैल। गौ इसे अमृतमय दूध देकर अमृत जीवनवाला बनाती है तो बैल इसके अन्नादि की उत्पत्ति का साधन बनता है। (ब्रीहिः च यवः च) = चावल और जौ। चावल इसके शरीरस्थ रोगों को दूर करते हैं और जो इसे प्राणशक्ति-सम्पन्न बनाते हैं-('यवे ह प्राण आहितः, अपानो वीहिराहितः') = इन छह के बाद (सप्तमम्) = सातवाँ (मधु) = शहद है। यह स्थूलता और कृशता को दूर करता हुआ वास्तव में ही जीवन को मधुर बनाता है।

    भावार्थ

    वेदवाणी में प्रतिपादित सात मधुओं का ज्ञान प्राप्त करके उन्हें अपनाकर हम जीवन को मधुमान् बनाएँ।

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    भाषार्थ

    (यः) जो (वै) निश्चय से (कशायाः) प्रजापति की चाबुक के (सप्त मधूनि) सात मधुओं को (वेद) जानता है (मधुमान् भवति) वह मधुओं का स्वामी होता है। (ब्राह्मणः च राजा च) ब्राह्मण और राजा (धेनुः अनङ्वान् च) दूध देने वाली गौ और बैल (व्रीहिः च यवः च) ब्रीहि और यव (मधु सप्तमाम्) तथा सातवां मधु। मन्त्र में सप्तम "मधु" उपलक्षक है आहार योग्य पदार्थों का, जिन्हें कि "आहार्यम्" कहा है (२३)

    टिप्पणी

    [मन्त्र में तीन-जोड़ों में ६ मधुओं का वर्णन कर सातवें को "मधु" कहा है। सातवां मधु है शहद तथा खाण्ड-शक्कर आदि जोकि स्वभावतः मधुर हैं। और आहार्य हैं (मन्त्र २३) तीन जोड़ों के ६ मधु परिणामतः मधु है स्वभावतः नहीं। मन्त्र में "यः" द्वारा राष्ट्र के किसी मुख्याधिकारी का वर्णन हुआ है, सम्भवतः यह सम्राट् है जिसे कि "इन्द्र" कहा जाता है। इसके अधीन जो प्रादेशिक या माण्डलिक राजा होता है उसे "वरुण" कहा जाता है। यथा— इन्द्रश्च सम्राट् वरुणश्च राजा (यजु० ८।३७)। प्रत्येक माण्डलिक राज्य में ७ मधु चाहिये। (१) ब्राह्मण अर्थात् विद्वान्, निःस्पृह तथा परोपकारी प्रधान मन्त्री । (२) राजा, जो कि सद्गुणों द्वारा प्रजाओं में दीप्यमान हो [राजृ दीप्तौ] (३) दूध देने वाली गौएं। (४) कृषि तथा भार वाहक अनड्वान्। (५) व्रीहि [धान]। (६) यव [जौं]। (७) मधु शहद आदि। इन सात पदार्थों के आधार पर राष्ट्र की सत्ता होती है। इसलिये ये सात राष्ट्र के लिये मधु कहे हैं। ये सात "कशा" के सात मधु है। "कशा" का अर्थ है "चाबुक"१ जो कि दण्डरूप होने से राष्ट्र की व्यवस्था को बनाए रखती है। परन्तु इस कथा का प्रयोग "मधु" रूप होना चाहिये, स्नेह और प्रेमभरा होना चाहिये। इस सूक्त का देवता है "मधुकशा। इसी का वर्णन, राष्ट्र दृष्टि से, "कशा" और मधु" शब्दों द्वारा मन्त्र में हुआ है।] [१. मनुस्मृति में दण्ड की चाबुकता का वर्णन इस प्रकार हुआ है। यथा “यत्र श्यामो लोहिताक्षो दण्डश्चरति पापहा। प्रजास्तत्र न मुह्यन्ति नेता चेत् साधु पश्यति" मनु० ॥ अर्थात् 'जहां कृष्ण वर्ण रक्तनेत्र भयंकर पुरुष के समान पापों का नाश करने हारा दण्ड विचरता है वहां प्रजा मोह को प्राप्त न होके आनन्दित होती है। परन्तु जो दण्ड का चलाने वाला पक्षपात रहित विद्वान् हो तो" (सत्यार्थप्रकाश, षष्ठ समुल्लास)]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Madhu Vidya

    Meaning

    Whoever knows the seven honey sweets of kasha is blest with honey sweets in life which are : Brahmana, ruler, cow, bull, rice, barley, and the seventh is honey itself.

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    Translation

    O surely he, who knows the seven honeys of the honeystring; becomes endowed with sweetness; the intellectual person (i), and the ruler (ii), and the milch-cow (iii), and the draught-ox: (iv), and rice (v), and barley (vi),and honey (vii) is the seventh.

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    Translation

    He who knows the seven main thing of Kasha becomes men endowed with sweetness and knowledge. Vedic priest, the king, the cow, the Ox, paddy, barley and honey, the seventh are the seven main things of Kasha.

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    Translation

    Whoever knows the seven kinds of Veda’s learning, becomes himself a man endowed with wisdom. They are, (1) Brahman, the knower of the Vedas (2) King, (3) Milch cow (4) Ox the giver of corn (5) Rice (6) Barley (7) Knowledge.

    Footnote

    Madhu means honey in common parlance. Here the word means knowledge.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २२−(यः) (वै) अवधारणे (कशायाः) म० ५। वेदवाचः (सप्त) (मधूनि) ज्ञानानि (वेद) वेत्ति (मधुमान्) ज्ञानवान् (भवति) (ब्राह्मणः) अ० २।६।३। वेदवेत्ता (राजा) (च) (धेनुः) अ० ३।१०।१। तर्पयित्री गौः (अनड्वान्) अ० ४।११।१। अनसोऽन्नस्य वाहकः प्रापकः (व्रीहिः) अ० ६।—१४०।२। अन्नविशेषः (यवः) (मधु) ज्ञानम् (सप्तमम्) ॥

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