अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 29/ मन्त्र 1
पु॒रस्ता॑द्यु॒क्तो व॑ह जातवे॒दोऽग्ने॑ वि॒द्धि क्रि॒यमा॑णं॒ यथे॒दम्। त्वं भि॒षग्भे॑ष॒जस्या॑सि क॒र्ता त्वया॒ गामश्वं॒ पुरु॑षं सनेम ॥
स्वर सहित पद पाठपु॒रस्ता॑त् । यु॒क्त: । व॒ह॒ । जा॒त॒ऽवे॒द॒: । अग्ने॑ । वि॒ध्दि । क्रि॒यमा॑णम् । यथा॑ । इ॒दम् । त्वम् । भि॒षक् । भे॒ष॒जस्य॑ । अ॒सि॒ । क॒र्ता । त्वया॑ । गाम् । अश्व॑म् । पुरु॑षम् । स॒ने॒म॒ ॥२९.१॥
स्वर रहित मन्त्र
पुरस्ताद्युक्तो वह जातवेदोऽग्ने विद्धि क्रियमाणं यथेदम्। त्वं भिषग्भेषजस्यासि कर्ता त्वया गामश्वं पुरुषं सनेम ॥
स्वर रहित पद पाठपुरस्तात् । युक्त: । वह । जातऽवेद: । अग्ने । विध्दि । क्रियमाणम् । यथा । इदम् । त्वम् । भिषक् । भेषजस्य । असि । कर्ता । त्वया । गाम् । अश्वम् । पुरुषम् । सनेम ॥२९.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 29; मन्त्र » 1
विषय - भिषक् [भेषजस्यासि कर्ता]
पदार्थ -
१. हे (जातवेदः अग्ने) = सर्वज्ञ अग्रणी प्रभो! (पुरस्तात्) = हमारे जीवन-शकट के आगे (युक्तः) = युक्त हुए-हुए आप (वह) = हमारे जीवन की गाड़ी को ले-चलिए [भ्रामयन् सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया]। (यथा) = जैसे (इदम्) = यह (क्रियमाणम्) = किया जाना है, उसे विद्धि-आप ही जानिए। हमारे जीवन-शकट को लक्ष्य पर कैसे पहुँचाना है-यह तो आपको ही पता है। २. (त्वम् भिषक्) = आप ही वैद्य हैं (भेषजस्य कर्ता असि) = औषध करनेवाले हैं। जीवन-यात्रा में अयुक्त आहार-विहार से उत्पन्न हो जानेवाले रोगों को आपको दूर करना है। हे प्रभो! (त्वया) = आपसे हम (गाम्) = उत्तम ज्ञानेन्द्रियों को, (अश्वम्) = उत्तम कर्मेन्द्रियों को तथा (पुरुषम्) = उत्तम वीर सन्तानों को सनेम-प्राप्त करें [यह पुरुषोऽसत्]।
भावार्थ -
हमारे जीवन-रथ के सारथि प्रभ हैं। वे ही जानते हैं कि यह यात्रा कैसे पूर्ण होनी है। सब रोगों के चिकित्सक वे ही हैं। वे ही उत्तम ज्ञानेन्द्रियों, कर्मेन्द्रियों व वीर सन्तानों को प्राप्त कराते हैं।
इस भाष्य को एडिट करें