ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 93/ मन्त्र 10
अग्नी॑षोमाव॒नेन॑ वां॒ यो वां॑ घृ॒तेन॒ दाश॑ति। तस्मै॑ दीदयतं बृ॒हत् ॥
स्वर सहित पद पाठअग्नी॑षोमौ । अ॒नेन॑ । वा॒म् । यः । वा॒म् । घृ॒तेन॑ । दाश॑ति । तस्मै॑ । दी॒द॒य॒त॒म् । बृ॒हत् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्नीषोमावनेन वां यो वां घृतेन दाशति। तस्मै दीदयतं बृहत् ॥
स्वर रहित पद पाठअग्नीषोमौ। अनेन। वाम्। यः। वाम्। घृतेन। दाशति। तस्मै। दीदयतम्। बृहत् ॥ १.९३.१०
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 93; मन्त्र » 10
अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 29; मन्त्र » 4
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अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 29; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
एतदनुष्ठातुः किं जायत इत्युपदिश्यते ।
अन्वयः
यो वामेतयोर्मध्येऽनेन घृतेनाहुतीर्दाशति वां सकाशादुपकारान् गृह्णाति तस्मा अग्नीषोमौ बृहद्दीदयतम् ॥ १० ॥
पदार्थः
(अग्नीषोमौ) विद्युत्पवनौ (अनेन) प्रत्यक्षेण (वाम्) युवयोर्मध्ये (यः) एकः (वाम्) एतयोः सकाशात् (घृतेन) आज्येनोदकेन वा (दाशति) आहुतीर्ददाति (तस्मै) (दीदयतम्) प्रकाशयतः (बृहत्) महत् ॥ १० ॥
भावार्थः
ये मनुष्याः क्रियायज्ञानुष्ठानं कुर्वन्ति तेऽस्मिञ्जगति महत्सौभाग्यं प्राप्नुवन्ति ॥ १० ॥
हिन्दी (3)
विषय
इसके अनुष्ठान करनेवाले को क्या होता है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ।
पदार्थ
(यः) जो मनुष्य (वाम्) इनके बीच (अनेन) इस (घृतेन) घी वा जल से आहुतियों को देता है वा (वाम्) इनकी उत्तेजना से उपकारों को ग्रहण करता है, उसके लिये (अग्नीषोमा) बिजुली और पवन (बृहत्) बड़े विज्ञान और सुख को (दीदयतम्) प्रकाशित करते हैं ॥ १० ॥
भावार्थ
जो मनुष्य क्रियारूपी यज्ञों का अनुष्ठान करते हैं, वे इस संसार में अत्यन्त सौभाग्य को प्राप्त होते हैं ॥ १० ॥
विषय
ज्ञान व स्वास्थ्य की दीप्ति
पदार्थ
१. हे (अग्नीषोमौ) = प्राणापानो ! (यः) = जो (वाम्) = आपका साधक (अनेन घृतेन) = इस मलों के क्षरण व ज्ञानदीप्ति के हेतु से (वां दाशति) = आपके प्रति अपना अर्पण करता है, (तस्मै) = उसके लिए आप (बृहत्) = खूब ही (दीदयतम्) = प्रकाश करनेवाले होओ । २. प्राण रेतस् की ऊर्ध्वगति के द्वारा ज्ञानाग्नि को दीप्त करता है, अपान मलों के क्षरण से स्वास्थ्य की दीप्ति प्राप्त कराता है । 'घृत' शब्द में दोनों ही भावनाएँ आ जाती हैं । इस घृत के उद्देश्य से साधक प्राणापान की साधना में प्रवृत्त होता है ।
भावार्थ
भावार्थ = प्राणापान की शक्ति की वृद्धि से ज्ञान व स्वास्थ्य की दीप्ति प्राप्त होती है ।
विषय
दीर्घायु प्राप्त करने का वैज्ञानिक उपाय ।
भावार्थ
जिस प्रकार ( घृतेन अग्नीषोमौ दाशति ) घृत और जल के साथ अग्नि और वायु दोनों के बीच ग्राह्य अंश को प्रदान करता है उसके लिये वे दोनों ( बृहत् दीदयतम् ) बहुत प्रकाशित करते हैं। अग्नि में घृताहुति देने से वह बहुत उज्ज्वल हो जाती है और वायु में जलांश अधिक आ जाने से वृष्टि द्वारा अन्नादि अधिक मात्रा में होता है उसी प्रकार हे (अग्नीषोमौ) विद्वन् ! हे राजन् ! ( यः ) जो भी पुरुष ( वां ) तुम दोनों में किसी को ( घृतेन ) स्नेह से या तेजस्विता से या नम्रता से प्रदान करता है (तस्मै ) उस को ( बृहत् ) बहुत २ ज्ञान और ऐश्वर्य ( दीदयतम् ) प्रकाशित करते और प्रदान करते हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गोतमो रहूगणपुत्र ऋषिः ॥ अग्नीषोमौ देवते ॥ छन्दः–१ अनुष्टुप् । २ विराड् नुष्टुप् । ३ भुरिगुष्णिक् । ४ स्वराट् पंक्तिः । ५, ७ निचृत् त्रिष्टुप् । ६ विराट् त्रिष्टुप् । ८ स्वराट् त्रिष्टुप् । १२ त्रिष्टुप् । ९, १०, ११ गायत्री ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जी माणसे क्रियारूपी यज्ञांचे अनुष्ठान करतात ती या जगात अत्यंत सौभाग्यवान असतात. ॥ १० ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Agni and Soma, whoever offers homage to you with this ghrta and water in scientific yajna, bless him with great good fortune and wealth of life.
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