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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 93 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 93/ मन्त्र 9
    ऋषिः - गोतमो राहूगणपुत्रः देवता - अग्नीषोमौ छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    अग्नी॑षोमा॒ सवे॑दसा॒ सहू॑ती वनतं॒ गिर॑:। सं दे॑व॒त्रा ब॑भूवथुः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अग्नी॑षोमा । सऽवे॑दसा । सहू॑ती॒ इति॒ सऽहू॑ती । व॒न॒त॒म् । गिरः॑ । सम् । दे॒व॒ऽत्रा । ब॒भू॒व॒थुः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्नीषोमा सवेदसा सहूती वनतं गिर:। सं देवत्रा बभूवथुः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्नीषोमा। सऽवेदसा। सहूती इति सऽहूती। वनतम्। गिरः। सम्। देवऽत्रा। बभूवथुः ॥ १.९३.९

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 93; मन्त्र » 9
    अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 29; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तौ कीदृशावित्युपदिश्यते ।

    अन्वयः

    यो सहूती सवेदसाग्नीषोमा देवत्रा सम्बभूवथुः सम्भवतस्तौ गिरो वनतं भजतः ॥ ९ ॥

    पदार्थः

    (अग्नीषोमा) यज्ञफलसाधकौ (सवेदसा) समानेन हुतद्रव्येण युक्तौ (सहूती) समाना हूतिराह्वानं ययोस्तौ (वनतम्) संभजतः (गिरः) वाणीः (सम्) (देवत्रा) देवेषु विद्वत्सु दिव्यगुणेषु वा (बभूवथुः) भवतः ॥ ९ ॥

    भावार्थः

    मनुष्यैर्नहि यज्ञादिक्रियया वायोः शोधनेन विना प्राणिनां सुखं संभवति तस्मादेतन्नित्यमनुष्ठेयम् ॥ ९ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वे कैसे हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    जो (सहूती) एकसी वाणीवाले (सवेदसा) बराबर होमे हुए पदार्थ से युक्त (अग्नीषोमा) यज्ञफल के सिद्ध करनेहारे अग्नि और पवन (देवत्रा) विद्वान् वा दिव्यगुणों में (सम्बभूवथुः) संभावित होते हैं वे (गिरः) वाणियों को (वनतम्) अच्छे प्रकार सेवते हैं ॥ ९ ॥

    भावार्थ

    मनुष्य लोग यज्ञ आदि उत्तम कामों से वायु के शोधे विना प्राणियों को सुख नहीं हो सकता, इससे इसका अनुष्ठान नित्य करें ॥ ९ ॥

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    विषय

    देवों की प्राणापान की वृद्धि

    पदार्थ

    १. (अग्नीषोमा) = प्राण और अपान (सवेदसा) = समानरूप से धन - [वेदस्] - वाले हैं । प्राण ज्ञानरूप धनवाला है तो अपान स्वास्थ्यरूप धनवाला है । प्राण ज्ञानाग्नि को दीप्त करता है तो अपान जाठराग्नि को ठीक रखता है । प्राणसाधना से रेतस् की ऊर्ध्वगति होकर ज्ञानाग्नि की दीप्ति होती है और अपान से मलों का शोधन ठीक प्रकार होकर जाठराग्नि ठीक बनी रहती है । २. (सहूती) = प्राणापान की प्रार्थना साथ - साथ होती है । प्राण के साथ अपान जुड़ा है, अपान के साथ प्राण । ऐसे प्राणापानो ! (गिरः वनतम्) = हमारी स्तुतिवाणियों का आप सेवन करो । हम प्राणापान का स्तवन व गुणगान करें । उनके महत्त्व को समझकर उनकी साधना में प्रवृत्त हों । ३. हे प्राणापानो ! आप (देवत्रा) = देवों में (संबभूवथुः) = सम्भावित व प्रशस्त हो । शरीर में सब देवों का निवास हो । सूर्य चक्षु के रूप से रहते है तो अग्नि वाणी के रूप से, चन्द्रमा मन के रूप से, वायु प्राण के रूप से । इसी प्रकार शरीर में सब देव हैं । इनमें सर्वाधिक महत्त्व इन प्राणों का ही है । ४. (देवत्रा संबभूवथुः) = इस वाक्य का यह भी अर्थ है कि ये प्राणापान देववृत्तिवाले पुरुषों में फूलते - फलते हैं - बढ़ते हैं, आसुर वृत्तिवाले लोगों में ये क्षीण होने लगते हैं । इसीलिए देव 'अजर व अमर' कहलाते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ = हम देववृत्ति के बनें ताकि हमारी प्राणापान - शक्ति सदा बढ़ती रहे ।

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    विषय

    दीर्घायु प्राप्त करने का वैज्ञानिक उपाय ।

    भावार्थ

    ( अग्नीषोमा ) अग्नि और वायु जिस प्रकार एक समान रूप से चरु को ग्रहण करते हैं और समस्त पृथिवी, जल, आकाश, अन्तरिक्ष आदि पदार्थों पर समान रूप से व्याप जाते हैं उसी प्रकार ज्ञानवान् और ऐश्वर्यवान् मन्त्री और राजा, आचार्य और शिष्य दोनों ( सवेदसा ) समान ज्ञान और ऐश्वर्यवान् होकर ( सहूती ) एक दूसरे के समान, एक साथ ही वर्णन योग्य होकर ( गिरः वनतम् ) स्तुति वाणियों का सेवन करते हैं । वे ( देवत्रा ) विद्वान् पुरुषों के बीच में ( सं बभूवथुः ) एक साथ मिल कर ही शक्तिशाली और कार्यसम्पादन करने में समर्थ होते हैं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गोतमो रहूगणपुत्र ऋषिः ॥ अग्नीषोमौ देवते ॥ छन्दः–१ अनुष्टुप् । २ विराड् नुष्टुप् । ३ भुरिगुष्णिक् । ४ स्वराट् पंक्तिः । ५, ७ निचृत् त्रिष्टुप् । ६ विराट् त्रिष्टुप् । ८ स्वराट् त्रिष्टुप् । १२ त्रिष्टुप् । ९, १०, ११ गायत्री ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    माणसांनी यज्ञ इत्यादी उत्तम कामांनी वायू शुद्ध केल्याशिवाय प्राण्यांना सुख लाभत नाही. त्यामुळे त्याचे अनुष्ठान नित्य करावे. ॥ ९ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Agni and Soma, invoked and served together, sharing the offerings together in yajna, pray listen and grant our prayers, come and be with the noble and dedicated people at the yajna.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How are they (Agni and Soma) is taught further in the ninth Mantra.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    Fire and air which are accomplishers of the fruit of Yajna, which are endowed with the common oblation, which and are invoked or used together among enlightened persons in the acquisition of divine virtues serve the object of our speech.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    (सवेदसा) समानेन हुतद्रव्येण युक्तौ = Endowed with common oblation. (देवत्रा) देवेषु विद्वत्सु दिव्यगुणेषु वा = Among enlightened persons or divine virtues.

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Men should daily perform Yajna, because without purifying the air through the Yajna, beings can not attain happiness of health.

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