ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 93/ मन्त्र 11
अग्नी॑षोमावि॒मानि॑ नो यु॒वं ह॒व्या जु॑जोषतम्। आ या॑त॒मुप॑ न॒: सचा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअग्नी॑षोमौ । इ॒मानि॑ । नः॒ । यु॒वम् । ह॒व्या । जु॒जो॒ष॒त॒म् । आ । या॒त॒म् । उप॑ । नः॒ । सचा॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्नीषोमाविमानि नो युवं हव्या जुजोषतम्। आ यातमुप न: सचा ॥
स्वर रहित पद पाठअग्नीषोमौ। इमानि। नः। युवम्। हव्या। जुजोषतम्। आ। यातम्। उप। नः। सचा ॥ १.९३.११
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 93; मन्त्र » 11
अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 29; मन्त्र » 5
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अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 29; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तौ किं कुरुत इत्युपदिश्यते ।
अन्वयः
युवं यावग्नीषोमौ नोऽस्माकमिमानि हव्या जुजोषतमत्यन्तं सेवेते तौ सचा नोऽस्मानुपायातम् ॥ ११ ॥
पदार्थः
(अग्नीषोमौ) सर्वमूर्त्तद्रव्यसंयोगिनौ (इमानि) (नः) अस्माकम् (युवम्) यौ (हव्या) दातुमादातुं योग्यानि वस्तूनि (जुजोषतम्) अत्यन्तं सेवेते। अत्र जुषी प्रीतिसेवनयोरिति धातोः शब्विकरणस्य स्थाने श्लुः। बहुलं छन्दसीति गुणश्च। (आ) समन्तात् (यातम्) प्राप्नुतः (उप) (नः) अस्मान् (सचा) यज्ञविज्ञानयुक्तान् ॥ ११ ॥
भावार्थः
यदा यज्ञेन सुगन्धितादिद्रव्ययुक्तावग्निवायू सर्वान् पदार्थानुपागत्य स्पृशतस्तदा सर्वेषां पुष्टिर्जायते ॥ ११ ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वे क्या करते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
(युवम्) जो (अग्नीषोमौ) समस्त मूर्त्तिमान् पदार्थों का संयोग करनेहारे अग्नि और पवन (नः) हम लोगों के (इमानि) इन (हव्या) देने-लेने योग्य पदार्थों को (जुजोषतम्) बार-बार सेवन करते हैं वे (सचा) यज्ञ के विशेष विचार करनेवाले (नः) हम लोगों को (उप, आ, यातम्) अच्छे प्रकार मिलते हैं ॥ ११ ॥
भावार्थ
जब यज्ञ से सुगन्धित आदि द्रव्ययुक्त अग्नि वायु सब पदार्थ के समीप मिलकर उनमें लगते हैं, तब सबकी पुष्टि होती है ॥ ११ ॥
विषय
प्राणापान का मेल
पदार्थ
१. (अग्नीषोमौ) = हे प्राणापानो ! (युवम्) = आप (नः) हमारे (इमानि) = इन (हव्या) हव्य = पवित्र भोज्य पदार्थों को (जुजोषतम्) = प्रीतिपूर्वक सेवन करो । भोजन में ग्रहण किये गये पदार्थों का पाचन प्राणापान के द्वारा ही होता है । 'अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः । प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम्' [गीता १५/१४] - चतुर्विध अन्न को प्राणापान से युक्त वैश्वानर अग्नि ही पचाती है । प्राणापान की क्रिया ठीक होने पर ही भूख ठीक लगती है । २. आप दोनों (सचा) = मिलकर (नः उप) = हमारे समीप (आयातम्) = प्राप्त होओ । प्राणापान की क्रिया एक - दूसरे के लिए सहायक है । प्राण अपान के लिए और अपान प्राण के लिए सहायक होता है । गीता में प्राणापान - यज्ञ का उल्लेख इसी रूप में हुआ है कि प्राण की आहुति अपान में तथा अपान की आहुति प्राण में दी जाए ।
भावार्थ
भावार्थ = प्राणापान हमारे द्वारा खाये गये हव्य पदार्थों का ठीक से पाचन करें और हमें साथ - साथ प्राप्त हों ।
विषय
दीर्घायु प्राप्त करने का वैज्ञानिक उपाय ।
भावार्थ
हे ( अग्नीषोमा) पूर्वोक्त अग्नि और वायु या अग्नि और जल के समान उपकारक स्वभाव वाले विद्वान् पुरुषो ! ( युवम् ) तुम दोनों ( नः ) हमारे ( हव्या ) स्वीकार करने योग्य ( इमानि ) इन पदार्थों को ( जुजोषतम्) प्रेम से स्वीकार करो। और ( नः ) हमें ( सचा ) सदा एक साथ ( आयातम् ) प्राप्त होओ ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गोतमो रहूगणपुत्र ऋषिः ॥ अग्नीषोमौ देवते ॥ छन्दः–१ अनुष्टुप् । २ विराड् नुष्टुप् । ३ भुरिगुष्णिक् । ४ स्वराट् पंक्तिः । ५, ७ निचृत् त्रिष्टुप् । ६ विराट् त्रिष्टुप् । ८ स्वराट् त्रिष्टुप् । १२ त्रिष्टुप् । ९, १०, ११ गायत्री ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जेव्हा यज्ञाने सुगंधित द्रव्ययुक्त अग्नी, वायू सर्व पदार्थांच्या जवळ जातात तेव्हा ते सर्वांना पुष्ट करतात. ॥ ११ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Agni and Soma, fire and wind, both of you accept these holy materials of ours in scientific yajna, come and be our friends and benefactors.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What do they (Agni and Soma) do is taught further in the 11th Mantra.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
These Agni and Soma (fire and air) serve well all the objects that we take or give and they come to us are useful to us who know the science of Yajnas.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(हव्या) दातुम् मादातुं योग्यानि वस्तूनि = Articles that are worthy for giving and taking. (हु-दानादनयोः आदाने च ) (सचा) यज्ञविज्ञानयुक्तान् । = Knowers of the science of Yajna.
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
When fire and air purified by the Yajna and endowed with fragrant and other discase-destroying substances touch different objects, they give nourishment.
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