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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 89 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 89/ मन्त्र 11
    ऋषिः - रेणुः देवता - इन्द्र: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    प्राक्तुभ्य॒ इन्द्र॒: प्र वृ॒धो अह॑भ्य॒: प्रान्तरि॑क्षा॒त्प्र स॑मु॒द्रस्य॑ धा॒सेः । प्र वात॑स्य॒ प्रथ॑स॒: प्र ज्मो अन्ता॒त्प्र सिन्धु॑भ्यो रिरिचे॒ प्र क्षि॒तिभ्य॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । अ॒क्तुऽभ्यः॑ । इन्द्रः॑ । प्र । वृ॒धः । अह॑ऽभ्यः । प्र । अ॒न्तरि॑क्षात् । प्र । स॒मु॒द्रस्य॑ । धा॒सेः । प्र । वात॑स्य । प्रथ॑सः । प्र । ज्मः । अन्ता॑त् । प्र । सिन्धु॑ऽभ्यः । रि॒रि॒चे॒ । प्र । क्षि॒तिऽभ्यः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्राक्तुभ्य इन्द्र: प्र वृधो अहभ्य: प्रान्तरिक्षात्प्र समुद्रस्य धासेः । प्र वातस्य प्रथस: प्र ज्मो अन्तात्प्र सिन्धुभ्यो रिरिचे प्र क्षितिभ्य: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । अक्तुऽभ्यः । इन्द्रः । प्र । वृधः । अहऽभ्यः । प्र । अन्तरिक्षात् । प्र । समुद्रस्य । धासेः । प्र । वातस्य । प्रथसः । प्र । ज्मः । अन्तात् । प्र । सिन्धुऽभ्यः । रिरिचे । प्र । क्षितिऽभ्यः ॥ १०.८९.११

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 89; मन्त्र » 11
    अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 16; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (इन्द्रः) परमात्मा (अक्तुभ्यः प्र वृधः) रात्रियों से महान् (अहभ्यः प्र०) दिनों से महान् (अन्तरिक्षात् प्र०) अन्तरिक्ष से महान् (समुद्रस्य धासेः प्र०) समुद्र के धरातल से महान् (वातस्य प्रथसः प्र०) वायु के विस्तार से महान् (ज्मः-अन्तात् प्र०) पृथिवी की परिधि से महान् (सिन्धुभ्यः प्र रिरिचे) नदियों से प्रकृष्टता से अतिरिक्त (क्षितिभ्यः प्र०) मनुष्यों से अतिरिक्त है ॥११॥

    भावार्थ

    परमात्मा इन दिन रातों से महान् है, इनके प्रादुर्भूत होने से पूर्व वर्तमान है, अन्तरिक्ष से महान् है, समुद्र के धरातल या गहनरूप से महान् बड़ा गहनरूप होने से, वायु के विस्तार सञ्चार से भी महान्, पृथिवी के घेरे से महान्, नदियों से, मनुष्यों से अतिरिक्त है ॥११॥

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    विषय

    दिक्कालाघनवच्छिन्न प्रभु [ काल व देश से असीमित ]

    पदार्थ

    [१] (इन्द्रः) = वे परमैश्वर्यशाली प्रभु (अक्तुभ्यः) = रात्रियों से (प्रवृधः) = अत्यन्त बढ़े हुए हैं और (अहभ्यः) = दिनों से भी (प्र) [ वृधः ] = बढ़े हुए हैं। ये सनातन काल से चले आ रहे दिन और रात प्रभु को सीमित नहीं कर पाते। [२] काल की तरह देश भी प्रभु को सीमित करने में समर्थ नहीं । अन्तरिक्षात् (प्र) [ वृधः ] = वे प्रभु अन्तरिक्ष से बढ़े हुए हैं । अन्तरिक्ष उन्हें अपने में सीमित नहीं कर सकता। (समुद्रस्य धासे:) = समुद्र के धारक स्थान से भी (प्र) = वे प्रभु बढ़े हुए हैं । (वातस्य प्रथसः) = वायु के विस्तार से भी वे (प्र) [ वृधः ] = बढ़े हुए हैं। (ज्मः अन्तात्) = पृथिवी के अन्तों से भी (प्र) [ वृधः ] = वे प्रभु बढ़े हुए हैं। (सिन्धुभ्यः) = इन बहनेवाली नदियों से (प्र) = वे बढ़े हुए हैं और (क्षितिभ्यः) = इन लोकों में निवास करनेवाली सब प्रजाओं से भी वे (प्र) [ वृधः ] = बढ़े हुए हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ - यह काल व देश प्रभु को सीमित नहीं कर पाते। वे दिक्काल से अवच्छिन्न नहीं हैं ।

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    विषय

    सबसे महान् प्रभु।

    भावार्थ

    वह (इन्द्रः अक्तुभ्यः प्रवृधः) परमेश्वर रात्रियों से भी बड़ा हुआ है, वह (अहभ्यः प्रवृधः) दिनों से भी बहुत बड़ा है, (अन्तरिक्षात् प्र) वह अन्तरिक्ष से भी बड़ा है, (समुद्रस्य धासेः प्र) समुद्र को अपने में धारण करने वाले विशाल स्थान से भी अधिक बड़ा है। (वातस्य प्रथसः प्र) वायु के विस्तृत स्थान से भी अधिक बड़ा है, वह (ज्मः अन्तात् प्र) भूमि के अन्त, पर्यन्त भाग से भी बड़ा है, वह (सिन्धुभ्यः प्र रिरिचे) नदियों से भी महान् और (क्षितिभ्यः प्र रिरिचे) मनुष्यों, जीवों से भी कहीं महान् है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषि रेणुः॥ देवता—१–४, ६–१८ इन्द्रः। ५ इन्द्रासोमौ॥ छन्द:- १, ४, ६, ७, ११, १२, १५, १८ त्रिष्टुप्। २ आर्ची त्रिष्टुप्। ३, ५, ९, १०, १४, १६, १७ निचृत् त्रिष्टुप्। ८ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। १३ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्॥ अष्टादशर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (इन्द्रः) परमात्मा (अक्तुभ्यः प्र वृधः) रात्रिभ्यः “अक्तुः-रात्रिनाम” [निघं० १।७] महानस्ति यतो रात्रयस्तं न पारयन्ति (अहभ्यः प्र) दिनेभ्यो महान् (अन्तरिक्षात्-प्र) अन्तरिक्षादपि महान् (समुद्रस्य धासेः) समुद्रस्य धरातलात् खलु महान् (वातस्य प्रथसः प्र) वातस्य प्रथनाद् विस्तारादपि महान् (ज्मः-अन्तात् प्र०) पृथिव्याः “ज्मा पृथिवीनाम” [निघं० १।१] पर्यन्तात् परिधेर्महान् (सिन्धुभ्यः प्र रिरिचे) नदीभ्यः प्रकृष्टतयाऽतिरिक्तः (क्षितिभ्यः प्र) मनुष्येभ्यः प्रातिरिक्तोऽस्ति ॥११॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra is far greater than the nights of existence, greater than days, space, and the bounds of space. He transcends the expansive currents of energy, the bounds of the universe, the flowing flux of existence, and all definitions of the flux in form.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा या दिवस-रात्रीपेक्षा महान आहे. ते उत्पन्न होण्यापूर्वी वर्तमान आहे. अंतरिक्षापेक्षा महान आहे. समुद्रतळाहून महान, वायूच्या विस्तार संचाराहून महान, पृथ्वीच्या घेऱ्यापेक्षा महान, नद्यांपेक्षा व माणसांपेक्षा महान आहे. ॥११॥

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