ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 89/ मन्त्र 13
अन्वह॒ मासा॒ अन्विद्वना॒न्यन्वोष॑धी॒रनु॒ पर्व॑तासः । अन्विन्द्रं॒ रोद॑सी वावशा॒ने अन्वापो॑ अजिहत॒ जाय॑मानम् ॥
स्वर सहित पद पाठअनु॑ । अह॑ । मासाः॑ । अनु॑ । इत् । वना॑नि । अनु॑ । ओष॑धीः । अनु॑ । पर्व॑तासः । अनु॑ । इन्द्र॑म् । रोद॑सी॒ इति॑ । वा॒व॒शा॒ने इति॑ । अनु॑ । आपः॑ । अ॒जि॒ह॒त॒ । जाय॑मानम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अन्वह मासा अन्विद्वनान्यन्वोषधीरनु पर्वतासः । अन्विन्द्रं रोदसी वावशाने अन्वापो अजिहत जायमानम् ॥
स्वर रहित पद पाठअनु । अह । मासाः । अनु । इत् । वनानि । अनु । ओषधीः । अनु । पर्वतासः । अनु । इन्द्रम् । रोदसी इति । वावशाने इति । अनु । आपः । अजिहत । जायमानम् ॥ १०.८९.१३
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 89; मन्त्र » 13
अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 16; मन्त्र » 3
Acknowledgment
अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 16; मन्त्र » 3
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(मासाः-अह) चैत्र आदि मास सचमुच (इन्द्रम्-अनु-अजिहत) परमात्मा के अनुशासन में गति करते हैं-होते रहते हैं। (वनानि-इत्-अनु) वन जङ्गल भी उसके अनुशासन में स्थित हैं (ओषधीः-अनु) ओषधियाँ भी उसके अधीन उत्पन्न होती पकती हैं (पर्वतासः-अनु) पर्वत भी उसके अनुशासन में स्थिर हैं (वावशाने रोदसी) कमनीय द्युलोक पृथिवीलोक (इन्द्रम्-अनु) परमात्मा के अनुशासन में प्राप्त होते हैं (जायमानम्-अनु) प्रसिद्धि को प्राप्त हुए परमात्मा को लक्ष्य करके (आपः-अजिहत) जलप्रवाह बहते हैं ॥१३॥
भावार्थ
परमात्मा के अधीन मास तथा जलप्रवाह चलते हैं। परमात्मा के शासन में द्युलोक, पृथिवीलोक, पर्वत, वन और ओषधियाँ वर्तमान रहती हैं ॥१३॥
विषय
प्रभु की शक्ति से शक्ति सम्पन्न होकर
पदार्थ
[१] (अह) = निश्चय से (मासाः) = ये संवत्सर के बारह महीने (इन्द्रं अनु अजिहत) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु को अनुकूलता में गति करते हैं । सम्पूर्ण कालचक्र प्रभु की शक्ति से प्रेरित हो रहा है । [२] (इत्) = निश्चय से (वनानि) = ये सब वन उस प्रभु के (अनु) = पीछे गति कर रहे हैं । (ओषधीः अनु) = सब ओषधियाँ उसके ही पीछे गति कर रही है । (पर्वतासः अनु) = ये पर्वत भी उस प्रभु के पीछे गतिवाले हैं । [३] (वावशाने) = प्राणिमात्र का हित चाहनेवाले (रोदसी) = द्यावापृथिवी (इन्द्रं अनु) = उस प्रभु के पीछे गतिवाले होते हैं । और [४] (जायमानम्) = कण-कण में अपनी महिमा के रूप में प्रादुर्भूत हुए हुए उस प्रभु को (आपः) = सब प्रजाएँ (अनु अजिहत) = अनुगमन करती हैं।
भावार्थ
भावार्थ- काल- जड़ जगत् व चेतन प्राणी सब प्रभु की शक्ति से शक्ति सम्पन्न होकर प्रभु का अनुगमन करते हैं ।
विषय
सूर्य के समान तेजस्वी की स्थिति।
भावार्थ
(इन्द्रम् अनु) इन्द्र अर्थात् जल और प्रकाश के देने वाले सूर्य के अनुकूल (मासाः अजिहत) मास भी गति करते हैं, अर्थात् चन्द्र की नाना कलाओं और उनसे बने मास विभाग सूर्य के अनुकूल बनते हैं अर्थात् चन्द्र के जितने भाग पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं तदनुसार उसकी कलाएं दीखती है। (वनानि इत् इन्द्रम् अजिहत) वन, तेज, आकाश, और जलों की वृष्टि आदि भी सूर्य के अनुसार ही होती है। और (ओषधीः इन्द्रम् अनु अजिहत) ओषधियां भी सूर्य का अनुसरण करती हैं। (पर्वतासः अनु अजिहत) मेघ भी सूर्य का अनुसरण करते हैं। (वावशाने रोदसी) नाना कान्तियों से चमकने वाले, आकाश और भूमि दोनों भी (इन्द्रम् अनु अजिहताम्) सूर्य का अनुगमन करती हैं। (जायमानम् इन्द्रम् अनु आपः अजिहत) प्रकट होते हुए सूर्य के अनुसार ही ‘आपः’-प्राणगण भी अनुसरण कहते हैं। इसी प्रकार तेजस्वी के पीछे सब कोई चलते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषि रेणुः॥ देवता—१–४, ६–१८ इन्द्रः। ५ इन्द्रासोमौ॥ छन्द:- १, ४, ६, ७, ११, १२, १५, १८ त्रिष्टुप्। २ आर्ची त्रिष्टुप्। ३, ५, ९, १०, १४, १६, १७ निचृत् त्रिष्टुप्। ८ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। १३ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्॥ अष्टादशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(मासाः-अह-इन्द्रम्-अनु-अजिहत) मासाश्चैत्रादयः खलु परमात्मानमनु परमात्मशासनमनुसृत्य गच्छन्ति प्रवर्त्तन्ते (वनानि-इत्-अनु) वनानि खल्वपि परमात्मशासनमनुलक्ष्य तिष्ठन्ति (ओषधीः-अनु) ओषधयोऽपि तस्यानुकम्पया प्राप्ता भवन्ति (पर्वतासः-अनु) पर्वताश्चापि तं परमात्मानमनुसृत्य स्थिताः सन्ति (वावशाने रोदसी इन्द्रम्-अनु) कमनीये द्यावापृथिव्यौ परमात्मानमनुदिश्य प्राप्ते स्तः (जायमानम्-अनु-आपः-अजिहत) सर्वत्र प्रसिद्धिं गतं परमात्मानमुलक्ष्य जलप्रवाहाः प्रवहन्ति ॥१३॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Indeed, days and months, herbs and forests, clouds and mountains, shining skies and earth and the oceans and vapours of space, all move and proceed in accordance with Indra as it emerges into manifestation.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्म्याच्या अधीन मास (महिने) व जलप्रवाह वाहतात. परमात्म्याच्या शासनात द्युलोक, पृथ्वीलोक, पर्वत, वन व औषधी वर्तमान आहेत. ॥१३॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal