ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 22/ मन्त्र 11
यदध्रि॑गावो॒ अध्रि॑गू इ॒दा चि॒दह्नो॑ अ॒श्विना॒ हवा॑महे । व॒यं गी॒र्भिर्वि॑प॒न्यव॑: ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । अध्रि॑ऽगावः । अध्रि॑गू॒ इत्यध्रि॑ऽगू । इ॒दा । चि॒त् । अह्नः॑ । अ॒श्विना॑ । हवा॑महे । व॒यम् । गीः॒ऽभिः । वि॒प॒न्यवः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यदध्रिगावो अध्रिगू इदा चिदह्नो अश्विना हवामहे । वयं गीर्भिर्विपन्यव: ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । अध्रिऽगावः । अध्रिगू इत्यध्रिऽगू । इदा । चित् । अह्नः । अश्विना । हवामहे । वयम् । गीःऽभिः । विपन्यवः ॥ ८.२२.११
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 22; मन्त्र » 11
अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 7; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 7; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(अध्रिगू, अश्विना) हे अधृतगमनौ सेनाधीशन्यायाधीशौ ! (यत्) यतः भवदुपायैः (अध्रिगावः) शीघ्रगामिनः सन्तः (विपन्यवः) स्तुतिं कर्तारः (वयम्) वयं याज्ञिकाः (अह्नः, इदा, चित्) दिवसस्य प्रारम्भे हि (गीर्भिः) स्तुतिवाग्भिः (हवामहे) आह्वयामः ॥११॥
विषयः
पुनस्तदनुवर्तते ।
पदार्थः
हे अध्रिगू=आत्मानं धर्तुं पोषयितुमसमर्था अध्रयो निरालम्बास्तान् प्रति यौ गच्छतस्तौ । अध्रिगू=असमर्थरक्षकौ । हे अश्विना=अश्विनौ राजानौ ! यद्=यद्यपि । वयम् । अध्रिगावः=अध्रयोऽसमर्था गाव इन्द्रियाणि येषां ते अध्रिगावः शिथिलेन्द्रियास्तथापि । युवयोः । विपन्यवः=स्तुतिकारकाः । अतो वयम् । गीर्भिर्वचनैः । अह्नः=दिवसस्य । इदाचित्= इदानीमेव=प्रातःकाले एव । युवाम् । हवामहे=आह्वयामः ॥११ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(अध्रिगू, अश्विना) हे शीघ्रगामी सेनाधीश वा न्यायाधीश (यत्) जो आपके प्रयत्न से (अध्रिग्रावः) शीघ्रगतिवाले हृष्ट-पुष्ट होकर (विपन्यवः) आपकी स्तुति करते हुए (वयम्) हम सब याज्ञिक (अह्नः, इदा, चित्) दिन के प्रथमभाग में अर्थात् सबसे पहिले ही (गीर्भिः) अनेक प्रार्थना-शब्दों से आपका (हवामहे) आह्वान करें ॥११॥
भावार्थ
अनेक प्रकार की ओषधियों और अपने उद्योग से सम्पूर्ण प्रजाजनों को हृष्ट-पुष्ट तथा कार्य्य करने में शीघ्रगामी बनानेवाले न्यायाधीश तथा सेनाधीश ! हम सब याज्ञिक पुरुष स्तुतियों द्वारा आपको आह्वान करते हैं, आप यज्ञसदन में आकर हमारे कष्टों को निवृत्त करते हुए यज्ञ के पूर्ण होने में योग दें ॥११॥
विषय
पुनः वही विषय आ रहा है ।
पदार्थ
(अध्रिगू) हे असमर्थरक्षक (अश्विना) राजन् तथा मन्त्रिन् ! (यद्) यद्यपि हम (अध्रिगावः) शिथिलेन्द्रिय हैं, तथापि (विपन्यवः) आपके गुणों के गायक हैं, इस हेतु (वयम्) हम (गीर्भिः) वचनों से (अह्नः) दिन के (इदा+चित्) इसी समय प्रातःकाल आपको (हवामहे) पुकारते हैं, आप हम लोगों की रक्षा के लिये यहाँ आवें ॥११ ॥
भावार्थ
जब-२ राजवर्ग प्रजाहित कार्य्य करें, तब-२ वह प्रजा द्वारा अभिनन्दनीय हैं ॥११ ॥
विषय
अन्यान्य नाना कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे ( अध्रि-गू) इन्द्रियों पर अधिकार करने वाले ! हे (अश्विना) अश्ववत् वेगवान् मन पर वश करने वाले जनो ! ( यत् ) जब हम ( अध्रि-गावः ) वाणियों पर वशी ( विपन्यवः ) स्तुतिकर्त्ता हो ( अन्हः चित् इदा ) दिन के उसी उत्तम समय में आप दोनों की ( गीर्भि: हवामहे ) वाणियों से स्तुति करें, आप दोनों को आंदर से बुलावें। उत्तम वाणियों से आप दोनों को उपदेश करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
निचृत पंक्ति:। ४, १० सतः पंक्तिः। २४ भुरिक पंक्ति:। ८ अनुष्टुप्। ९,११, १७ उष्णिक्। १३ निचुडुष्णिक्। १५ पादनिचृदुष्णिक्। १२ निचृत् त्रिष्टुप्॥ अष्टादशर्चं सूक्तम्॥
विषय
वयं गीर्भिः विपन्यवः
पदार्थ
[१] (यद्) = जब (अध्रिगावः) = अधृतज्ञान की वाणियोंवाली, न रुकी हुई ज्ञान की वाणियोंवाले, नियमित रूप से स्वाध्याय में प्रवृत्त हम (अह्नः) = दिन के (इदा चित्) = इस समय (अध्रिगू) = अधृतगमनवाले, संग्राम में न रुकी हुई गतिवाले (अश्विना) = प्राणापानों को (हवामहे) = पुकारते हैं। अर्थात् स्वाध्याय आदि में विघातक शत्रुओं के काम-क्रोध-लोभ आदि के विजयार्थ हम प्राणसाधना में प्रवृत्त होते हैं। [२] इस प्रकार प्राणसाधना में प्रवृत्त हुए हुए (वयम्) = हम (गीभिः) = इन ज्ञान वाणियों के द्वारा (विपन्यवः) = विशिष्ट रूप से प्रभु-स्तवन करनेवाले होते हैं। वस्तुतः प्रभु का सच्चा स्तवन यही है कि हम ज्ञान की वाणियों का अध्ययन करें और उनके निर्देशानुसार अपना व्यवहार करें।
भावार्थ
भावार्थ- हम नियमित रूप से स्वाध्यायशील हों। स्वाध्याय विरोधी शत्रुओं को प्राणसाधना द्वारा दूर करें। ज्ञान की वाणियों द्वारा ही प्रभु का स्तवन करें, इनके अनुसार अपना व्यवहार करें।
इंग्लिश (1)
Meaning
We men of the mantra in need, celebrants of the irresistible Ashvins, powers of wind and electric energy, ministrants of succour and security, invoke them with voices of praise at this time of the day to come and help us.
मराठी (1)
भावार्थ
जेव्हा जेव्हा राजवर्ग प्रजेच्या हितासाठी कार्य करतो तेव्हा तेव्हा प्रजा त्यांचे अभिनंदन करते. ॥११॥
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