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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 22 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 22/ मन्त्र 16
    ऋषिः - सोभरिः काण्वः देवता - अश्विनौ छन्दः - निचृत्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    मनो॑जवसा वृषणा मदच्युता मक्षुंग॒माभि॑रू॒तिभि॑: । आ॒रात्ता॑च्चिद्भूतम॒स्मे अव॑से पू॒र्वीभि॑: पुरुभोजसा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मनः॑ऽजवसा । वृ॒ष॒णा॒ । म॒द॒ऽच्यु॒ता॒ । म॒क्षु॒म्ऽग॒माभिः॑ । ऊ॒तिऽभिः॑ । आ॒रात्ता॑त् । चि॒त् । भू॒त॒म् । अ॒स्मे इति॑ । अव॑से । पू॒र्वीऽभिः॑ । पु॒रु॒ऽभो॒ज॒सा॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मनोजवसा वृषणा मदच्युता मक्षुंगमाभिरूतिभि: । आरात्ताच्चिद्भूतमस्मे अवसे पूर्वीभि: पुरुभोजसा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मनःऽजवसा । वृषणा । मदऽच्युता । मक्षुम्ऽगमाभिः । ऊतिऽभिः । आरात्तात् । चित् । भूतम् । अस्मे इति । अवसे । पूर्वीऽभिः । पुरुऽभोजसा ॥ ८.२२.१६

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 22; मन्त्र » 16
    अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 8; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (मनोजवसा) हे मनोवेगौ (वृषणा) सुखस्य वर्षकौ (मदच्युता) शत्रुमदच्यावकौ (पुरुभोजसा) बहूनां पालकौ ! युवाम् (मक्षुंगमाभिः) शीघ्रगामिनीभिः (पूर्वीभिः) अनेकाभिः (ऊतिभिः) रक्षाभिः (अवसे) अस्मद्रक्षणाय (अस्मे) अस्माकम् (आरात्तात्, चित्) समीप एव (भूतम्) भवतम् ॥१६॥

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    विषयः

    पुनस्तदनुवर्तते ।

    पदार्थः

    हे मनोजवसा=मनोवेगौ ! हे वृषणा=धनवर्षितारौ । हे मदच्युता=आनन्दवर्षितारौ । हे पुरुभोजसा=बहूनां भौजयितारौ=पालयितारौ । राजानौ ! पूर्वीभिः=पुरातनीभिः । मक्षुंगमाभिः=शीघ्रं गामिनीभिः । ऊतिभिः=रक्षाभिः । अस्मे=अस्माकम् । अवसे=रक्षणाय । आरात्तात् चित्= समीपमेव । भूतम्=भवतम् ॥१६ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (मनोजवसा) हे मनसदृश गतिवाले (वृषणा) सुख के वर्षक (मदच्युता) शत्रुओं के गर्व हरनेवाले (पुरुभोजसा) बहुतों के पालक ! आप (मक्षुंगमाभिः) शीघ्रगतिवाली (पूर्वीभिः) अनेक (ऊतिभिः) रक्षाओं सहित (अवसे) हमारी रक्षा के लिये (अस्मे) हमारे (आरात्तात्, चित्) समीप ही (भूतम्) बने रहें ॥१६॥

    भावार्थ

    हे शीघ्रगामी नेताओ ! आप सुख देनेवाले, शत्रुओं के गर्व को चूर करनेवाले तथा प्रजाओं का पालन करनेवाले हैं। आप हमारा सदैव स्मरण रखें, किसी देश काल में भी हमसे दृष्टि न उठावें, ताकि हम सुरक्षित हुए प्रजाहितकारक यज्ञ में निर्विघ्न साफल्य प्राप्त कर सकें ॥१६॥

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    विषय

    पुनः वही विषय आ रहा है ।

    पदार्थ

    (मनोजवसा) हे मनोवेग (वृषणा) हे धनादिवर्षिता (मदच्युता) हे आनन्दप्रद (पुरुभोजसा) हे बहुतों को भोजन देनेवाले या पालन करनेवाले राजन् तथा अमात्य आप दोनों ! (मक्षुंगमाभिः) शीघ्रगमन करनेवाली (पूर्वीभिः) सनातनी (ऊतिभिः) रक्षाओं से (अस्मे) हमारी (अवसे) रक्षा के लिये (आरात्तात्+चित्) समीप में ही (भूतम्) होवें । आप हम लोगों के समीप में ही सदा विराजमान रहें ॥१६ ॥

    भावार्थ

    इससे यह दिखलाते हैं कि राज्य की ओर से प्रजारक्षण का प्रबन्ध प्रतिक्षण रहना उचित है ॥१६ ॥

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    विषय

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    भावार्थ

    हे ( मनो-जवसा ) ज्ञानपूर्वक एवं मन के वेग से जाने वाले, ( वृषणा ) बलवान् एवं वीर्यसेचन में समर्थ, पूर्ण युवा, ( मदच्युता ) हर्ष से जाने वाले, वा शत्रुओं के मद को दूर करने में समर्थ, और ( पुरु-भोजसा ) बहुतों की रक्षा करने वाले आप दोनों ( अस्मे अवसे ) हमारी रक्षा के लिये, ( पूर्वीभिः ) पूर्व विद्यमान, बल से पूर्ण ( मक्षुंगमाभिः ) अति वेग से जाने वाली ( ऊतिभिः ) रक्षाकारिणी सेनाओं सहित ( आरात्तात् चित् ) हमारे अति समीप और दूर भी ( भूतम् ) होवो।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सोभरिः काण्व ऋषिः॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः—१ विराङ् बृहती। ३, ४ निचृद् बृहती। ७ बृहती पथ्या। १२ विराट् पंक्ति:। ६, १६, १८ निचृत पंक्ति:। ४, १० सतः पंक्तिः। २४ भुरिक पंक्ति:। ८ अनुष्टुप्। ९,११, १७ उष्णिक्। १३ निचुडुष्णिक्। १५ पादनिचृदुष्णिक्। १२ निचृत् त्रिष्टुप्॥ अष्टादशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    वृषणा-मदच्युता [अश्विना]

    पदार्थ

    [१] हे प्राणापानो! आप (मनोजवसा) = मन के समान वेगवाले हो, मन के समान शक्तिशाली हो । (वृषणा) = हमारे शरीरों में शक्ति का सेचन करनेवाले हो । (मदच्युता) = अहंकाररूप शत्रु का विनाश करनेवाले हो, (पुरुभोजसा) = खूब ही पालन व पोषण करनेवाले हो । [२] आप (ऊतिभिः) = अपने रक्षणों के द्वारा (अस्मे अवसे) = हमारे रक्षण के लिये (आरात्तात् चित्) = समीप ही (भूतम्) = होइये । उन रक्षणों के साथ हमारे समीप होइये जो (मभुंगमाभिः) = शीघ्र गतिवाले हैं तथा (पूर्वीभिः) = हमारा पालन व पूरण करनेवाले हैं अथवा सर्वोत्कृष्ट हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणापान अतिशयित शक्तिवाले हैं। ये हमें शक्ति सम्पन्न बनाते हैं, परन्तु अहंकार वाला नहीं होने देते। इनके रक्षण हमें गतिशील व न्यूनताओं से रहित [पूर्वी] बनाते हैं।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Ashvins, complementary harbingers of showers of joy, moving at the speed of mind to provide sustenance and pleasures of life for all, come and be at the closest to us for our protection and progress by instant modes of defence and security as you have ever been since the earliest times of creation.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    यात हे दर्शविलेले आहे की, राज्याकडून प्रजारक्षणाचा प्रबंध प्रतिक्षण असणे आवश्यक आहे. ॥१६॥

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