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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 22 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 22/ मन्त्र 13
    ऋषिः - सोभरिः काण्वः देवता - अश्विनौ छन्दः - निचृदुष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    तावि॒दा चि॒दहा॑नां॒ ताव॒श्विना॒ वन्द॑मान॒ उप॑ ब्रुवे । ता उ॒ नमो॑भिरीमहे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तौ । इ॒दा । चि॒त् । अहा॑नाम् । तौ । अ॒श्विना॑ । वन्द॑मानः । उप॑ । ब्रु॒वे॒ । तौ । ऊँ॒ इति॑ । नमः॑ऽभिः । ई॒म॒हे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ताविदा चिदहानां तावश्विना वन्दमान उप ब्रुवे । ता उ नमोभिरीमहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तौ । इदा । चित् । अहानाम् । तौ । अश्विना । वन्दमानः । उप । ब्रुवे । तौ । ऊँ इति । नमःऽभिः । ईमहे ॥ ८.२२.१३

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 22; मन्त्र » 13
    अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 7; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (तौ) तौ सेनाधीशन्यायाधीशौ (अहानाम्, इदा, चित्) दिनानां प्रारम्भे एव (तौ, अश्विना) तौ हि व्यापकगतौ (वन्दमानः) अभिवादयमानः (उपब्रुवे) उपस्तौमि (तौ, उ) तौ हि (नमोभिः) हविर्दानैः (ईमहे) प्रार्थयामहे ॥१३॥

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    विषयः

    राजवर्गं प्रति प्रजाकर्त्तव्यमाह ।

    पदार्थः

    अहानाम्=दिवसानाम् । इदाचित्=इदानीमेव=प्रातःकाल एव । तौ=तावेव । अश्विना=अश्विनौ= अश्वयुक्तौ राजानौ । वन्दमानः=अभिवादनं कुर्वन् । उपब्रुवे=समीपं गत्वा कथयामि । वयं सर्वे । ता+ऊ=तावेव अश्विनौ । नमोभिर्नमस्कारैः । ईमहे=प्रार्थयामहे ॥१३ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (तौ) उन सेनापति न्यायाधीश को (अहानाम्, इदा, चित्) दिन के प्रारम्भ में (तौ, अश्विना) उन्हीं व्यापक गतिवालों को (वन्दमानः) अभिवादन करते हुए (उपब्रुवे) स्तुति करते हैं (तौ, उ) उन्हीं को (नमोभिः) हविर्भाग देकर (ईमहे) प्रार्थना करते हैं ॥१३॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र का भाव यह है कि उपर्युक्त गुणसम्पन्न न्यायाधीश तथा सेनाधीश अभिवादन करने योग्य तथा हविर्भाग भेंट करके प्रार्थना करने योग्य हैं, क्योंकि वे सब प्रकार से प्रजाओं के हितचिन्तक और प्रजाओं को सुखपूर्ण करने में सदा यत्नवान् रहते हैं, इसलिये वे सब प्रकार से पूजा=सत्कारयोग्य हैं ॥१३॥

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    विषय

    राजवर्ग के प्रति प्रजा का कर्त्तव्य कहते हैं ।

    पदार्थ

    (अहानाम्) दिनों के (इदाचित्) इसी समय प्रातःकाल ही मैं (तौ) उन ही (अश्विना) राजा तथा न्यायाधीशादि को (वन्दमानः) नमस्कार करता हुआ (उपब्रुवे) समीप में जाकर निवेदन करता हूँ और हम सब मिलकर (ता+ऊ) उनसे ही (नमोभिः) प्रार्थना द्वारा (ईमहे) याचना करते हैं ॥१३ ॥

    भावार्थ

    राज्यसम्बन्धी जो त्रुटियाँ हों, उनसे राजा को परिचित करवाना चाहिये ॥१३ ॥

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    विषय

    अन्यान्य नाना कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    ( अहानां इदा चित् ) दिनों के वर्त्तमान काल में, सब दिनों, ( तौ ) उन दोनों की मैं स्तुति करूं और ( तौ अश्विनौ ) उन दोनों जितेन्द्रिय पुरुषों को ( वन्दमानः ) नमस्कार करता हुआ ( उप ब्रुवे ) उनके समीप जाकर वचन कहूं। ( नमोभिः ) हम लोग आदर युक्त वचनों से ( ता उ ईमहे ) उनसे प्रार्थना करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    निचृत पंक्ति:। ४, १० सतः पंक्तिः। २४ भुरिक पंक्ति:। ८ अनुष्टुप्। ९,११, १७ उष्णिक्। १३ निचुडुष्णिक्। १५ पादनिचृदुष्णिक्। १२ निचृत् त्रिष्टुप्॥ अष्टादशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    प्राणापान का स्तवन व इनके लिये याचना

    पदार्थ

    [१] (अहानाम्) = दिनों के (इदा चित्) = इस समय में (तौ अश्विना) = उन शत्रुओं के पराभव करनेवाले [पुरुभूतमा] प्राणापान को (उपब्रुवे) = वर्णित करता हूँ। (वन्दमानः) = प्रभु वन्दना करता हुआ (तौ) = उनसे ही याचना करता हूँ। [२] (उ) = निश्चय से (नमोभिः) = प्रभु के प्रति नमन के साथ (तौ) = उन प्राणापान को ही माँगता हूँ। प्रभु से यही याचना करता हूँ कि मेरी प्राणापान शक्ति सदा वृद्धि को प्राप्त हो। इन प्राणापान ने ही तो मेरे 'शरीर, मन व बुद्धि' को अनातुर बनाना है।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम प्राणापान के गुणों का स्तवन करें। वन्दन व नमन करते हुए प्रभु से प्राणापान की ही याचना करें।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    At this time of the day every morning, saluting and celebrating the twin powers of human and natural complementarity, the Ashvins, I speak to them intimately, and this is how with homage and prayer we invoke them to come and bless.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    राज्यात ज्या कमतरता असतील त्या राजाला अवगत करावाव्यात ॥१३॥

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