ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 22/ मन्त्र 9
आ हि रु॒हत॑मश्विना॒ रथे॒ कोशे॑ हिर॒ण्यये॑ वृषण्वसू । यु॒ञ्जाथां॒ पीव॑री॒रिष॑: ॥
स्वर सहित पद पाठआ । हि । रु॒हत॑म् । अ॒श्वि॒ना॒ । रथे॑ । कोशे॑ । हि॒र॒ण्यये॑ । वृ॒ष॒ण्व॒सू॒ इति॑ वृषण्ऽवसू । यु॒ञ्जाथा॑म् । पीव॑रीः । इषः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ हि रुहतमश्विना रथे कोशे हिरण्यये वृषण्वसू । युञ्जाथां पीवरीरिष: ॥
स्वर रहित पद पाठआ । हि । रुहतम् । अश्विना । रथे । कोशे । हिरण्यये । वृषण्वसू इति वृषण्ऽवसू । युञ्जाथाम् । पीवरीः । इषः ॥ ८.२२.९
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 22; मन्त्र » 9
अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 6; मन्त्र » 4
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अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 6; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(वृषण्वसू) हे धनानां वृष्टिकर्त्तारौ (अश्विना) व्यापकगती ! (हिरण्यये) सौवर्णे (कोशे, रथे) दिव्ये रथे (आरुहतम्, हि) आरूढौ भवतं हि (पीवरीः) समृद्धाः (इषः) सर्वेषां कामनाः (युञ्जाथाम्) सर्वप्रजाभिः योजयेथाम् ॥९॥
विषयः
राजकर्तव्यमाह ।
पदार्थः
हे वृषण्वसू=वर्षणधनौ=धनानां वर्षितारौ धनेश्वरौ अश्विना=राजानौ ! युवां हि खलु । कोशे=द्रव्यादिकोशयुक्ते । हिरण्यये=सुवर्णनिर्मिते । रथे=रमणीयविमाने । आरुहतम् । पश्चात् । पीवरीः=स्थूलाः=पालयित्रीर्बह्वीः । इषः=इष्यमाणाः सम्पत्तीः । युञ्जाथाम्=अस्मासु स्थापयतम् ॥९ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(वृषण्वसू) हे धनों की वृष्टि करनेवाले (अश्विना) व्यापक गतिवाले सेनाधीश न्यायाधीश ! (हिरण्यये) आप सुवर्णनिर्मित (कोशे, रथे) दिव्य रथ में (हि, आरुहतम्) निश्चय आरोहण करें और सब प्रजाओं को (पीवरीः) समृद्ध (इषः) सब कामनाओं से (युञ्जाथाम्) युक्त करें ॥९॥
भावार्थ
हे सम्पूर्ण धनों के दाता न्यायाधीश तथा सेनाधीश ! आपकी शक्तिएँ सर्वत्र फैली हुई प्रजाओं में सुप्रबन्ध कर रही हैं। आप अपने दिव्य यानों में आरूढ़ होकर प्रजाओं को समृद्धियुक्त करते हुए उनकी शुभ कामनाओं को पूर्ण करें, ताकि सब प्रजाजन वैदिककर्मों से विचलित न हों अर्थात् वैदिककर्म करते हुए सदैव परमात्मा के स्तवन करने में प्रवृत्त रहें ॥९॥
विषय
राज-कर्त्तव्य कहते हैं ।
पदार्थ
(वृषण्वसू) हे धनवर्षिता महाधनेश्वर (अश्विना) अश्वयुक्त राजा और अमात्य ! आप दोनों (कोशे) द्रव्यादि कोशयुक्त (हिरण्यये) सुवर्णरचित (रथे) रमणीय रथ वा विमान पर (आ+रुहतम्+हि) अवश्य बैठिये और बैठकर (पीवरीः) बहुत (इषः) इष्यमाण अन्नादिक सम्पत्तियों को (युञ्जाथाम्) हम लोगों में स्थापित कीजिये ॥९ ॥
भावार्थ
राजा और राज्यकर्मचारी रथादि यान पर चढ़ प्रजाओं के कल्याण के लिये इधर-उधर सदा भ्रमण करते हुए उनके सुख बढ़ावें ॥९ ॥
विषय
वेगवान् यान आदि साधन सम्पन्नों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे ( अश्विना ) वेगवान् साधनों के स्वामी जनो ! हे ( वृषण्वसू ) हे बलवान् पुरुषों के अधीन जनो ! या बलशाली पुरुषों के बीच बसने वालो ! आप दोनों ( रथे ) रथ के समान सुखजनक ( हिरण्यये ) सुवर्ण से पूर्ण ( कोशे ) कोश, खजाने पर ( आरुहतम् ) स्थिर होवो । और ( पीवरी: इषः ) सम्पन्न अन्नों, और अभिलाषाओं को ( युञ्जाथाम् ) प्रदान करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
निचृत पंक्ति:। ४, १० सतः पंक्तिः। २४ भुरिक पंक्ति:। ८ अनुष्टुप्। ९,११, १७ उष्णिक्। १३ निचुडुष्णिक्। १५ पादनिचृदुष्णिक्। १२ निचृत् त्रिष्टुप्॥ अष्टादशर्चं सूक्तम्॥
विषय
पीवरी: इषः [हृदय में प्रभु प्रेरणा का योग ]
पदार्थ
[१] हे (अश्विना) = प्राणापानो! आप (हि) = निश्चय से (रथे आरुहतम्) = इस शरीरूप रथ पर आरूढ़ होइये। अर्थात् इस शरीर में प्राणापान की साधना निरन्तर चले, यह प्राणापान का ही रथ बन जाये। [२] हे (वृषण्वसू) = शक्तिरूप धनोंवाले प्राणापानो! आप इस शरीर में (हिरण्यये कोशे) = ज्योतिर्मय मनोमय कोश में (पीवरी:) = [पावयितृणि सा० ] पवित्रता को उत्पन्न करनेवाली (इषः) = प्रेरणाओं को (युञ्जाथाम्) = जोड़नेवाले होइये। प्राणसाधना से पवित्र हुए हुए हृदय में ही प्रभु प्रेरणाओं के सुनने का सम्भव होता है।
भावार्थ
भावार्थ- हम प्राणसाधना को नियम से करें। प्राणसाधना से पवित्रीभूत हृदय में प्रभु प्रेरणा का श्रवण होता है। ये प्रेरणायें हमारे जीवनों को और पवित्र बनाती हैं।
इंग्लिश (1)
Meaning
Ashvins, harbingers of the showers of prosperity, ascend the chariot, seat yourselves in the golden interior of the chariot, come and settle us into a powerful social order of energy and prosperity.
मराठी (1)
भावार्थ
राजा व राज्य कर्मचाऱ्यांनी रथ इत्यादी यानात बसून प्रजेच्या कल्याणासाठी इकडे तिकडे सदैव भ्रमण करत त्यांचे सुख वाढवावे. ॥९॥
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