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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 61 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 61/ मन्त्र 17
    ऋषिः - भर्गः प्रागाथः देवता - इन्द्र: छन्दः - पाद्निचृद्बृहती स्वरः - मध्यमः

    अ॒द्याद्या॒ श्वःश्व॒ इन्द्र॒ त्रास्व॑ प॒रे च॑ नः । विश्वा॑ च नो जरि॒तॄन्त्स॑त्पते॒ अहा॒ दिवा॒ नक्तं॑ च रक्षिषः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒द्यऽअ॑द्य । श्वःऽश्वः॑ । इन्द्र॑स् । त्रास्व॑ । प॒रे । च॒ । नः॒ । विश्वा॑ । च॒ । नः॒ । ज॒रि॒तॄन् । स॒त्ऽप॒ते॒ । अहा॑ । दिवा॑ । नक्त॑म् । च॒ । र॒क्षि॒षः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अद्याद्या श्वःश्व इन्द्र त्रास्व परे च नः । विश्वा च नो जरितॄन्त्सत्पते अहा दिवा नक्तं च रक्षिषः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अद्यऽअद्य । श्वःऽश्वः । इन्द्रस् । त्रास्व । परे । च । नः । विश्वा । च । नः । जरितॄन् । सत्ऽपते । अहा । दिवा । नक्तम् । च । रक्षिषः ॥ ८.६१.१७

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 61; मन्त्र » 17
    अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 39; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Day by day every today, day by day every tomorrow and beyond, lord saviour and protector of the good and true, Indra, save and protect us, your celebrants and supplicants, all days, day and night.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    तोच (परमात्मा) रक्षक, पालक व आश्रय देणारा आहे. त्यासाठी सर्व प्रकारच्या विघ्नांपासून वाचण्यासाठी त्याचीच प्रार्थना करा. ॥१७॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    N/A

    पदार्थः

    हे इन्द्र ! अद्य अद्य=अस्मिन् अस्मिन् । श्वः श्वः । परे च=परस्मिन्नपि दिने । नः त्रास्व । नोऽस्मान् । जरितॄन्=स्तोस्तॄन् । विश्वा=विश्वानि । अहा=अहानि च । दिवा च नक्तञ्च । हे सत्पते रक्षिषः=रक्ष ॥१७ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    N/A

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! (अद्य+अद्य) आज-आज (श्वः+श्वः) कल-कल (परे+च) और तीसरे, चौथे, पञ्चम आदि दिनों में भी (नः+त्रास्व) हमारी रक्षा कर । (नः+जरितॄन्) हम स्तुतिपाठकों को (विश्वा+अहा) सब दिनों में (दिवा+च+नक्तम्+च) दिन और रात्रि में (सत्पते) हे सत्पालक देव ! (रक्षिषः) बचा ॥१७ ॥

    भावार्थ

    वही रक्षक, पालक और आश्रय है, अतः सब प्रकार के विघ्नों से बचने के लिये उसी से प्रार्थना करनी चाहिये ॥१७ ॥

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    विषय

    प्रभु से अभय की याचना।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! तू ( नः ) हमें ( अद्य अद्य ) आज आज, आज कहाने वाले सब दिनों और ( श्वः श्वः ) कल कल, कल कहाने वाले सब दिनों में और ( परे च ) परले दिनों में भी ( त्रास्व ) रक्षा कर। हे ( सत्पते ) सज्जनों के पालक ! तू ( नः जरितॄन ) प्रार्थना स्तुति करने वाले हम लोगों को ( विश्वा च अहा ) सब दिनों और ( दिवा नक्तं च ) दिन और रात, प्रकाश में और अंधेरे में भी ( रक्षिषः ) हमारी रक्षा कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भर्गः प्रागाथ ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ५, ११, १५, निचृद् बृहती। ३, ९ विराड् बृहती। ७, १७ पादनिचृद् बृहती। १३ बृहती। २, ४, १० पंक्तिः। ६, १४, १६ विराट् पंक्तिः। ८, १२, १८ निचृत् पंक्तिः॥ अष्टादशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    सदा रक्षण करनेवाले प्रभु

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्र) = शत्रुविद्रावक प्रभो ! (अद्य अद्य) = 'आज' कहलानेवाले सब दिनों में, (श्वः श्वः) = 'कल' कहलानेवाले सब दिनों में (च) = और (परे) = परसों व परले दिनों में भी (नः त्रास्व) = हमारा रक्षण कीजिए। [२] हे (सत्पते) = सज्जनों के रक्षक प्रभो ! (नः जरितर्निं) = हम स्तोताओं को (विश्वा च अहा) = सब ही दिनों (दिवा नक्तं च) = दिन-रात (रक्षिषः) = रक्षित करिये।

    भावार्थ

    भावार्थ- आज, कल, परसों व सदा दिन-रात प्रभु हमारा रक्षण करें।

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