ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 67/ मन्त्र 10
ऋषिः - अत्रिः
देवता - पवमानः सोमः पूषा वा
छन्दः - यवमध्यागायत्री
स्वरः - षड्जः
अ॒वि॒ता नो॑ अ॒जाश्व॑: पू॒षा याम॑नियामनि । आ भ॑क्षत्क॒न्या॑सु नः ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒वि॒ता । नः॒ । अ॒जऽअ॑श्वः । पू॒षा । याम॑निऽयामनि । आ । भ॒क्ष॒त् । क॒न्या॑सु । नः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अविता नो अजाश्व: पूषा यामनियामनि । आ भक्षत्कन्यासु नः ॥
स्वर रहित पद पाठअविता । नः । अजऽअश्वः । पूषा । यामनिऽयामनि । आ । भक्षत् । कन्यासु । नः ॥ ९.६७.१०
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 67; मन्त्र » 10
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 14; मन्त्र » 5
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अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 14; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अजाश्वः) नित्यधनवान् (पूषा) सर्वपालकः परमात्मा (नः) अस्माकं (अविता) पालको भवतु। (यामनि-यामनि) सर्वस्मिन् काले (कन्यासु) कमनीयपदार्थेषु (नः) अस्मान् (आ भक्षत्) गृह्णातु ॥१०॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अजाश्वः) नित्य अध्ययनवाला (पूषा) सर्वपोषक परमात्मा (नः) हम लोगों का (अविता) पालन करनेवाला हो। (यामनि-यामनि) सर्वदा (कन्यासु) कमनीय पदार्थों में (नः) हम लोगों को (आ भक्षत्) ग्रहण करे ॥१०॥
भावार्थ
परमात्मा ईश्वरपरायण लोगों के लिए सदैव कल्याणकारी होता है ॥१०॥
विषय
सविता-पूषा
पदार्थ
[१] यह (अजाश्वः) = इन्द्रिय रूप अश्वों को गतिशील व उत्क्षिप्त [नष्ट] मतवाला [अज गतिक्षेपणयो] बनाता हुआ सोम (नः) = हमारा (अविता) = रक्षक हो । इन्द्रियों को पवित्र बनाकर यह हमारा रक्षण करे। यह (यामनि यामनि) = जीवन की प्रत्येक मंजिल में (पूषा) = हमारा पोषण करता है । ब्रह्मचर्य गृहस्थ वानप्रस्थ व संन्यास रूप सभी प्रमाणों में यह हमारा पोषक होता है। [२] यह सोम (नः) = हमें (कन्यासु) = [कन् दीप्तौ ] सब दीप्तियों में 'शरीर को तेजस्विता, मन की निर्मलता व बुद्धि की दीप्ति में (आभक्षत्) = भागी बनाये [आभजताम् सा० ] ।
भावार्थ
भावार्थ- सोम [क] इन्द्रियाश्वों को गतिशील निर्मल बनाकर हमारा रक्षण करता है, [ख] सब जीवन के प्रमाणों में पोषक होता है, [ग] सब दीप्तियों में भागी बनाता है।
विषय
उत्तम पुरुष ही विवाह योग्य वर हो।
भावार्थ
(पूषा) पोषण करने वाला, (अविता) रक्षक, प्रेम करने हारा ! (अजाश्वः) वेग से जाने वाले अश्वों से युक्त विद्वान् (यामनि- यामनि) प्रत्येक यम नियम में अभ्यस्त वा उत्तम विवाह-कृत्य में (नः कन्यासु) हमारी कन्याओं के पाणिग्रहण करने के निमित्त (नः आ भक्षत्) हमें प्राप्त हो। इति चतुर्दशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः-१—३ भरद्वाजः। ४—६ कश्यपः। ७—९ गोतमः। १०–१२ अत्रिः। १३—१५ विश्वामित्रः। १६—१८ जमदग्निः। १९—२१ वसिष्ठः। २२—३२ पवित्रो वसिष्ठौ वोभौ वा॥ देवताः—१–९, १३—२२, २८—३० पवमानः सोमः। १०—१२ पवमानः सोमः पूषा वा। २३, २४ अग्निः सविता वा। २६ अग्निरग्निर्वा सविता च। २७ अग्निर्विश्वेदेवा वा। ३१, ३२ पावमान्यध्येतृस्तुतिः॥ छन्द:- १, २, ४, ५, ११—१३, १५, १९, २३, २५ निचृद् गायत्री। ३,८ विराड् गायत्री । १० यवमध्या गायत्री। १६—१८ भुरिगार्ची विराड् गायत्री। ६, ७, ९, १४, २०—२२, २, २६, २८, २९ गायत्री। २७ अनुष्टुप्। ३१, ३२ निचृदनुष्टुप्। ३० पुरउष्णिक्॥ द्वात्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
May the divine protector and promoter, lord of health and nourishment, Pusha of eternal presence and progress join and bless us at every step on every path of life in the pursuit of all our cherished goals, aims and objects of living.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा ईश्वरपरायण लोकांसाठी सदैव कल्याणकारी असतो. ॥१०॥
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